आज की सुबह किसी भी और दिन की ही तरह थी. रिपोर्टिंग पर निकलने से पहले खिड़की के बाहर कई बार नज़र पड़ी, लगा आसमान में काले बादल घिरने शुरू हो रहे हैं. ये देखकर जहां मन खुश हो रहा था कि चलो आज कम से कम दिल्ली की सड़कों पर पसीने से नहीं भीगेंगे. भीग भी गए तो बरसात के पानी में. वैसे भी बारिश को लेकर बचपन से एक अलग ही फैसिनेशन रहा है. बरसात यानी कागज़ की कश्ती, जगजीत सिंह साहब की ग़ज़लें... याद है न वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी… रेनकोट पहनकर स्कूल जाना... बड़े होते-होते अनिल कपूर और मनीषा कोइराला पर खूबसूरती से फिल्माया गया रिमझिम-रिमझिम... रुमझुम-रुमझुम... गाना गुनगुनाना! देखिए कहा था न बरसात को लेकर एक अलग ही ज़ोन में चली जाती हूं... यू नो... आई जस्ट लव रेन...!

बहरहाल बैक टू द प्वाइंट... तो आज जैसे ही घर से निकली, बरसात शुरू हो चुकी थी. कंधे पर बैकपैक, हाथ में अंब्रेला और बरसात के चलते फुटवियर सावधानी से चुने और निकल पड़ी. सोचा दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में पहुंचकर बारिश में भीगती दिल्ली का सूरत-ए-हाल जानते हैं. दिल्ली के कुछ इलाक़े ऐसे हैं, जहां समस्याएं बिन बताए भी आंखों से साफ़ देखी जा सकती हैं. यूं तो ऐसी बहुत सी जगह हैं, उनमें नांगलोई, मुंडका जैसे इलाक़े भी शुमार हैं, जहां सड़कों की मरम्मत, पानी की समस्या फिर वो चाहे पीने का पानी हो या बारिश का पानी.. आए दिन लोगों की परेशानी देखने को मिलती है. तो मैं निकल पड़ी थी कैब से नांगलोई के लिए. तब तक रास्ते में मौसम विभाग की तमाम जानकारी जुटाते और दिल्ली की बरसात शूट करते-करते मैं ऑफिस भेजती जा रही थी.

बहरहाल सुबह के क़रीब आठ बजे मैं पहुंच गई नांगलोई. मेट्रो स्टेशन के ठीक नीचे बना था बस स्टैंड. लोग बसों का इंतज़ार कर रहे थे. आसपास कूड़ा और बदबू. हल्की बूंदाबांदी में इलाक़े की बदबू और ज़्यादा महसूस हो रही थी. हल्की-फुल्की बारिश लेकिन फिलहाल सब सामान्य लग रहा था. फिर सोचा ऑफिस टाइम है.. पीक आवर है, धीरे-धीरे ट्रैफिक बढ़ना शुरु होगा तो कुछ दूर मेट्रो से आगे निकला जाए. फिर क्या था. ग्रीन लाइन वाली मेट्रो ली और मैं बढ़ गई आगे की तरफ़. इस बीच अचानक कुछ ही देर में तेज़ बारिश शुरू हो गई. मौसम विभाग ने अगले दो घंटे में मध्यम से तेज़ बारिश का अनुमान अलग-अलग इलाक़ों के लिए दे रखा था. मैं उतरी कीर्ति नगर. मेट्रो स्टेशन के बाहर का नज़ारा देखा. ट्रैफिक की लंबी कतार दिखी, जो सुस्त रफ़्तार से आगे बढ़ रहा था. फिर क्या था टीवी पत्रकार का हथियार निकाला, जी आपने सही समझा, मोबाइल निकाला और शूट करके शॉट्स ऑफिस भेज दिए.. वहां से जो देखा, आंखों-देखी बयां कर दी.. इस बीच ऑफिस से फोन आया कि अभी आप कहां हैं.. मैंने बताया कीर्ति नगर में हूं. मोबाइल पर एसाइनमेंट से मैसेज आया कि ये कैमरापर्सन हैं, आप कोर्डिनेट कर लीजिए. आज दिल्ली में बारिश को लेकर ग्राउंड रिपोर्टिंग करनी है. तब तक सुबह के 9 बज रहे थे.

