विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर पर कथित रूप से लगे आरोपों को लेकर मीडिया में खासकर हिन्दी के अखबारों में कैसी रिपोर्टिंग हो रही है, यह देखना दिलचस्प होगा. कहीं पर भी आरोप लगाने वाली महिलाओं की बातें विस्तार से नहीं हैं. जहां प्रमुखता से छपी हैं वहां भी और कई जगह तो खबर ऐसे छपी है जैसे यूं ही किसी ने राह चलते आरोप लगा दी हो. आप हैरान हो जाएंगे कि कुछ हिन्दी अखबारों में दस बीस लाइन की खबर भी ठीक से नहीं छपी है. विदेश राज्य मंत्री पर 9 महिला पत्रकारों ने आरोप लगाए हों, पूरी सरकार चुप हो गई हो और हिन्दी अखबारों से इस खबर को करीब करीब गायब कर दिया जाए यह कितना दुखद है. एक अखबार के कई संस्करण होते हैं. हार्ड कापी होती है, ई संस्करण होते हैं, वेबसाइट होती है. भोपाल से अनुराग द्वारी ने बताया कि 10 अक्तूबर को हिन्दी के दो बड़े अखबारों की हार्ड कापी में अकबर की खबर नहीं है. इनके लाखों पाठकों को पता ही नहीं चला होगा, जबकि यह ख़बर पत्रिका और भास्कर में है.
भास्कर ने 9 अक्तूबर को भी पहले पन्ने पर छापा था. बिहार की राजधानी पटना से मनीष कुमार ने बताया कि सिर्फ प्रभात खबर में है. वहां की तीन बड़े हिन्दी अखबारों में नहीं है. सोचिए करोड़ों पाठकों तक यह खबर नहीं पहुंचने दी गई. देहरादून के तीन अखबारों में 9 अक्तूबर को यह खबर ही नहीं थी. 10 अक्तूबर को भी एक बड़े अखबार में यह खबर गायब थी मगर दो अखबारों में भीतर के पन्ने में मामूली तरीके से छपी है. इसके बाद हमने छह हिन्दी अखबारों के ई संस्करण चेक किए. सिर्फ तीन में ये खबर है. तीन के पहले पन्ने पर ये खबर नहीं है. ई-संस्करण के मामले में हमने सिर्फ पहले पन्ने को चेक किया है. तो हिन्दी अखबार पढ़ने वाले पाठकों तक क्या यह खबर समान रूप से पहुंच रही है? अखबारों ने एमजे अकबर की ख़बर क्यों नहीं छापी है, इस पर मेरी कोई राय नहीं है. सभी या कह सकते हैं कि ज़्यादतर अख़बारों में आलोक नाथ पर लगे आरोप की ख़बर है. यानी मीटू आंदोलन की खबरें छप रही हैं मगर एमजे अकबर की ख़बर कहीं हैं कहीं नहीं है. क्या ये सिर्फ अंग्रेज़ी मीडिया के लिए प्रमुख खबर है.
10 अक्तूबर के इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर अकबर पर लगे आरोपों की खबर लगाई है. हेडिंग है कि छह महिलाओं ने आवाज़ उठाई, मंत्री अकबर पर सेक्सुअल हैरसमेंट के आरोप लगाए जब वे संपादक थे. आज भी कई बड़े अंग्रज़ी अखबार में या तो खबर है नहीं या फिर कहीं किनारे है. 9 अक्तूबर के टेलिग्राफ ने इसे पहली खबर के रूप में छापा था. वैसे अगर आप वेबसाइट के हिसाब से देखेंगे तो करीब करीब अंग्रेज़ी डिजिटल मीडिया में ये खबर है. न्यूज़ चैनलों का हमने नहीं देखा. यह इसलिए बताया कि मीडिया का विस्तार तो हुआ है मगर क्या उन सभी प्लेटफॉर्म से खबरें समान रूप से पाठकों तक पहुंच रही हैं, एक बड़े हिस्से में चुप्पी क्या सिर्फ संपादकीय फैसले का मामला है? सोचिए अगर 6 से 8 करोड़ पाठकों तक पहुंचने वाला हिन्दी का अखबार अगर इस खबर को छापे ही न तो उसके पाठक कैसे जान पाएंगे. इसलिए पाठक और दर्शक को भी बदलना होगा. उसे किसी महत्वपूर्ण घटना या खबर की जानकारी कई माध्यमों से चेक करनी चाहिए. लोकतंत्र में वोटर होना या पाठक होना आई आईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी से भी मुश्किल काम है. आज अकबर के प्रसंग में एक और लेख आ गया है. ग़ज़ाला वहाब नाम की महिला पत्रकार ने दि वायर में अकबर के साथ हुई अपनी आपबीती बयां की है. ग़ज़ाला वहाब FORCE newsmagazine की कार्यकारी संपादक हैं.
