
- काबुल से दिल्ली तक एक अफगानी किशोर ने फ्लाइट के लैंडिंग गियर में छिपकर 94 मिनट तक जान जोखिम में डाल सफर किया.
- 1970 के बाद से कई लोग फ्लाइट में जहां-तहां छिपकर खतरनाक उड़ान भर चुके हैं, जिनमें कुछ की मौत हो गई.
- ऐसी ही एक कहानी है- 1996 में पंजाब के दो भाइयों की, जो ब्रिटिश एयरवेज की फ्लाइट में छिपकर लंदन जा रहे थे.
ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करने के हर दिन सैकड़ों मामले सामने आते हैं. कई बार लोग टॉयलेट में छिपकर भी सफर करते हैं. ट्रेन की छत पर, इंजन के किनारे या दो बोगियों को जोड़ने वाले खतरनाक हिस्से पर भी सफर करते लोगों को देखा गया है. और ऐसी खबरें पढ़ते हुए हैरानी नहीं होती. लेकिन फ्लाइट में बिना टिकट यात्रा करने की खबर वाकई हैरान कर देती है, खासकर तब, जब फ्लाइट में सीट के नीचे या टॉयलेट में छिपकर नहीं, बल्कि फ्लाइट के टायर में या लैंडिंग गियर (Landing Gear) छिपकर किसी ने यात्रा की हो. काबुल से दिल्ली की एक फ्लाइट में 13 साल के लड़के ने ऐसे ही छिपकर सफर किया.
अफगानिस्तान के कुंदुज शहर वो लड़का KAM एयरलाइंस की फ्लाइट (RQ-4401) के लैंडिंग गियर में छिपकर काबुल से दिल्ली आ गया. अफगानी किशोर ने 94 मिनट तक जिंदगी और मौत से जूझते हुए ये सफर पूरा किया.
1996 में पंजाब में रह रहे दो भाई प्रदीप सैनी और विजय सैनी की कहानी खूब चर्चा में रही. माइनस 60 डिग्री तापमान, करीब 10 घंटे की उड़ान... दोनों में से एक की मौत हो गई थी, जबकि दूसरा काफी बुरी हालत में पाया गया था. बाद में उसने मीडिया को पूरी कहानी बताई थी.

खालिस्तानी कनेक्शन का शक, देश छोड़ने की मजबूरी
पंजाब में जब खालिस्तानी आतंकियों के खिलाफ चल रहे अभियान के दौरान संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार कर कई दिनों तक पूछताछ की जाती थी. प्रदीप और विजय सैनी (Pradeep And Vijay Saini) पर भी सुरक्षाबलों को शक था कि दोनों छिपकर खालिस्तानियों की मदद करते हैं. बड़ा भाई प्रदीप 22 साल का था, छोटा विजय 18 साल का. दोनों कई बार कह चुके थे कि उनका खालिस्तानियों से कोई संबंध नहीं, लेकिन उनसे बार-बार पूछताछ जारी रही. परेशान होकर दोनों ने देश छोड़ने का फैसला लिया.
दोनों की पहचान के कुछ लोग लंदन में रहते थे. दोनों को वहीं जाना था, लेकिन उनके पास न तो पासपोर्ट थे, न ही उतने पैसे. जो थोड़े पैसे थे, उसे लेकर उन्होंने एक तस्कर से संपर्क किया. तस्कर ने उन्हें लगेज सेक्शन में छिपाकर लंदर भेजने का कमिटमेंट किया.
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-60 डिग्री तापमान, 6,700 किमी का सफर, 10 घंटे की उड़ान
सबकुछ तय हुआ. अक्टूबर की एक रात वो दिल्ली एयरपोर्ट में जा घुसे और ब्रिटिश एयरवेज की प्लेन तक पहुंचने में कामयाब हो गए. ब्रिटिश वेबसाइट द सन की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों को फ्लाइट के टायर के पास लैंडिंग गियर में घुसा दिया गया. करीब 6,700 किलोमीटर का सफर, 40 हजार फीट की ऊंचाई और 10 घंटे की उड़ान... दोनों को वहीं छिपकर यात्रा करनी थी.
इतनी ऊंचाई में तापमान माइनस 60 डिग्री तक पहुंच जाता है. दोनों के पास वुलन कपड़े तक नहीं थे. दिल्ली से हीथ्रो एयरपोर्ट तक की ऐसी खतरनाक यात्रा में बड़ा भाई प्रदीप सैनी तो जिंदा बच गया, लेकिन दुर्भाग्य से छोटे भाई की मौत हो गई.

