- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जबरन तेज़ाब पिलाने के आरोपियों के खिलाफ हत्या के प्रयास की धारा लगाई जानी चाहिए.
- मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों को केवल गंभीर चोट की श्रेणी में रखना पर्याप्त नहीं है.
- कोर्ट ने कहा कि ऐसे अपराधों को सीधे IPC की धारा 307 के तहत चलाना चाहिए, जिससे सख्त सजा मिल सके.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि जिन मामलों में पीड़ितों को जबरन तेज़ाब पिलाया जाता है, उनमें आरोपियों के खिलाफ हत्या के प्रयास के प्रावधान लगाए जाने चाहिए. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों को केवल “गंभीर चोट पहुंचाने” की श्रेणी में रखना पर्याप्त नहीं है. मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जायमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि ऐसे अपराधों में किसी तरह का दो मत नहीं हो सकता और इन्हें सीधे धारा 307 (पुराने IPC का हत्या का प्रयास, नए BNS में सेक्शन 109) के तहत ही चलाया जाना चाहिए
सुनवाई के दौरान CJI ने कड़े शब्दों में कहा
- इस पर कोई दूसरी राय नहीं हो सकती.
- ऐसे मामलों में 307 के तहत ही ट्रायल होना चाहिए.
- दंड संहिता में भी सबसे जघन्य और अमानवीय अपराधों के लिए विशेष अपवाद जोड़ा जा सकता है.
- ऐसे लोग समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं रखते.
- ये समाज, नागरिकों और कानून के शासन—तीनों के लिए खतरा हैं .
एडिट अटैक पीड़िता शाहीन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सर्वोच्च अदालत ने शाहीन मलिक की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की. बता दें कि शाहीन मलिक 2009 की तेज़ाब हमला पीड़िता हैं. वो NGO की संस्थापक भी हैं. उन्होंने याचिका में मांग की है कि जबरन एसिड पिलाए जाने से पीड़ित लोगों को भी 2016 के विकलांगजन अधिकार अधिनियम (RPwD Act) में “एसिड अटैक विक्टिम” की परिभाषा में शामिल किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सरकार से जवाब मांगा है और कहा है कि इस मुद्दे पर स्पष्ट नीति की जरूरत है.
यह भी पढ़ें - UP : ड्यूटी जा रही महिला बैंक मैनेजर पर एसिड अटैक, बुरी तरह से जला चेहरा
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं