मध्य प्रदेश : खच्चर ढो रहे हैं पानी, जानें गहराता 'पेयजल संकट' कैसे बन रहा विवाह में रोड़ा

विदिशा जिले में जगहों में पानी के टैंकर पर झूमते-झपटते लोग दिख जाएंगे. यहां रहने वाली गीताबाई कहती हैं कि हमारे बच्चे साइकिल से पानी ला रहे हैं, टैंकर का पता नहीं है.

मध्य प्रदेश : खच्चर ढो रहे हैं पानी, जानें गहराता 'पेयजल संकट' कैसे बन रहा विवाह में रोड़ा

मध्यप्रदेश के गांवों में गहराया 'पेयजल संकट'

भोपाल:

देशभर में जल जीवन मिशन की खूब चर्चा है, लेकिन मध्यप्रदेश में 2024 तक भी शायद काम पूरा हो पाए. क्योंकि 13 हजार गांवों की जमीन में पानी नहीं होने से सिंगल विलेज स्कीम अब तक नहीं बन पाई. रूस-यूक्रेन युद्ध से भी पाइप के रॉ मटेरियल के दामों में खासी बढ़ोतरी हुई है, पीएचई विभाग में कर्मचारी कम हैं और जहां बरसों से पानी नहीं है वो गांव आज भी उपेक्षा के ही शिकार हैं. सरकारी दावा है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए - 30,600 करोड़ रु. से अधिक की नल जल योजनाएं स्वीकृत की गई हैं. 2 साल में 6000 करोड़ रुपये खर्च कर 40% घरों तक नल का पानी पहुंच गया है. 4270 से अधिक गांवों में 100% नल-जल का कनेक्शन दिया जा चुका है. 48,75,000 घरों में नल कनेक्शन पहुंच गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में 5.57 लाख हैंडपंप हैं, जिसमें 95.80% हैंडपंप चालू हैं, और 16,915 नल जल कनेक्शन मिल गये हैं.

लेकिन हकीक़त में डिंडौरी के अझवार गांव में मुनादी हुई, माता-बहनों सब सुनो, हैंडपंप बस स्टैंड में दो मटके ले जाओ पानी भरके... घर जाओ, 2 मटके से 3-4 मटका लिया तो कार्रवाई होगी. पंचायत मजबूर है सारे जल स्रोत सूख गये हैं. पानी को लेकर झगड़ा आम है, ऐसे में ये फैसला पंचायत ने सर्वसम्मति से लिया है. बड़वानी में लाइझापी गांव में भीषण पेयजल संकट से लोग जूझ रहे हैं. लोग सारे काम छोड़कर पानी की जुगत में लगे रहते हैं. गांववाले कहते हैं कि पानी संकट के चलते गांव की 10 से ज्यादा बहुएं घर छोड़कर चली गईं. 150 से ज्यादा युवकों की शादी नहीं हो रही. वहां के ग्रामीण देवराम कहते हैं कि 100-150 के लगभग लड़के कुंवारे हैं, 10 लड़कियां शादी के बाद मायके चली गई हैं.क्या करें पानी की परेशानी है. गांव में वृद्ध गियानी बाई कहते हैं कि सुबह 5 बजे उठकर 2-3 किलोमीटर जाना पड़ता है, कई घरों की टापरी है. नाले का पानी पीते हैं, क्या करें.

इस जिले के गोलगांव, खैरवानी और सेमलेट में महिलाएं, झिरी और गड्ढों से पानी भर रहे हैं. खच्चरों में पानी ढोया जा रहा है. मासूम बच्चे भी सर पर पानी के बर्तन रखकर ले जाने को मजबूर हैं. पशुओं के साथ सामाजिक न्याय की ये तस्वीर पशुपालन एवं सामाजिक न्याय मंत्री प्रेम सिंह पटेल के विधानसभा की है. वो हंसते हुए कहते हैं शादी तो ऐसी चीज है पानी मिले ना मिले, जोड़े बिना रह नहीं सकते. देश के प्रधानमंत्री कितने घंटे काम करते हैं माननीय मुख्यमंत्री रात दिन वो हमसे भी कहते हैं ... नर्मदा जी का पानी होती से बड़वानी तक जा रहा है. रायसेन जिले के फतेहपुर में गंदे पानी का ये कुंआ ही प्यास बुझाने के काम आता है. 0ये इलाका चिकित्सा मंत्री डॉ प्रभूराम चौधरी का है.

