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37 साल बाद मिला इंसाफ, लेकिन जीत देखने के लिए नहीं रहा रेलवे कर्मचारी... सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की बर्खास्तगी

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ के आदेश को रद्द करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के उस निर्णय को बहाल किया है, जिसने 2002 में TTE की बर्खास्तगी को रद्द कर दिया था. 

37 साल बाद मिला इंसाफ, लेकिन जीत देखने के लिए नहीं रहा रेलवे कर्मचारी... सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की बर्खास्तगी
सुप्रीम कोर्ट ने TTE के कानूनी वारिसों को सेवा और पेंशन संबंधी सभी लाभ 3 महीने में देने के आदेश दिए. (फाइल) 
  • सुप्रीम कोर्ट ने एक TTE की बर्खास्तगी रद्द कर इंसाफ दिया, लेकिन उसे देखने के लिए वह जीवित नहीं है.
  • यह मामला 31 मई 1988 का है, जब रेलवे सतर्कता टीम ने TTE पर यात्रियों से रिश्वत मांगने सहित कई आरोप लगाए थे.
  • सुप्रीम कोर्ट ने 37 साल पुराने मामले में TTE के वारिसों को सेवा और पेंशन से जुड़े सभी लाभ देने का आदेश दिया.
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नई दिल्‍ली :

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को रेलवे के एक ट्रैवलिंग टिकट एग्जामिनर (Travelling Ticket Examiner) की 37 साल पुरानी बर्खास्तगी को रद्द करते हुए कहा है कि अनुशासनात्मक जांच की रिपोर्ट “भ्रामक और साक्ष्यों से रहित” थी. हालांकि खास बात ये है कि इस TTE को इंसाफ तो मिला लेकिन इस कानूनी जीत को देखने के लिए वो दुनिया में नहीं है. 

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ के आदेश को रद्द करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (Central Administrative Tribunal) के उस निर्णय को बहाल किया है, जिसने 2002 में TTE की बर्खास्तगी को रद्द कर दिया था. 

ये है पूरा मामला 

यह मामला 31 मई 1988 का है, जब एक रेलवे सतर्कता टीम ने दादर–नागपुर एक्सप्रेस में जांच के दौरान TTE पर यात्रियों से रिश्वत मांगने, अतिरिक्त नकदी रखने, किराए का अंतर न वसूलने और ड्यूटी पास में हेराफेरी करने के आरोप लगाए थे. 

इस मामले में जांच अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर 1996 में उन्‍हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था.  

हालांकि CAT ने पाया कि जांच में गंभीर खामियां थीं. शिकायतकर्ता से जिरह का अवसर नहीं दिया गया और बाकी गवाहों ने भी अभियोजन का साथ नहीं दिया. इसके बावजूद हाई कोर्ट ने CAT के आदेश को पलट दिया था.  

जांच अधिकारी के निष्कर्ष भ्रामक: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की इस दखलअंदाजी की आलोचना करते हुए कहा कि जब जांच अधिकारी के निष्कर्ष भ्रामक और साक्ष्यों के विपरीत हों तब CAT को दंड आदेश रद्द करने का पूरा अधिकार है. 

पीठ ने कहा कि सभी आरोप निर्णायक रूप से सिद्ध नहीं हुए थे और CAT ने रिकॉर्ड के आधार पर उचित निर्णय दिया था.  

अदालत ने कहा कि यह घटना 31 मई 1988 की है यानी 37 वर्ष से अधिक पुरानी है. इस दौरान कर्मचारी का निधन हो चुका है. अतः हम आदेश देते हैं कि मृतक कर्मचारी के कानूनी वारिसों को सभी सेवा संबंधी और पेंशन संबंधी लाभ तीन माह के भीतर प्रदान किए जाएं. 

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