ग़ज़ाला वहाब ने लिखा है एशियन एज के आखिरी छह महीने में हालात नरक से बदतर हो गए थे. ग़ज़ाला ने लिखा है कि एशियन एज की कहानी लिखना आसान नहीं था. मैंने काफी सोचा कि बीस साल बाद ये बताना क्या उचित रहेगा, लेकिन लोगों के मेसेज आते रहे कि तुम कब लिखोगी. स्कूल में थी जब पिता ने अकबर की लिखीं किताबें लाकर दी थीं. उन्हें पढ़कर पत्रकार बनने का फैसला किया. 1994 में दि एशियन एज ज्वाइन किया. मैंने लोगों को यह कहते सुना कि यह ऑफिस अकबर का हरम है. वहां लड़कियां बहुत ज्यादा थीं. लड़के कम थे. मैं इस तरह की गॉशिप सुनती थी कि किससे रिश्ते हैं. हर रीजनल ऑफिस में उनके गर्लफ्रैंड हैं. तीसरे साल एशियन एज के ऑफिस कल्चर ने मुझपे चोट की. मेरी मेज़ अकबर के ऑफिस के बाहर लगा दी गई. वो मुझे घूरते रहते थे और ऑफिस के नेटवर्क पर अश्लील मैसेज भेजते रहते थे. फिर मुझे बातचीत के बहाने केबिन में बुलाने लगे. ज़्यादातर बातचीत निजी किस्म की होती थी. एक बार कमरे में डिक्शनरी देखने के बहाने बुला लिया. मैं डिक्शनरी उठाने के लिए झुकी ही थी कि अकबर ने मुझे पीछे से पकड़ लिया. मेरे होठों पर उंगलियां फेरने लगे. मेरे स्तनों पर हाथ फेरने लगा. मैंने खुद को छुड़ाने की कोशिश की मगर उसने कस के जकड़ लिया था. मैं किसी तरह छुड़ा कर केबिन से भागी. टॉयलेट में जाकर रोने लगी. मैंने खुद से कहा कि दोबारा नहीं होने दूंगी. मैं उसकी गर्लफ्रैंड नहीं बनना चाहती थी. लेकिन मुझे नहीं पता था कि यातनाओं की शुरुआत होने वाली है. अगले दिन फिर बुलाया और किस करने का प्रयास किया. मैं खुद को छुड़ाती रही, लेकिन वहां कोई जगह नहीं थी. फिर उसने मुझे छोड़ दिया. मैं भागी. दफ्तर से बाहर भागी. सूर्य किरण बिल्डिंग के बाहर भागी. एक सुनसान जगह पर जाकर रोने लगी.
ग़ज़ाला वहाब के साथ जो कुछ हुआ, उन्होंने जो लिखा है, उसका बहुत हिस्सा अनुवाद में छूट गया. मैंने छोड़ दिया क्योंकि मुझसे नहीं लिखा गया. फर्स्ट पोस्ट वेबसाइट पर जिस अनाम महिला ने एमजे अकबर के बारे में संस्मरण लिखा है, वो भी इतना ही भयावह है. आप पढ़ नहीं सकते. मुझे नहीं पता कि ये सारे लेख पढ़कर मोदी सरकार के भीतर क्या हलचल मच रही है, क्यों बीजेपी के प्रवक्ता इतने शांत हो गए. अकबर को बचाने के लिए सारी सरकार लगी हुई है या सरकार ने अकबर से किनारा कर लिया है. प्रधानमंत्री मोदी ने अभी तक नहीं बोला है. यह ख़बर अब मैनेज करने के दायरे से बाहर जा चुकी है. इसलिए यह इस सरकार के इकबाल का इम्तहान है और अकबर का भी. जहां महज़ आरोप लगने पर कई पत्रकारों ने इस्तीफे दे दिया लेकिन जिस संपादक पर इतने गंभीर आरोप लगे हैं, क्या कोई एक्शन नहीं होगा, जांच की घोषणा तक नहीं हुई है. मुमकिन है सरकार फैसला लेने में वक्त ले रही हो, तो उसे पूरा हक है. यह भी हो सकता है कि नए विदेश राज्य मंत्री की तलाश हो रही हो जिनकी अंग्रेज़ी अकबर से अच्छी हो तो इसमें भी कोई बुराई नहीं है. मगर सरकार के हिसाब से क्या ठीक है क्या ठीक नहीं है ये तभी पता चलेगा जब जवाब मिलेगा.
