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महाराष्ट्र, यूपी, राजस्थान में रहने की जरूरत नहीं, लौट आओ... ममता बंगालियों से क्यों कर रही यह पुकार?

पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘हमारी किसी भाषा से शत्रुता नहीं है. मैं किसी भाषा के खिलाफ नहीं हूं. मेरा मानना है कि विविधता में एकता हमारे राष्ट्र की नींव है. लेकिन अगर आप हमारी भाषा और संस्कृति को मिटाने की कोशिश करेंगे, तो हम शांतिपूर्ण तरीके से, पूरी ताकत से और राजनीतिक रूप से इसका विरोध करेंगे.’’

महाराष्ट्र, यूपी, राजस्थान में रहने की जरूरत नहीं, लौट आओ... ममता बंगालियों से क्यों कर रही यह पुकार?
  • सीएम ममता बनर्जी ने दूसरे राज्यों में काम कर रहे मजदूरों को दिया मदद का भरोसा
  • ममता बनर्जी ने अपने अभियान को तेज करते हुए सोमवार को ‘भाषा आंदोलन' शुरू किया
  • ममता ने ‘बांग्ला भाषा आंदोलन' की शुरुआत करते हुए कहा कि वह ‘‘जान दे देंगी पर अपनी भाषा नहीं छोड़ेंगी.''
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कोलकाता:

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को राज्य लौटने के इच्छुक सभी प्रवासी मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा, "मुंबई, उत्तर प्रदेश या राजस्थान में रहने की कोई ज़रूरत नहीं है. मैं आपको 'पीठा' या 'पायेश' नहीं खिला पाऊंगी, लेकिन अगर हम एक रोटी खाते हैं, तो हम यह सुनिश्चित करेंगे कि आपको भी एक रोटी मिले. आप यहां शांति से रह सकते हैं." शांतिनिकेतन में तृणमूल के पहले 'भाषा आंदोलन' मार्च से पहले उन्होंने कहा, "आपके पास पुलिस हेल्पलाइन है, हमसे संपर्क करें, हमें बताएं कि आप कब लौटना चाहते हैं, हम आपको वापस लाएंगे."

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ममता बनर्जी ने शुरू किया भाषा आंदोलन

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा विरोधी अपने आक्रामक अभियान को तेज करते हुए सोमवार को ‘भाषा आंदोलन' शुरू किया. ममता ने केंद्र और निर्वाचन आयोग पर एनआरसी को ‘पिछले दरवाजे से' लागू करने की साजिश रचने और बांग्लाभाषी प्रवासियों के खिलाफ ‘भाषाई आतंकवाद' करने का आरोप लगाया. उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित सांस्कृतिक स्थल बोलपुर से राज्यव्यापी ‘बांग्ला भाषा आंदोलन' की शुरुआत करते हुए घोषणा की कि वह ‘‘जान दे देंगी, लेकिन अपनी भाषा नहीं छोड़ेंगी.''

उन्होंने मतदाता सूची संशोधन की आड़ में बंगाली अस्मिता को मिटाने, गरीबों को मताधिकार से वंचित करने या प्रवासियों को बाहर निकालने के प्रयासों के खिलाफ खड़े होने का संकल्प लिया. उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार, निर्वाचन आयोग के साथ मिलीभगत करके मतदाता सूची में विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षक के नाम पर अल्पसंख्यकों, अन्य पिछड़ा वर्ग, गरीबों और बांग्ला भाषी मतदाताओं को निशाना बना रही है, ताकि गुप्त रूप से राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआसी) जैसी प्रक्रिया अपनाकर मतदाता सूची से वाजिब नामों को हटाया जा सके.

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SIR पर ममता बनर्जी की चेतावनी

ममता ने वैध मतदाताओं के नाम हटाने को लेकर निर्वाचन आयोग को चुनौती देते हुए चेतावनी दी कि ऐसे कदमों के ‘‘परिणाम भुगतने होंगे''. तृणमूल कांग्रेस समर्थकों और राज्य में वापस लौटे बांग्ला प्रवासियों की एक रैली का नेतृत्व करते हुए बनर्जी ने कहा, ‘‘हम भाषाई आतंक के नाम पर हमारे अस्तित्व को खतरे में डालने की इस साजिश और पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने के प्रयास को रोकेंगे.''

जब तक मैं जिंदा हूं, NRC लागू नहीं होने दूंगी

उन्होंने चेतावनी दी, ‘‘जब तक मैं जिंदा हूं, बंगाल में एनआरसी लागू नहीं होने दूंगी. मैं यहां निरुद्ध शिविर नहीं बनने दूंगी. अगर बंगाल से नाम हटाने की कोशिश करोगे... तो इसके नतीजे भुगतने होंगे. क्या आप हमारी माताओं, बहनों और हमारे सांस्कृतिक समूहों के उन प्रतिकार का सामना करने के लिए तैयार हैं, जब वे अहिंसक तरीके से आपके खिलाफ उठ खड़े होंगे?'' ममता ने उत्साहित भीड़ का अभिवादन करते हुए और टैगोर का चित्र लिए हुए टूरिस्ट लॉज चौराहे से जम्बोनी बस स्टैंड तक तीन किलोमीटर लंबा विरोध मार्च निकाला. इस दौरान उनके साथ मंत्री, पार्टी के वरिष्ठ नेता और स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधि भी मौजूद थे.

