- अयोध्या के राम मंदिर में PM मोदी ने धर्म ध्वजा फहराई, जिसमें मोहन भागवत और योगी आदित्यनाथ उपस्थित थे.
- प्रधानमंत्री मोदी ने कोविदार वृक्ष की पुनः स्थापना को भारत की स्मृति और पहचान के पुनरुद्धार के रूप में बताया.
- कोविदार वृक्ष त्रेतायुग में अयोध्या का राजचिन्ह था और राम राज्य की राजसत्ता तथा धर्म का प्रतीक माना जाता है.
अयोध्या के राम मंदिर में ध्वजारोहण संपन्न हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धर्मध्वजा फहराई. इस दौरान उनके साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक सेवक संघ के सरसंचालक मोहन भागवत और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद रहे. ध्वजारोहण के बाद पीएम मोदी ने रामभक्तों को संबोधित किया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामभक्तों को संबोधित करते हुए कहा, 'आज संपूर्ण भारत, संपूर्ण विश्व राममय है. हर रामभक्त के हृदय में अद्वितीय संतोष, असीम कृतज्ञता, अपार अलौकिक आनंद है. सदियों के घाव भर रहे हैं. सदियों की वेदना आज विराम पा रही है. सदियों का संकल्प आज सिद्धि को प्राप्त हो रहा है. आज उस यज्ञ की पूर्णावती है, जिसकी अग्नि 500 वर्ष तक प्रज्ज्वलित रही. जो यज्ञ एक पल भी आस्था से डिगा नहीं, एक पल भी विश्वास से टूटा नहीं.'
पीएम मोदी ने किया कोविदार वृक्ष का उल्लेख
अपने भाषण के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी ने कोविदार वृक्ष का जिक्र किया. पीएम मोदी ने कहा, 'आज, जब राम मंदिर के प्रांगण में कोविदार वृक्ष की पुनः स्थापना की जा रही है, तो यह केवल एक वृक्ष की वापसी नहीं है. यह हमारी स्मृति की वापसी है. यह हमारी पहचान का पुनः जागरण है. कोविदार वृक्ष हमें याद दिलाता है कि जब हम भूल जाते हैं कि हम कौन हैं, तो हम स्वयं को खो देते हैं और जब हमारी पहचान वापस आती है, तो उसके साथ पूरे राष्ट्र का साहस और आत्मविश्वास भी लौट आता है.' यदि हमारे राष्ट्र को आगे बढ़ना है, तो हमें अपनी विरासत पर गर्व करना होगा.'

पीएम मोदी ने राम मंदिर पर फहराई धर्म ध्वजा.
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ध्वज पर बने कोविदार वृक्ष के क्या मायने?
इस ध्वज के डिजाइनर ललित मिश्रा मिश्रा के मुताबिक, कोविदार वृक्ष को ध्वज पर स्थान देना केवल पौराणिक अवधारणा नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के महत्व का संदेश भी है. त्रेता काल के पवित्र वृक्ष को ध्वज पर अंकित करना ऐतिहासिक और पर्यावरणीय दोनों दृष्टि से अत्यंत प्रतीकात्मक है. ध्वज गुजरात में तैयार किया गया है और इसमें विशेष प्रकार के कपड़े का उपयोग हुआ है. यह कपड़ा इस तरह विकसित किया गया है कि उस पर धूल, मिट्टी और पानी का असर कम से कम हो. यानी मौसम जैसी भी स्थिति हो, ध्वज सदैव स्वच्छ और सजीव दिखाई देगा.
मान्यता है कि कोविदार प्राचीन काल का पहला हाइब्रिड वृक्ष था, जिसे ऋषि कश्यप ने पारिजात और मंदार को मिलाकर बनाया था. इस वृक्ष पर बैंगनी रंग के सुगंधित फूल खिलते हैं. इसकी पौराणिक उत्पत्ति इसे अत्यंत दिव्य और शुभ बनाती है, इसी कारण इसे राम ध्वज में पुनः शामिल किया गया है.
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त्रेतायुग में अयोध्या का राजचिन्ह था कोविदार वृक्ष
वहीं दूसरी तरफ यह त्रेतायुग में अयोध्या का राजचिन्ह था. यह राम राज्य की राजसत्ता, शौर्य और धर्म का प्रतीक माना जाता था. त्रेता के बाद अब कलियुग में फिर से अयोध्या में राम मंदिर के मुख्य शिखर पर कोविदार वृक्ष राम राज्य के संकल्पों की याद दिलाता रहेगा.
वाल्मीकि रामायण में जिक्र
इस ध्वज के डिजाइनर ललित मिश्रा ने कहा, 'यह ध्वज अनजाने में खोजा गया था. मैंने मेवाड़ की सचित्र रामायण के चित्रों में से एक में अयोध्या का ध्वज देखा. मुझे वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में इस ध्वज का संदर्भ मिला. ध्वज पर पेड़ मंदार और पारिजात वृक्षों का एक संकर है, जिसे ऋषि कश्यप ने बनाया था, जो पौधों के संकरण में शुरुआती प्रयोगों में से एक हो सकता है. मुझे कोविदार और कचनार के पेड़ की पहचान स्थापित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा क्योंकि दोनों का जैविक नाम एक ही था. मुझे खुशी है कि ध्वज इतने लंबे समय के बाद उस स्थान पर वापस आ गया है जहां से इसकी उत्पत्ति हुई थी.'
इस ध्वज में क्या खास है?
बता दें कि यह ध्वज न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है बल्कि भारतीय अध्यात्म, इतिहास और पर्यावरणीय संदेशों की गहराई भी समेटे हुए है. विशेष डिजाइन के इस ध्वज की लंबाई 11 फीट और चौड़ाई 22 फीट रखी गई है, जो अपने आप में भव्य और अनोखा है.
ध्वज को आधुनिक तकनीक और पारंपरिक भावनाओं के संगम के साथ तैयार किया गया है, जिससे यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि शास्त्रीय संदर्भों का भी प्रमाण प्रस्तुत करता है. ध्वज में तीन मुख्य प्रतीकों- ॐ, सूर्य और कोविदार वृक्ष को अंकित किया गया है, जो इसकी सबसे बड़ी विशेषता मानी जा रही है.
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सूर्य भगवान राम के सूर्यवंशी वंश होने का प्रतीक है, जो शौर्य, तेज और पराक्रम की ऊर्जा दर्शाता है. वहीं ॐ सनातन संस्कृति के अध्यात्म, अनंतत्व और निरंतर गतिशीलता का प्रतीक है. डिजाइनर ललित मिश्रा बताते हैं कि ‘ॐ' का समावेश यह संदेश देता है कि सनातन न कभी नष्ट होता है, न समाप्त, वह निरंतर परिवर्तन और सृजनशीलता के साथ आगे बढ़ता रहता है. सबसे कठिन लेकिन महत्वपूर्ण भाग था कोविदार वृक्ष की पहचान. त्रेता युग के इस वृक्ष का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में, विशेष रूप से अयोध्या कांड में कई बार मिलता है.
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