कीर्ति नगर में बारिश के बीच जबर्दस्त ट्रैफिक जाम मिला.
नोएडा ऑफिस से कैमरापर्सन आज़म कैमरा यूनिट रेडी करके क़रीब 9.30 बजे निकले. हमने तय किया कि सेंट्रल दिल्ली में मिलते हैं मंडी हाउस या आईटीओ के पास. लेकिन ये बात दोनों अच्छे से समझ चुके थे कि उन्हें मुझे तक पहुंचने में टाइम लगेगा. उन्होंने बताया कि एक घंटा 20 मिनट फिलहाल दिखा रहा है. मैंने कहा- कोई नहीं, इसमें आप कुछ नहीं कर कर सकते, आप निकलिए.. तब तक मैं अपने मोबाइल से शूट करके और हेडफ़ोन का इस्तेमाल करके रिपोर्ट भेजती हूं. तभी कान में आवाज़ पड़ी, अगला स्टेशन करोल बाग़ है. बादलों की गड़गड़ाहट उस मेट्रो स्टेशन की अनाउंसमेंट में घुल चुकी थी. मैं उसी स्टेशन पर उतर गई.
मैं जुलाई महीने की शुरुआत में यहां ग्राउंड रिएलिटी चेक करने पहले भी आई थी. तब यहां पीडब्ल्यूडी और एमसीडी वॉटर लागिंग रोकने के लिए काम करवा रही थी. सोचा कि यहां का हाल जानने का इससे बेहतर मौका नहीं. मेट्रो स्टेशन पर बहुत से लोग अंदर ही खड़े थे, जो इंतज़ार कर रहे थे कि बरसात धीमी हो तो आगे बढ़ें. लेकिन मेरे अंदर रिपोर्टर की भूख मुझे तेज़ बरसात में आगे बढ़ने को कह रही थी. लिफ़्ट का इस्तेमाल कर मैं जैसे ही उतरी, देखकर हैरान रह गई. ऐसा लगा किसी तलाब के नज़दीक आ गई हूं. चारों ओर सिर्फ़ पानी ही पानी, लबालब सड़क, ई-रिक्शों का जमावड़ा. साइकिल रिक्शा वाले उसी पानी में अपने रिक्शे में सिकुड़े से बैठे हैं. ऑफिस जाने वाले कुछ लोग मेट्रो स्टेशन के शेड के नीचे रुके हुए थे. हालांकि उन्हें जाने की जल्दी भी थी.

लेकिन करोल बाग का ये हाल उस जगह से चंद कदमों की दूरी पर था, जहां आज से ठीक एक साल पहले 27 जुलाई 2024 को यूपीएससी की तैयारी कर रहे तीन छात्रों की मौत हो गई थी. जिस Rau's कोचिंग सेंटर में ये छात्र तैयारी कर रहे थे, वहां के बेसमेंट में बनी लाइब्रेरी में पानी भरने से तीन की मौत हो गई थी. लेकिन आज मेरे सामने चुनौती थी तेज़ बरसात और बिना कैमरा और Mojo किट के उन तस्वीरों को जो मैं देख पा रही थी, उसे सामने लाना की. मेरी नज़र मेट्रो स्टेशन के ठीक नीचे बने सुलभ शौचालय पर भी पड़ी. हर ओर गंदा पानी जमा था. मुझे हर हाल में उस तरफ़ जाना था ताकि मैं रिपोर्ट कर सकूं. बस फिर क्या था, अपनी ट्राउज़र को कुछ ऊपर किया ताकि गंदे पानी में भीग न जाए और उतर पड़ी उसी पानी में. मोबाइल हाथ में लिया, ईयर पीस को माइक के तौर पर हाथ में पकड़ा.. इरादा था यहां से ग्राउंड रिएलिटी दिखाने का. इसके लिए सुलभ शौचालय के बाहर स्टूल पर बैठे कर्मचारी से रिक्वेस्ट की.. वो हेल्प करने को राज़ी हुए तो उन्हें मैंने बताया कि आपको करना क्या है.. उनकी बातों से लगा कि वो अच्छे से समझ चुके हैं. बस फिर क्या था, डेढ़ मिनट का एक वॉकथ्रू (वहां के हालात बयां करना) रिकॉर्ड करके भेज दिया ऑफिस. कुछ ही देर में वो ऑन एयर हो गया.
अब उस इलाक़े में पहुंची, जहां तीन छात्रों की मौत हुई थी. Rau's कोचिंग सेंटर अब वहां नहीं था. वो जगह खाली पड़ी थी. आसपास एमसीडी के लोग वॉटर पंप का इस्तेमाल करके बहते हुए पानी को मेन सीवर या ड्रेन की ओर निकालते दिखे. हाथ में छाता लिए उस पूरे इलाक़े में घूमी. एक बार फिर फ़ोन पर कैमरापर्सन आज़म से बात की. बोले अभी भी एक घंटा दिखा रहा है आप तक पहुंचने के लिए क्योंकि अक्षरधाम और आईटीओ पर ट्रैफिक जाम मिला.