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘हमारी किसी भाषा से शत्रुता नहीं है. मैं किसी भाषा के खिलाफ नहीं हूं. मेरा मानना है कि विविधता में एकता हमारे राष्ट्र की नींव है. लेकिन अगर आप हमारी भाषा और संस्कृति को मिटाने की कोशिश करेंगे, तो हम शांतिपूर्ण तरीके से, पूरी ताकत से और राजनीतिक रूप से इसका विरोध करेंगे.'' उन्होंने पिछले सप्ताह तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं से 28 जुलाई से नए आंदोलन के लिए तैयार रहने का आह्वान किया था और इसे दूसरा ‘भाषा आंदोलन' बताया था. उन्होंने इसकी तुलना 1952 में ढाका (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में हुए ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन से की थी, जहां छात्रों ने बांग्ला को तत्कालीन पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने की मांग को लेकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.

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चुनाव आयोग पर ममता का गंभीर आरोप

संयुक्तराष्ट्र ने बाद में उस संघर्ष की स्मृति में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया. ममता ने निर्वाचन आयोग पर केंद्र के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘‘ भाजपा सरकार के एक पूर्व मंत्री अब डबल इंजन सरकार में अपने दोस्त की मदद करने के लिए मतदाता सूची से मतदाताओं के नाम हटाने की कोशिश कर रहे हैं. मैं उन्हें मतदाता सूची संशोधन के नाम पर वैध मतदाताओं को हटाने की चुनौती देती हूं. हम उन्हें अपने ही देश में बंगालियों को बेघर नहीं करने देंगे.''

उन्होंने कहा, ‘‘मैं निर्वाचन आयोग को चेतावनी देती हूं - अगर आपने बंगाल की मतदाता सूची से नाम हटाने की हिम्मत की, तो आपको छऊ नृत्य, धमासा-मडोल, शंख, झांझ और युद्ध के नगाड़े सुनाई देंगे. क्या आपने पहले ऐसी आवाजें सुनी हैं? हम आपको ये सुनाएंगे.'' ममता के इस भाषण को सुन वहां मौजूद लोगों में उत्साह की लहर दौड़ गई. उन्होंने राज्य के प्रखंड स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) को परोक्ष रूप से चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘याद रखें, बीएलओ इस राज्य के सरकारी कर्मचारी हैं. मतदाता सूची पुनरीक्षण के नाम पर लोगों को परेशान न करें.''

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मातृभाषा और मातृभूमि को कभी न भूलें

मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान बीएलओ निर्वाचन आयोग के अधिकारी के रूप में भी काम करते हैं. ममता ने बंगाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का उल्लेख करते हुए लोगों से आग्रह किया कि वे अपनी अस्मिता (गर्व), मातृभाषा और मातृभूमि को कभी न भूलें. उन्होंने कहा, ‘‘आप सब कुछ भूल सकते हैं, लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए. अगर बंगाल आजादी ला सकता है और सामाजिक सुधारों का नेतृत्व कर सकता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ भी सकता है.'' मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर प्रताड़ित किये जा रहे बांग्ला भाषी प्रवासियों से बंगाल लौटने की अपील की.

बंगालियों की वापसी के लिए ममता की योजना

उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी प्रताड़ित बंगाली प्रवासियों से वापस आने का अनुरोध कर रहे हैं. हमने वापस लौटने वालों को बसाने, आजीविका सुरक्षित करने और उनके बच्चों का स्कूल में दाखिला कराने में मदद के लिए पहले ही एक योजना तैयार कर ली है. हम पुलिस और प्रशासन के माध्यम से आपको पूरा सहयोग देंगे.' बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तीखा हमला करते हुए सवाल किया, ‘‘जब आप अरब देशों की यात्रा करते हैं और शेखों को गले लगाते हैं, तो क्या आप उनसे पूछते हैं कि वे हिंदू हैं या मुसलमान? क्या आपने मालदीव के राष्ट्रपति को गले लगाने और 5,000 करोड़ रुपये दान देने से पहले उनसे उनका धर्म पूछा था, जबकि बंगाल को उनका हक नहीं दिया गया?''

बनर्जी ने कहा, ‘‘मैं ऐसे राष्ट्र की कल्पना को स्वीकार नहीं करती जो सिर्फ बांग्ला बोलने के कारण प्रवासी की हत्या कर दे.'' मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर जारी भेदभाव पर सवाल उठाते हुए कहा कि बांग्ला दुनिया में पांचवीं और एशिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है. उन्होंने कहा, ‘‘फिर भी, बंगालियों को विभिन्न राज्यों में प्रताड़ित किया जा रहा है. यह नफरत क्यों? अगर बंगाल अन्य राज्यों से आए 1.5 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को स्वीकार कर सकता है और उन्हें आश्रय दे सकता है, तो आप अन्यत्र काम करने वाले 22 लाख बंगाली प्रवासियों को क्यों नहीं स्वीकार कर सकते?''

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‘जय बंगाल' और ‘जय हिंद'

बोलपुर विरोध मार्च सिर्फ राजनीतिक नहीं था बल्कि भावनाओं और प्रतीकों से ओतप्रोत था. ममता ने अपनी जानी-पहचानी सूती साड़ी पहनी थी और शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती का पारंपरिक दुपट्टा डाला था. उन्होंने अपने भाषण के अंत में ‘जय बंगाल' और ‘जय हिंद' का नारा लगाते हुए तृणमूल कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वे प्रत्येक जिले में ‘भाषा आंदोलन' का प्रसार करें. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘आपको सड़कों पर इन विभाजनकारी ताकतों से लड़ना होगा. अगर आप हमारे पते चुराकर हमें राज्यविहीन बनाने की कोशिश करेंगे, तो हम यह सुनिश्चित करेंगे कि आपके पास भी कोई राज्य न रहे.''

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