देश के जानेमाने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) देश में 'जन सुराज' पद यात्रा चला रहे हैं. उनकी यह यात्रा देश में राजनीतिक बदलाव के लिए हो रही है. आखिर प्रशांत किशोर आगे राजनीति में आएंगे? इस यात्रा के जरिए वो क्या हासिल करना चाहते हैं? ऐसे कई सवाल NDTV ने उनसे पूछे. जिनके जवाब उन्होंने कुछ इस तरह से दिए...
प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में एक नई राजनीतिक व्यवस्था बनाने के लिए बिहार के समाज के स्तर पर एक प्रयास किया जाएगा, जिसका नाम है 'जन सुराज' है. 'जन सुराज' कोई दल नहीं है. ये कोई सामाजिक आंदोलन भी नहीं है. ये समाज के मदद से समाज के जरिए एक नई राजनीतिक व्यवस्था बनाने का प्रयास है.
उन्होंने आगे कहा कि बिहार को काफी गलत कारणों से जाना जाता है. लेकिन अब समय आ गया है कि बिहार को जाना जाए, बिहार के लोगों में क्या काबिलियत है. उनमें जो क्षमता है, उसको एक व्यवस्था दी जाए, उसको एक सांचे में रखा जाए ताकि बिहार में एक नई व्यवस्था बने. जिससे ना बिहार में विकास हो बल्कि देश के स्तर पर भी ये चीज स्थापित की जाए कि लोग आपस में मिलकर सही मायनों में एक लोकतांत्रिक विकल्प, अपना विकल्प, जनता का विकल्प, बना सकते हैं और उसको चला सकते.
प्रशांत किशोर ने आगे कहा कि आपको मैं बता दूं कि इस देश में आजादी से पहले ये व्यवस्था सालों दशकों तक कायम थी. हमने इतिहास में पढा है, कांग्रेस के अधिवेशनों का बड़ा जिक्र होता है. आज की कांग्रेस नहीं, जो महात्मा गांधी के लीडरशिप में थी उस कांग्रेस का. उस व्यवस्था में देशभर से लोग एक जगह इकट्ठा होते थे. वो ये तय करते थे कि उस दल का उस साल के लिए कौन नेतृत्व करेगा. लोग ये मिलकर तय करते थे कि किन बात पर आंदोलन होगा, किस तरीके से उसको चलाया जाएगा. अगर ये बात आजादी से पहले लागू थी या की जा रही थी. तो इसको आज भी किया जा सकता है. बिहार के स्तर पर नहीं, पूरे देश के स्तर पर.
प्रशांत किशोर ने इंटरव्यू के दौरान कहा कि हम उन घर, उन परिवार से नहीं आती है जो पहचान लेकर पैदा हुए हैं. हमारी पहचान हमारा काम है. हमने जो दस साल किया है, वही मेरी पहचान है. अब जो कर रहे हैं और जो खड़ा कर रहे हैं, यही हमारी आगे की पहचान होगी.
देश के राजनीतिक दलों पर बात करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा नेता चाहता है कि उसके फॉलोअर्स उसकी विचारधारा में बांधकर अंधभक्त हो जाएं. विचारधारा होना बहुत अच्छी बात है. सबके पास कोई न कोई विचारधारा होनी ही चाहिए. लेकिन विचारधारा होना एक बात है और विचारधारा में अंधभक्त हो जाना दूसरी बात है. मैं अंधभक्त नहीं हूं. मैंने इस अभियान को शुरू किया है. जहां मेरी समझ है कि जब तक आप समाज के स्तर पर काम नहीं करेंगे... तब तक राजनीति में कोई परिवर्तन नहीं ला सकते हैं . भाजपा इस देश में इसलिए जीत रही है क्योंकि समाज के स्तर पर एक बड़े वर्ग को उन्होंने हिंदुत्व के नाम पर एक साथ कर लिया है.
प्रशांत किशोर ने आगे कहा कि 'जन सुराज' कोई दल नहीं. ये समाज को ये बताने का... जगाने का प्रयास है कि आप जिन बातों के लिए अपने नेताओं को दलों को दोष दे रहे हैं. अगर आप ध्यान से देखेंगे तो उसके मूल में आपसे होनेवाली गलती है. जहां पर आप वोट अपने बच्चों के भविष्य के लिए नहीं दे रहे हैं. आप शिक्षा और रोजगार की बात कर रहे हैं... लेकिन वोट आप जाति के नाम पर दे रहे है, धर्म के नाम पर दे रहे हैं.
जब तक आप अपने मुद्दों पर, शिक्षा और रोजगार, अपने बच्चों के भविष्य के लिए वोट नहीं देंगे.... तब तक सुधार नहीं हो सकता है और लोगों को ये समझाने का प्रयास है. मैं लोगों को बता रहा हूं कि भाई विकल्प आपको चाहिए तो आप मिलकर विकल्प बनाइए.
'जन सुराज' की परिभाषा देते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि समाज की मदद से एक नई राजनीतिक व्यवस्था बनाने का प्रयास है. जिसमें दल तो बने लेकिन दल सही लोगों के साथ बने. समाज के लोग मिलकर बनाए. कोई व्यक्ति या कोई परिवार ना बनाए. कोई उसका एक नेता ना हो. कोई उसका एक मालिक ना हो. बल्कि समाज के लोग की भागीदारी से दल को बनाया जाए. सब लोग इसको मिलकर बनाए और मिल कर चलाए.
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