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बुलडोजर 'जस्टिस' के बाद अब UP गैंगस्टर्स एक्ट की वैधता की जांच करेगा SC, सरकार से मांगा जवाब

जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की सुप्रीम कोर्ट की इसी पीठ ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) एक्ट, 1986 की संवैधानिक वैधता की जांच करने पर सहमति जताई है.

बुलडोजर 'जस्टिस' के बाद अब UP गैंगस्टर्स एक्ट की वैधता की जांच करेगा SC, सरकार से मांगा जवाब
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट बुलडोजर 'जस्टिस' के बाद अब उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एक्ट (Uttar Pradesh Gangsters Act) की वैधता की जांच करेगा. सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने इसको लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है और जवाब मांगा है. याचिका में कहा गया है कि यह एक्ट पुलिस को शिकायतकर्ता, अभियोजक और निर्णायक बनने तथा आरोपी की पूरी संपत्ति कुर्क करने की अनुमति देता है.

अपराधों में आरोपी लोगों की संपत्तियों पर अवैध बुलडोजर कार्रवाई पर प्रतिबंध लगाने तथा दिशा-निर्देश निर्धारित करने के 16 दिन बाद, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की सुप्रीम कोर्ट की इसी पीठ ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) एक्ट, 1986 की संवैधानिक वैधता की जांच करने पर सहमति जताई है.
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पीठ ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर यूपी सरकार को नोटिस जारी किया.

वकील अंसार अहमद चौधरी के माध्यम से दायर जनहित याचिका में अधिनियम की धारा 3, 12 और 14 के साथ-साथ 2021 के नियम 16(3), 22, 35, 37(3) और 40 को चुनौती दी गई है, जो मामलों के पंजीकरण, संपत्तियों की कुर्की, जांच और ट्रायल से संबंधित हैं.

नियम 22 में कहा गया है कि अधिनियम के तहत एक भी कार्य या चूक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने के लिए पर्याप्त होगी, जिससे आरोपी का आपराधिक इतिहास अप्रासंगिक हो जाएगा. यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, ऐसा तर्क दिया गया है.

याचिका में कहा गया है कि किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ अधिनियम के तहत फिर से एफआईआर दर्ज करना, जिसने अपराध किया है और जिसके खिलाफ पहले ही एफआईआर दर्ज हो चुकी है, दोहरा खतरा है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(2) का उल्लंघन है.

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