देशद्रोह कानून मामला : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब के लिए दिया कल तक का वक्‍त

केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) को बताना है कि जब तक वो देशद्रोह कानून की समीक्षा कर रहे हैं तब तक इस कानून के लागू करने पर उसका क्या फैसला है?

देशद्रोह कानून मामला : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब के लिए दिया कल तक का वक्‍त

देशद्रोह कानून मामले में सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई बुधवार को होगी

नई दिल्‍ली :

सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून मामले (sedition law) पर केंद्र सरकार को कल तक का समय दिया है. केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) को बताना है कि जब तक वो देशद्रोह कानून की समीक्षा कर रहे हैं तब तक इस कानून के लागू करने पर उसका क्या फैसला है? यानी जब तक केंद्र सरकार इस कानून की समीक्षा करे, तब तक जिन लोगों पर IPC 124-A के तहत आरोप है उनके केस का क्या होगा और क्या आगे फ़ैसला होने तक नए मामले इसके तहत दर्ज होंगे या नहीं? इस मामले की अगली सुनवाई अब कल यानी बुधवार को होगी. 

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसने राजद्रोह कानून के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का फैसला किया है. दो दिन पहले सरकार ने देश के औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून का बचाव किया था और सुप्रीम कोर्ट से इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट में दायर नए हलफनामे में केंद्र ने कहा, "आजादी का अमृत महोत्सव (स्वतंत्रता के 75 वर्ष) की भावना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि में, भारत सरकार ने धारा 124ए, देशद्रोह कानून के प्रावधानों का पुनरीक्षण और पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है." सरकार ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं के आधार पर मामले में फैसला करने से पहले सुप्रीम कोर्ट से समीक्षा की प्रतीक्षा करने का आग्रह किया.

देशद्रोह कानून के व्यापक दुरुपयोग और इसको लेकर केंद्र और राज्यों की व्यापक आलोचना से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किए गए प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही है.शनिवार को केंद्र ने देशद्रोह कानून और संविधान पीठ के 1962 के फैसले का बचाव करते हुए इसकी वैधता को बरकरार रखने की बात कही थी. सरकार ने कहा था कि लगभग छह दशकों तक "समय की कसौटी" का सामना किया जा चुका है और इसके दुरुपयोग के उदाहरणों को लेकर कभी भी इस पर पुनर्विचार करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता.

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