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    गंभीर मुद्दे इन चुनावों से गायब क्यों रहे? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

    नमस्कार मैं रवीश कुमार, इंटरव्यू होता नहीं था कि लोग हंसना शुरू कर देते थे. ह्मूमर नहीं होता तो 2019 का चुनाव सीरियस नहीं होता. पत्रकारों की जगह अभिनेताओं ने ले ली और सवाल लतीफे बन गए. कई बार तो लगा कि नेता खुद ही कार्टून बन रहे हैं और कार्टूनिस्ट सिर्फ स्केच कर रहे हैं.

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    बीजेपी में वरिष्‍ठ नेता दरकिनार किए जा रहे हैं?

    1989 से सुमित्रा महाजन लोकसभा पहुंच रही हैं. 16वीं लोकसभा की अध्यक्ष बनाईं गईं. आज उन्होंने एक पत्र जारी किया जो न तो प्रधानमंत्री को संबोधित था और न ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को. यह पत्र सीधा प्रेस को जारी किया गया है जिसमें पार्टी अध्यक्ष की जगह सादर प्रकाशनार्थ लिखा है.

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    भगोड़े विजय माल्या ने सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को दी बधाई, तो लोगों ने किया ट्रोल

    भगोडे विजय माल्या ने कांग्रेस नेता सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को ट्वीट कर दी बधाई तो ट्रोलर्स ने घेर लिया.

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    एमजे अकबर पर सरकार की चुप्पी पर सवाल

    विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर पर कथित रूप से लगे आरोपों को लेकर मीडिया में खासकर हिन्दी के अखबारों में कैसी रिपोर्टिंग हो रही है, यह देखना दिलचस्प होगा. कहीं पर भी आरोप लगाने वाली महिलाओं की बातें विस्तार से नहीं हैं. जहां प्रमुखता से छपी हैं वहां भी और कई जगह तो खबर ऐसे छपी है जैसे यूं ही किसी ने राह चलते आरोप लगा दी हो. आप हैरान हो जाएंगे कि कुछ हिन्दी अखबारों में दस बीस लाइन की खबर भी ठीक से नहीं छपी है. विदेश राज्य मंत्री पर 9 महिला पत्रकारों ने आरोप लगाए हों, पूरी सरकार चुप हो गई हो और हिन्दी अखबारों से इस खबर को करीब करीब गायब कर दिया जाए यह कितना दुखद है. एक अखबार के कई संस्करण होते हैं. हार्ड कापी होती है, ई संस्करण होते हैं, वेबसाइट होती है. भोपाल से अनुराग द्वारी ने बताया कि 10 अक्तूबर को हिन्दी के दो बड़े अखबारों की हार्ड कापी में अकबर की खबर नहीं है. इनके लाखों पाठकों को पता ही नहीं चला होगा, जबकि यह ख़बर पत्रिका और भास्कर में है. 

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    ट्रेनों की लेटलतीफ़ी कब तक आम बात रहेगी?

    आपको आज एक ट्रेन की कहानी बताता हूं. नाम तो इसका स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस है, लेकिन इसकी हालत किसी गुलाम जैसी है. स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस बिहार के जयनगर से चलकर दिल्ली के आनंद विहार स्टेशन पर आती है. कुल 22 स्टेशनों से होते हुए यह ट्रेन अपना सफर पूरा करती है. आए दिन यात्री मैसेज करते रहते हैं कि इस ट्रेन का कुछ कीजिए. हम समझ नहीं पाते थे कि लोग क्यों इस ट्रेन को लेकर परेशान हैं. आज जब रेल मंत्रालय की वेबसाइट चेक की तो डर गया.

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    क्या बैंकों में दिखता है स्वच्छ भारत अभियान?

    भले ही आप मुझे न देखें लेकिन टीवी कम देखिए. बहुत से लोग अब सोशल मीडिया पर उन चैनलों की करतूत को लेकर लतीफा बना रहे हैं. एक तो पहले श्रीदेवी की दुखद मौत हुई उसके बाद हर चैनल ने श्रीदेवी को अपने अपने हिसाब से मारा और उसे देखने वाले हर दर्शक ने लतीफा बनाकर अपने अपने हिसाब से मारा. आप समझ तो रहे ही होंगे कि टीवी के पास आपकी संवेदनशीलता ख़त्म करने की कितनी ताकत है. कोई पहला मौका तो नहीं है, इस तरह से न्यूज़ चैनल हज़ार बार कर चुके हैं और आगे भी करते रहेंगे. पर एक सवाल आप खुद से पूछिए क्या वाकई आपने तय कर लिया है कि ख़ुद और समाज को बर्बाद कर देना है. 

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    रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों पर कितनी गंभीरता ?

    हमें बताया गया कि 11,400 करोड़ का चूना लगाने वाले नीरव मोदी और मेहुल चौकसी को लेकर जांच एजेंसियां गंभीर हैं, मगर वो इतनी गंभीर कैसी हैं कि मेहुल चौकसी की अभी तक कोई खबर नहीं आई है और नीरव मोदी बकायदा बैंक को पत्र लिख रहे हैं. पंजाब नेशनल बैंक के जिन कर्मचारियों को गिरफ्तार किया गया है क्या उन्हें भी पत्र लिखने की छूट है. वैसे इसमें नीरव मोदी की कोई ग़लती नहीं है. नीरव जैसे लोगों को पता है कि मीडिया की हेडलाइन जल्दी बदलने वाली है, महीनों वर्षों लग जाएंगे ये जांच वो जांच में और अंत में कुछ होगा नहीं. इसलिए वे आपको लव लेटर लिख रहे हैं. 

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    बजट पर बोले सीएम केजरीवाल, मोदी सरकार ने सौतेला व्यवहार किया, उम्मीद के बदले निराशा हाथ लगी

    मोदी सरकार के आखिरी पूर्णकालिक आम बजट को लेकर निराशा जताते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाए कि केंद्र दिल्ली के साथ ‘सौतेला व्यवहार जारी रखे हुए है.’ केजरीवाल ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में महत्वपूर्ण ढांचागत विकास के लिए कुछ वित्तीय सहायता की उन्हें उम्मीद थी. उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने केंद्रीय करों और शुल्कों में दिल्ली की हिस्सेदारी नहीं बढ़ाने पर नाखुशी जताई और कहा कि भाजपा नीत केंद्र सरकार दिल्ली के लोगों को ‘दोयम दर्जे का नागरिक’ समझती है.

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    न्याय के पक्ष में खड़े होने से डर कैसा? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम 

    कैलिफोर्निया के किसी कॉलेज के बाहर गोली चल जाती है तो आज कल हमारे अंग्रेज़ी चैनल सीधा लाइव करने लगते हैं. इस घटना की डिटेल सुनते हुए आपको कितना बुरा लग रहा होगा, मैं समझ सकता हूं पर बताना ज़रूरी भी तो है कि हमारे समाज में क्रूरता की कितनी परतें हैं. 

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    सिस्टम के शिकार लोगों को न्याय कैसे? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

    बाबरी मस्जिद की घटना हमारे सिस्टम के बड़े स्तर पर फेल होने और आज तक फेल होते रहने का सबसे शर्मनाक और अचूक उदाहरण है.

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