ग़ज़ाला वहाब अपने परिवार की पहली लड़की थीं, शहर और घर से बाहर आकर नौकरी करने का फैसला किया था. ग़ज़ाला सातवीं महिला पत्रकार हैं, जिन्होंने पब्लिक में एमजे अकबर को लेकर अपने संस्मरण लिखे हैं. कुल 9 महिला पत्रकारों ने एमजे अकबर को लेकर आपबीती बताई है. किसी ने लेख लिखा है. किसी ने बयान दिया है. किसी ने ट्वीट किया है. सुतपा पॉल, NewCrop की संस्थापक संपादक हैं, उन्होंने भी आपबीती लिखी है. सुतपा पॉल ने 10 अक्तूबर की शाम 32 ट्वीट किए हैं और बताए हैं कि कैसे इंडिया टुडे के कोलकाता ब्यूरो में काम करने के दौरान अकबर ने संबंध बनाने के प्रयास किए. यह सारी बातें 2010-11 की हैं.
गज़ाला वहाब की आपबीती का एक छोटा सा हिस्सा आपने सुना. प्रिया रमानी ने तो 1997 में ही लिखा था मगर नाम नहीं लिया, लेकिन इस बार नाम ले लिया. प्रेरणा सिंह बिंद्रा ने दि वायर में अपनी आपबीती लिखी है. सुमा राहा ने भी आपबीती बताई कि कैसे होटल के कमरे में इंटरव्यू के दौरान वे असहज हो गईं और नौकरी का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया. कनिका गहलौत ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि उसे भी होटल में बुलाया था मगर वो नहीं गई, लेकिन उसके बाद से अकबर ने कुछ नहीं किया. एक अनाम महिला पत्रकार ने फर्स्ट पोस्ट में लिखा है. वो विवरण भी सिहरा देने वाला है. प्रेम पणिकर ने भी अपनी आपबीती लिखी है. सुपर्णा शर्मा जो इस वक्त दि एशियन एज की रेजिडेंट एडिटर हैं, उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है कि अकबर ने उन्हें अश्लील इशारा किया.
एम जे अकबर पर 9 महिला पत्रकारों ने गंभीर आरोप लगाए हैं. क्या भारत सरकार ऐसे व्यक्ति को एक पल के लिए भी मंत्रिमंडल में रख सकती है. यह सरकार बता सकती है. 9 महिला पत्रकारों का बयान सामने है. उनकी आपबीती सामने है. ये सब आरोप की शक्ल में हैं. कथित रूप से. ग़ज़ाला वहाब ने जो लिखा है उसे बीस साल बाद क्या पचास साल बाद भी लिखना आसान नहीं है. इसका कानूनी महत्व क्या है, इस पर बहस हो सकती है, लेकिन सात महिला पत्रकारों का बाहर आकर बोलना, सारे प्रसंग और संदर्भ के साथ लिखना क्या उनके लिए आसान रहा होगा. इसलिए एमजे अकबर पर जो आरोप लगाए हैं, उस पर उनका जवाब ज़रूरी है. मोदी सरकार क्या फैसला करेगी वो जाने, बहुत से लोग इन 9 महिला पत्रकारों के बारे में कई सवालों के साथ सोचेंगे, मगर प्रिया रमानी की भतीजी ने अपनी चाची को लिखा है. आंट को।
आंटी प्रिया मुझे आप पर गर्व है कि आपने ये सब लिखा. आप एक बहुत ज़रूरी मैसेज दुनिया को दे रही हैं. मेरे स्कूल में हम लड़िकयां बीस मिनट के लिए एडवाइज़री क्लास में इन सब मुद्दों पर बात करते हैं. हमने कावानॉग और वेंस्टिन के बारे में चर्चा की. हम अपने क्लास में आप जो कर रही हैं, उस पर भी चर्चा करेंगे. मैंने आपका लिखा दिखाऊंगी कि कैसे दुनिया की सभी औरतों को मिलकर आवाज़ उठाने की ज़रूरत है.