विदिशा जिले में जगहों में पानी के टैंकर पर झूमते-झपटते लोग दिख जाएंगे. यहां रहने वाली गीताबाई कहती हैं कि हमारे बच्चे साइकिल से पानी ला रहे हैं, टैंकर का पता नहीं है. वहीं पुष्पाबाई का कहना है नगरपालिका के नल लगे हैं लेकिन समस्या हल नहीं होती क्योंकि पानी आती ही नहीं. आपको लग रहा है, हम दूर-दराज भटक रहे हैं, लेकिन हकीकत राजधानी से भी दूर नहीं है. भोपाल शहर में ऑशिमा मॉल के पीछे की बस्ती, वॉर्ड 53 के प्रभारी को पता नहीं ...हमने उनको फोन भी किया ... यहां टैंकर ही आसरा है.. लोग काम धाम छोड़कर गर्मियों में टैंकर की राह देखते हैं.

जगदीश कुशवाहा मज़दूरी करते हैं, दिन के 11 बजे घर में बैठे थे. जब हमने वजह पूछी तो कहा पानी की प्रॉब्लम है, बाई को छोड़ना पड़ता है. कभी हम भी रूकते हैं, पानी का कोई टाइम नहीं है. वहीं ममता कुशवाहा ने कहा मेरे भाई, बाप सब पानी के चक्कर में रहते हैं, काम पर वक्त से नहीं जा पाते. सब्जी बेचने वाले उपदेश गिरी नाराज़ होते हुए कहते हैं कोई टाइम नहीं है टैंकर का ठेला भरा खड़ा है हम पानी के इंतजार में खड़े हैं.

आपको लगता होगा मुख्यमंत्री जी कुछ करते नहीं हैं ... वो नवंबर में अपने गृहगांव में अधिकारियों को धमका कर गये थे. कहा था क्या अब मुख्यमंत्री एक-एक टोंटी चेक करेगा? हम्माली करेगा? 15 दिन का समय दे रहा हूं. ग्रामीणों की समस्या हल करो और मुझे रिपोर्ट दो. इसके बाद किसी की शिकायत आई तो फिर खैर नहीं. फिर तुम यहां नहीं रहोगे. एक-एक को ठीक कर दूंगा'.

वैसे अप्रैल में फिर पहुंचे तो हालात जस के तस थे, सो सुबह 6.30 बजे सारे अधिकारियों के साथ बैठक ली लेकिन हालात ये तस्वीरें बता रही हैं. 2024 तक हालात शायद ही बदलें क्योंकि पीएचई ने 6500 करोड़ की लागत से 18000 में से 14000 गांवों में ही काम शुरू किया है. पीएचई और जल निगम ने जिन गांवों में काम शुरू किया है उनमें 40% में ही काम पूरा हो पाया है. राज्य में 10000 टंकियां बनना है, जिसके लिये 40,000 श्रमिक चाहिये, एचडी-ऑयरन पाइप, पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने से निर्माण लागत बढ़ी है इससे भी काम में देरी हो रही है. वैसे इतनी तकलीफदेह तस्वीरों के बाद एक खुशखबरी जलसंकट से निबटने पीएचई विभाग ने 400 इंजीनियरों की भर्ती की योजना बनाई है, 2 महीने में पद भर दिये जाएंगे शायद तब तक बारिश से जल स्रोत भी.

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