- दिल्ली दंगा मामले के सात आरोपियों की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.
- कोर्ट ने दोनों पक्षों को 18 दिसंबर तक दलीलों के समर्थन में दस्तावेज जमा कराने का आदेश दिया है.
- शरजील इमाम ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह दंगों में शामिल नहीं था और छह साल से जेल में है.
2020 दिल्ली दंगा मामले में आरोपी शरजील इमाम, उमर खालिद, मीरान हैदर, गुल्फिशा फातिमा, शिफा उर रहमान समेत सात आरोपियों की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. अदालत ने 18 दिसंबर तक दोनों पक्षों को अपनी दलीलों के समर्थन में दस्तावेज जमा कराने को कहा है.
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'दिल्ली दंगा में मेरी कोई भूमिका नहीं'
शरजील इमाम ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के एक मामले में जमानत देने की अपील करते हुए कहा था कि वह न तो हिंसा में शामिल था और न ही उसकी इसमें कोई भूमिका थी. वह लगभग छह साल से विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में है.
शरजील के वकील ने जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया की बेंच को बताया कि अभियोजन पक्ष ने उसके खिलाफ शीर्ष अदालत के समक्ष केवल एक ही बात रखी है, वह है उसके द्वारा दिए गए कथित 'भड़काऊ भाषण'. शरजील के वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा कि भाषणों में इस्तेमाल किए गए कुछ शब्द 'अरूचिकर' थे.
'मार खाइए, हमला मत कीजिए', ये नहीं कहा था
दवे ने पीठ से कहा, 'क्या कोई भाषण अपने आप में षड्यंत्रकारी प्रकृति का होता है? क्या ऐसा होता है? और यह ऐसा भाषण नहीं है जो केवल एकतरफा हो. मैंने दिखाया है कि उसने अहिंसा का आह्वान किया. वह कहते हैं कि आप मार खाइए, हमला मत कीजिए, वह यही कह रहे थे.' दवे के अलावा, वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद, सिद्धार्थ लूथरा और अन्य ने भी मामले में कुछ अन्य आरोपियों की ओर से अपनी दलीलें पेश कीं. शरजील को 28 जनवरी, 2020 को गिरफ्तार किया गया था और दिल्ली में दंगे 22-24 फरवरी, 2020 को हुए थे.
वकील ने कोर्ट से कहा कि सरजील लगभग छह साल हिरासत में रहने के बाद जमानत अपील कर रहा है. कृपया इस बात पर विचार करें कि उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाए. खासकर तब जब वह उन मामलों में आरोपी नहीं है, जहां वास्तविक दंगे हुए थे. वकील ने कहा कि साज़िश में विचारों का मेल शामिल होता है और इमाम दंगों से लगभग एक महीने पहले ही हिरासत में था. उन्होंने दलील दी कि दंगों के संबंध में लगभग 750 प्राथमिकी दर्ज की गईं और उनमें इमाम का नाम नहीं था.
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