आईटी सेल इस मामले के आने के बाद मीडिया ट्रायल के मतलब को समझ गया है. वर्ना यही आरोप एमजे अकबर की जगह किसी और पर लगे होते तो आप आईटी सेल और टीवी चैनलों में तूफान देखते. फिर भी मैं नहीं चाहता कि किसी का मीडिया ट्रायल हो. मी टू का समर्थन करने वाली कई महिला पत्रकार लगातार ट्विटर और फेसबुक पर इस अंतर को रेखांकित कर रही हैं कि इसके तहत कौन से आरोप गंभीर माने जाएंगे और कौन से मीटू नहीं माने जाएंगे. एमजे अकबर के बारे में महिला पत्रकारों ने जो प्रसंग सुनाएं हैं, सबमें अकबर हमलावर हैं. वो रज़ामंदी का इंतज़ार नहीं करते, संबंध भी नहीं बनाते, बल्कि टूट पड़ते हैं. बीस साल पहले विशाखा कमेटी नहीं थी. बीस साल पहले इस तरह से पब्लिक स्पेस में महिलाएं नहीं बोलती थीं. टीवी और ट्विटर नहीं था. न ही मीटू जैसा माहौल था. मीटू अभियान आया तब शुरू के दिनों उन लोगों पर सवाल उठे, जिनका संबंध लेफ्ट या लिबरल खेमे से था. मगर तब भी उन सवालों को किसी ने सीधे खारिज नहीं किया. उन्हें सुना गया और उन सभी ने अपनी सफाई दी. किसी ने नहीं भी दी होगी. मी टू के इस दौर में भारत में कम से कम इस बात को लेकर सतर्कता बरती जा रही कि कोई किसी को बेवजह बदनाम न कर पाए.
कई मीडिआ संस्थानों ने एमजे अकबर से उनका पक्ष जानने के लिए लिखा है. जवाब का इंतज़ार किया जा रहा है. एमजे अकबर के साथ काम कर चुकी सीमा मुस्तफा ने लिखा है. दि सिटिज़न वेबसाइट पर. इस चेतावनी के साथ कि ये उनके निजी विचार हैं न कि दि सिटिज़न की संपादकीय नीति है. सीमा मुस्तफा ने अपने लेख की शुरुआत में मीटू अभियान के तौर तरीकों पर भी सवाल उठाए हैं. सीमा को मीटू आंदोलन के तेवर से भी समस्या है. सीमा की एक बात ठीक है कि बिना जांच के, बिना प्रमाण के कइयों की नौकरियां चली गईं. क्या ये ठीक है. सीमा का लेख एक तरह से अकबर का बचाव करता है. उन्होंने लिखा है कि दिल्ली में जिस होटल में रूकते थे वो उनके काम का हिस्सा था, मुझे या कइयो को असहज नहीं लगा. उनका ऐसा अनुभव नहीं रहा है.
कई लड़कियां थीं जिनकी आलोचना अकबर के सामने नहीं होती थी, लेकिन ऐसे कुछ पुरुष भी थी जिनके बारे में अकबर कुछ भी नहीं सुनते थे. हम बहुत कुछ शक करते थे मगर कोई पुख़्ता प्रमाण नहीं होता था. कम से कम एशियन एज के ऑफिस के भीतर तो बिल्कुल ही नहीं. केवल अटकलबाज़ी है. प्रमाण कुछ नहीं है और यही सच है, लेकिन जिस माहौल में अटकलें हों, कानाफूसी हों वो जगह काम करने के लिए अनुकूल भी नहीं होती है.
सीमा मुस्तफा ने यह भी कहा है कि अकबर को मंत्रिपद से हटा देना चाहिए. ग़ज़ाला वहाब ने अपने लेख में कहा है कि उन्होंने सीमा मुस्तफा को बताया था कि उनके साथ क्या हुआ है. सीमा मुस्तफा ने लिखा है कि ग़ज़ाला ने उनसे बात की थी मगर ये सब नहीं बताया है जो उन्होंने लिखा है. 16 दिसंबर 1999 में कृष्णा प्रसाद ने रेडिफ में Editor the Great नाम से एक लेख लिखा था. उस लेख में इन सब बातों का ज़िक्र है जिसे महिला पत्रकारों ने लिखा है. इन्हें लिखते हुए कृष्णा प्रसाद बार-बार पूछते हैं कि "Sir, are you Mr Editor the Great?" इस लेख में अकबर का नाम नहीं है. मगर उनके कॉलम बाइलाइन का बार-बार ज़िक्र है. एडिटर दि ग्रेट का ज़िक्र है. क्या आपको लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी एमजे अकबर का बचाव करेंगे? अकबर ने हाल ही में राफेल मुद्दे पर राहुल गांधी पर हमला करते हुए उनके पूरे खानदान को चोर कहा था. क्या मोदी इसके बदले कह पाएंगे कि मेरा अकबर महान. वैसे अकबर का महान होना संघ को अच्छा नहीं लगता है. मैं इतिहास वाले अकबर की बात कर रहा था. इस वाले अकबर की अंग्रेज़ी बहुत अच्छी है. भारत में अंग्रेज़ी अच्छी हो तो हुकूमत आपकी हो जाती है.
This Article is From Oct 10, 2018
एमजे अकबर पर सरकार की चुप्पी पर सवाल
NDTVKhabar News Desk
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Updated:अक्टूबर 10, 2018 23:39 pm IST
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Published On अक्टूबर 10, 2018 23:39 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 10, 2018 23:39 pm IST
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