डगमगाते कदम, पूरी तरह भ्रम की हालत में मिले सैनी
हीथ्रो एयरपोर्ट पर प्लेन के लैंड होने के कुछ ही घंटे बाद एयरपोर्ट के कर्मचारियों ने प्रदीप सैनी को डगमगाते कदमों के साथ पूरी तरह भ्रम की हालत में पाया. उसे अस्पताल ले जाया गया जहां उसे गंभीर हाइपोथर्मिया (बहुत तेज ठंड) का ट्रीटमेंट दिया गया. अच्छे इलाज के बाद उन्हें उबरने में लंबा समय लगा.
प्रदीप का कहना था कि दोनों भाई बच गए होते तो अलग ही बात होती, दोनों मर गए होते, तो भी अलग बात थी, लेकिन मैंने अपना छोटा भाई खो दिया. वो मेरा दोस्त भी था. हम साथ पले-बढ़े थे. प्रदीप ने Mail on Sunday से बात करते हुए बताया था कि वो 6 साल तक डिप्रेशन में रहे.

द डेली मिरर ने 1997 में दीपक सैनी का इंटरव्यू किया था, जिसमें उन्होंने पूरी कहानी बताई थी.
Photo Credit: mirror.co.uk (साभार)
अब हीथ्रो एयरपोर्ट पर ड्राइवरी करते हैं प्रदीप
शुरुआत में प्रदीप सैनी को निर्वासन की धमकी भी दी गई थी. हालांकि लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उन्हें ब्रिटेन में रहने की अनुमति मिल गई. प्रदीप, वेम्बले, नॉर्थ लंदन में रहते हैं और हीथ्रो एयरपोर्ट पर एक केटरिंग कंपनी के ड्राइवर के रूप में काम करते हैं. उन्होंने बाद में शादी भी की और उनके दो बेटे हुए.
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फ्लाइट में छिपकर सफर करने की चाहे जो भी मजबूरी रही हो, लेकिन ये पूरी तरह से अवैध होता है. बाकी जानलेवा तो है ही. कारण कि ज्यादातर मामलों में मौत हो गई. कुछ चर्चित मामलों पर नजर डालते हैं.
2015: जोहान्सबर्ग से लंदन की उड़ान
एक 24 वर्षीय व्यक्ति जोहान्सबर्ग से लंदन की 11 घंटे की उड़ान के दौरान विमान के लैंडिंग गियर स्पेस में छिपकर जीवित बच गया. दूसरा व्यक्ति जो उसी विमान में था, उसका शव हीथ्रो हवाई अड्डे के पास एक छत पर मिला. विशेषज्ञों ने माना कि इतने कम तापमान और ऑक्सीजन की कमी में जीवित रहना असंभव है. डॉक्टर जैक क्रेइंडलर के अनुसार, अगर वह ऑक्सीजन के बिना बच गया तो उसके जेनेटिक बनावट का अध्ययन किया जाना चाहिए. कुछ लोगों ने अनुमान लगाया कि उसने बचने के लिए अपने साथ ऑक्सीजन सिलेंडर रखा होगा, पर इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है.
1969: हवाना से मैड्रिड की उड़ान
1969 में, 22 वर्षीय अरमांडो सोकारस रामिरेज़ हवाना से मैड्रिड की उड़ान में विमान के पहिए के डिब्बे में छिपकर बच गए. उन्होंने बताया कि उन्हें बहुत ठंड, नींद और कानों में बहुत दर्द महसूस हुआ. इस उड़ान की ऊंचाई 29,000 फीट थी, जो जोहान्सबर्ग से लंदन की उड़ान से कम थी, इसलिए वहां का तापमान और ऑक्सीजन स्तर थोड़ा बेहतर था. उन्हें शीतदंश/बहुत ज्यादा ठंड (frostbite) हुआ , लेकिन कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ.
2014: सैन जोस से हवाई की उड़ान
2014 में, 15 वर्षीय याह्या अब्दी सैन जोस से हवाई के लिए एक बोइंग 767 की 5 घंटे की उड़ान में जीवित बच गए. इस उड़ान की ऊंचाई 38,000 फीट थी, जो बेहद खतरनाक थी. अमेरिकी विमानन विशेषज्ञ जॉन नैन्स के अनुसार, अगर यह सच है तो यह एक चमत्कार है.
ऐसे और भी कई मामले
- 2000 में, फिदेल मारुही ताहिती से लॉस एंजिल्स की 4,000 मील की यात्रा में जीवित बच गए.
- 2002 में, विक्टर अल्वारेज मोलिना क्यूबा से मॉन्ट्रियल, कनाडा की 4 घंटे की उड़ान में जीवित बच गए.
- 2010 में, एक 20 वर्षीय रोमानियाई व्यक्ति वियना से हीथ्रो की उड़ान में बच गया, लेकिन यह उड़ान 25,000 फीट से कम ऊंचाई पर थी.
- 2012 में, जोस माताडा का शव लंदन में एक आवासीय इलाके में मिला, माना जाता है कि वह अंगोला से आ रही उड़ान से गिरे थे.
प्रदीप की कहानी भी उन स्टोवे (छिपकर यात्रा करने वाले) की कहानियों में से एक है, जो जहाज के पहिये में छिपकर यात्रा कर चुके हैं.
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