भारत में इस साल 31.2 करोड़ महिलाओं सहित 64.2 करोड़ मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव में भाग लेकर एक विश्व रिकॉर्ड बनाया और इस साल सरकार ने निचले सदन और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए एक विधेयक लाकर चुनावी सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया.
मतदान प्रक्रिया 44 दिन तक चली
जम्मू-कश्मीर में एक दशक के बाद चुनाव हुए. इस साल हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में भी नयी सरकारें चुनी गईं. इस साल लोकसभा चुनावों के दौरान मतदान प्रक्रिया 44 दिन तक चली जो 1951-52 में हुए पहले संसदीय चुनावों के बाद दूसरी सबसे लंबी अवधि है. पहले संसदीय चुनावों में मतदान प्रक्रिया चार महीने से अधिक समय तक चली थी. देश में आम चुनाव के लिए मतदान प्रक्रिया की सबसे छोटी अवधि 1980 में थी और यह सिर्फ चार दिन थी.
मतगणना तक चुनावी प्रक्रिया में कुल 82 दिन लगे
निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावों की घोषणा से लेकर मतगणना तक चुनावी प्रक्रिया में कुल 82 दिन लगे. आयोग ने 16 मार्च को लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की थी जिससे एक दिन पहले, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने एक साथ चुनाव कराने पर अपनी बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट पेश की थी.
इस समिति ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों (नगरपालिकाओं और पंचायतों) के चुनाव एक साथ चरणबद्ध तरीके से कराने का सुझाव दिया था, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘‘पहले कदम के रूप में'' केवल लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का निर्णय लिया.
विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लगभग 90 मिनट की चर्चा और मत विभाजन के बाद संविधान (129वां संशोधन) विधेयक एवं संघ राज्यक्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक को 17 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया जो भाजपा के चिरकालिक सपने को पूरा करने की दिशा में पहला कदम था.
पहले विधेयक के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता है और इसके लिए उपस्थित एवं मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी, जबकि दूसरा विधेयक एक ‘‘साधारण'' विधेयक है.
विधेयकों को गहन समीक्षा और व्यापक विचार-विमर्श के लिए दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेज दिया गया है. यह 39 सदस्यीय समिति पहली बार आठ जनवरी को बैठक करेगी. लोकसभा चुनाव के दौरान अत्यधिक गर्मी के कारण करीब 50 मतदान कर्मियों की मौत हो गई.
मतदान प्रक्रिया के दौरान चुनाव प्राधिकरण पर समान अवसर नहीं देने और मतदान के आंकड़ों में हेराफेरी करने समेत कई आरोप लगाए गए. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर भी एक बार फिर सवाल उठाए गए और उच्चतम न्यायालय ने फिर कहा कि मशीनों को हैक नहीं किया जा सकता या उनमें हेराफेरी नहीं की जा सकती और ईवीएम मतमत्रों की तुलना में अधिक विश्वसनीय हैं.
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