बारिश के बीच सीपी में कुछ ऐसा नजारा दिखा
अब यहां से आगे बढ़कर सोचा कि मेट्रो से ही सीपी चलकर देखा जाए. पास ही में मिंटो ब्रिज भी है. तो मैं निकल पड़ी मेट्रो से राजीव चौक की ओर. बस जैसे ही राजीव चौक के गेट नंबर-1 से बाहर निकली, एक बार फिर नजारा देखकर हैरान रह गई. वहां का पार्किंग एरिया दरिया में तब्दील हो चुका था. सब तरफ़ पानी, बाइक, साइकिल, गाड़ियां सब के पहिये पानी में डूबे दिखे. बारिश रुक चुकी थी.
मेट्रो स्टेशन के बाहर कुछ लड़कियां मिलीं. वो समझ नहीं पा रही थीं कि कहां से आगे जाएं. उन्हें अपने ऑफिस जाना था. बावजूद उसके वो रिलैक्स दिखीं तो मैंने भी हिम्मत करके पूछ लिया- क्या आप मेरी थोड़ी हेल्प कर सकती हैं. यहां का हाल दिखाते हुए शूट करना है. अब मेरे पास थीं फीमेल कैमरापर्सन. उन्होंने लाजवाब शूट किया. उनका शुक्रिया अदा कर मैं आगे बढ़ी.

सीपी के इनर सर्किल में आज आलम ये था कि जगह-जगह जबरदस्त वॉटर लॉगिंग थी. मैं जब से घर से निकली थी, लगातार शॉट्स लेती जा रही थी और ऑफिस भेजती जा रही थी. दिल्ली की जनता को आज घर से बाहर निकलने से पहले की ज़मीनी हक़ीक़त से वाकिफ़ करा रही थी. आउटर सर्किल में एक ओर जहां थोड़ी वॉटर लॉगिंग थी, वहीं उसकी वजह से ट्र्रैफिक भी रेंग रहा था. अब बारी थी मिंटो ब्रिज की ओर जाने की, जहां से मैं लगातार इन दिनों रिपोर्ट करती आई हूं कि अब वहां जलजमाव पहले की तरह देखने को नहीं मिलता. आज भी देखने को नहीं मिला, लेकिन हां ट्रैफ़िक ज़रूर रहा.
अभी भी इंतज़ार था कैमरा पहुंचने का, तब तक आधे से ज़्यादा काम हो चुका था. लेकिन ये क्या, मोबाइल बैटरी 8% रह गई. लो बैटरी का साइन दिख रहा था. बिना देर किए, पावर बैंक से फोन चार्ज पर लगाया. दोपहर 12.15 बजे कैमरामैन आलम सीपी पहुंचे. बैगपैक, छाता, सब गाड़ी में रखा और हम आगे पहुंच गए जनपथ. वहां भी वॉटर लॉगिंग. इस जगह के ये हालात देखकर थोड़ी हैरानी भी हो रही थी, लेकिन हमें अपना काम करते हुए आगे बढ़ना था.

जखीरा अंडरपास के नीचे भरा पानी निकालते पंप.
जनपथ का हाल दिखाते, आईटीओ होते हुए अब हम आ चुके थे ज़खीरा अंडर पास. जहां की तस्वीरें सोशल मीडिया पर चल रही थीं. लेकिन जब हम पहुंचे तो हमने देखा कि सारा पानी पंप के जरिए निकाला जा चुका था. ये वक्त था दोपहर के तीन बजे का. स्थानीय लोगों ने बताया कि दो घंटे की बरसात में हर बार की तरह यहां आज भी पानी भर गया था. अब जाकर पानी निकला है. लोगों की शिकायत थी कि यहां पास में बने नाले में गाद जमा रहती है, जिसके चलते कीचड़ और पानी बहुत भर जाता है. ये सब हाल दिखाते दिखाते बरसात रुक चुकी थी. घड़ी में शाम के 4 बज रहे थे और अब वक़्त हो चला था अगले पड़ाव यानी घर वापस लौटने का. और वक्त था दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों से ग्राउंड रिपोर्ट भेजकर साइन ऑफ का भी. तो मुझे दीजिए इजाज़त..कैमरापर्सन आज़म और करोल बाग व सीपी के दो प्यारे दिल्लीवासियों के साथ मैं जया कौशिक, NDTV इंडिया के लिए
(लेखक NDTV में एसोसिएट न्यूज एडिटर व एंकर के पद पर कार्यरत हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं.)