
भाजपा के खिलाफ 2024 के लोकसभा मुकाबले के लिए विपक्ष को एकजुट करने के संघर्ष के बीच विपक्ष के शीर्ष नेताओं में से एक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगले महीने देश भर में अन्य नेताओं से संपर्क करने की शुरुआत कर सकते हैं. उन्होंने वाल्मीकिनगर में संवाददाताओं से कहा, "मैं निश्चित रूप से ऐसा करूंगा... (विधानसभा) सत्र समाप्त होने के बाद."
पीएम नरेंद्र मोदी के लिए तीसरे कार्यकाल की इच्छा रखने वाली बीजेपी लगातार चुनावी अभियान के मोड में है. दूसरी तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' इस महीने के अंत में समाप्त होने वाली है. जेडीयू नेता नीतीश कुमार का विपक्षी एकता के लिए आगे बढ़ना उनके अनिवार्य अभियान का दूसरा चरण होगा. लोकसभा चुनाव करीब 15 महीने बाद होगा.
राहुल गांधी और बंगाल की ममता बनर्जी के साथ फोटो खिंचवाना और इस संबंध में चर्चा नीतीश कुमार के एजेंडे में शामिल रहने की संभावना है. विपक्ष में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के पास सबसे अधिक लोकसभा सीटें हैं.
नीतीश कुमार ने अगस्त में तेजस्वी यादव की आरजेडी और कांग्रेस से फिर से गठबंधन करके बीजेपी का साथ छोड़ दिया था. इसके बाद वे दिल्ली गए थे और कई विपक्षी नेताओं से मिले थे. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर), जिनकी अपनी खुद की राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर महत्वाकांक्षाएं हैं, ने भी उस समय नीतीश कुमार से मुलाकात की थी.
नीतीश कुमार ने जोर देकर कहा है कि वे यह सब अपने लिए नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा है कि, "मैं केवल विपक्ष को एकजुट करना चाहता हूं." उनके राजनीतिक लचीलेपन को देखते हुए बहुत से लोग उन पर भरोसा नहीं करते हैं.
बिहार में इस बात की लगातार चर्चा है कि 71 वर्षीय नीतीश कुमार दिल्ली जा सकते हैं और बिहार में अपनी अधिकांश जिम्मेदारियां, या यहां तक कि कुर्सी भी अपने डिप्टी सीएम 33 वर्षीय तेजस्वी यादव को सौंप सकते हैं.
नीतीश कुमार के कई बयानों की व्याख्या जेडीयू के आजेडी में विलय की संभावनाओं के रूप में की गई है. हालांकि कुछ इसे महज निकटता के रूप में देखते हैं. तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद यादव के पुराने सहयोगी होने के कारण नीतीश कुमार को चाचा कहते हैं.
राहुल गांधी ने अपनी पार्टी को धर्मनिरपेक्ष आदर्शों के साथ एक "एकजुट करने वाली शक्ति" बताया है. उन्होंने बीजेपी और आरएसएस की "घृणास्पद विचारधारा" के खिलाफ अपना 'एकजुट भारत मार्च' खड़ा किया है. लेकिन क्षेत्रीय दल किसी भी संयुक्त मोर्चे में महत्वपूर्ण हैं, उस विशाल ताकत के खिलाफ जो अब बीजेपी है.
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