- संसद की संयुक्त समिति को एक देश एक चुनाव से जुड़े संविधान संशोधन बिल पर 15 दिसंबर तक अपनी रिपोर्ट देनी थी
- समिति का कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव लोकसभा में पेश किया जाएगा ताकि रिपोर्ट मार्च के अंत तक आ सके
- अभी समिति को चुनाव आयोग और अन्य विशेषज्ञों की राय लेने की प्रक्रिया पूरी करनी बाकी है
एक देश एक चुनाव से जुड़े संविधान संशोधन बिल पर अपनी राय देने के लिए संयुक्त समिति को संसद के शीतकालीन सत्र के आख़िरी हफ़्ते के पहले दिन तक समय दिया गया था. उस लिहाज से समिति का कार्यकाल 15 दिसंबर को ख़त्म हो रहा है. देश में लोकसभा चुनाव और सभी राज्यों के विधानसभा चुनावों को एक साथ सम्पन्न कराने से जुड़े 129वें संविधान संशोधन बिल की समीक्षा का जिम्मा संसद की संयुक्त समिति को सौंपा गया था. इस समिति का कार्यकाल 15 दिसंबर को ख़त्म हो रहा था, जिसे बढ़ाने का फ़ैसला आज लिया जाएगा.
समिति की रिपोर्ट मार्च के अंत तक आने का ही अनुमान
समिति का कार्यकाल बढ़ाने के लिए एक प्रस्ताव आज लोकसभा में पेश किया जाएगा. प्रस्ताव पेश करेंगे समिति के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद पी पी चौधरी. प्रस्ताव में कहा गया है कि समिति का कार्यकाल अगले साल जनवरी में शुरू होने वाले संसद के बजट सत्र के आख़िरी हफ़्ते तक बढ़ाया जाए. इसका मतलब अब इस विषय पर समिति की रिपोर्ट मार्च के अंत तक आने का ही अनुमान है.
विशेषज्ञों और इससे जुड़े अहम संस्थानों की राय ली जानी बाकी
समिति के सूत्रों का कहना है कि अभी इस मुद्दे पर कई और विशेषज्ञों और इससे जुड़े अहम संस्थानों की राय ली जानी बाकी है. उदाहरण के लिए, चुनाव आयोग से अभी तक समिति उनकी राय नहीं ले पाई है. 10 दिसंबर को हुई समिति की पिछली बैठक में चुनाव आयोग के अधिकारियों को बुलाया गया था, लेकिन किसी कारणवश वो नहीं आ सके. इसलिए अब आयोग के अधिकारियों से बाद में राय ली जाएगी. इस मामले में चुनाव आयोग की राय सबसे अहम मानी जा रही है, क्योंकि एक साथ चुनाव करवाने की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर होगी.
एक साथ चुनाव संविधान सम्मत नहीं- लॉ कमीशन
समिति के सामने 4 दिसंबर को लॉ कमीशन ऑफ इंडिया ने अपनी राय रखी थी. कमीशन ने एक देश एक चुनाव की परिकल्पना को संविधान सम्मत बताया था. कमीशन ने कहा था कि पूरे देश में चुनाव एक साथ करवाने से मतदाताओं के वोट देने के अधिकार का भी उल्लंघन नहीं होता है. कपिल सिब्बल जैसे संविधान के जानकारों ने भी समिति के सामने अपनी राय रखी है और उनके मुताबिक़, एक साथ चुनाव संविधान सम्मत नहीं है. एक देश एक चुनाव को मोदी सरकार ने बड़ा मुद्दा बनाया है और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी वकालत कर चुके हैं.
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