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अंधविश्वास और डायन के नाम पर दम तोड़ती इंसानियत... बिहार में पंचायत के तुगलकी फरमान की भेंट चढ़ गई 5 जिंदगी

पूर्णियां जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर मुफस्सिल थाना क्षेत्र के रजीगंज पंचायत के टेटगामा उरांव टोला में डायन होने की आशंका में एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जला दिया गया और शव को एक पानी-क्षेत्र में जलकुंभी के नीचे दबा दिया गया.

  • पूर्णिया के टेटगामा गांव में डायन प्रथा के कारण पांच लोगों की हत्या हुई है. अंधविश्वास और झाड़-फूंक की परंपरा के चलते यह नरसंहार हुआ.
  • मृतकों में तीन महिलाएं और परिवार का मुखिया शामिल हैं, जिन्हें जिंदा जलाया गया, पुलिस ने मामले को लेकर केस दर्ज किया है.
  • तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जिनमें एक तांत्रिक भी शामिल है. समाज में डायन घोषित करने के पीछे कई सामाजिक पूर्वाग्रहों का योगदान है.
  • सोनू, घटना का एकमात्र जीवित सदस्य, ने पुलिस को जानकारी दी और शवों को जलकुंभी से बरामद किया गया
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पूर्णिया:

बिहार के पूर्णिया जिले में डायन प्रथा की भेंट चढ़ गई पांच जिंदगी. पूर्णिया के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के टेटगामा गांव में एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या कर दी गई, जिनमें तीन महिलाएं शामिल थीं. इस घटना में आरोपियों ने परिवार के सदस्यों को डायन बताकर पहले उनकी बेरहमी से पिटाई की और फिर जिंदा जला दिया. पुलिस ने इस मामले में दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जिनमें एक तांत्रिक भी शामिल है.

पूर्णियां जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर मुफस्सिल थाना क्षेत्र के रजीगंज पंचायत के टेटगामा उरांव टोला में डायन होने की आशंका में एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जला दिया गया और शव को एक पानी-क्षेत्र में जलकुंभी के नीचे दबा दिया गया. इस नरसंहार में बाल-बाल बचे परिवार के सदस्य सोनू (15वर्ष) ने भागकर अपनी जान बचाई. रविवार को सोनू ने उस नरसंहार की आंखों देखी बताई तो पुलिस सक्रिय हुई और घंटो मशक्कत के बाद डॉग स्क्वाड की मदद से जले हुए शवो को जलकुंभी से बरामद किया गया.

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मृतकों में परिवार का मुखिया बाबू लाल उरांव (40), पत्नी सीता देवी (35),बूढ़ी मां सातो देवी (65) ,बेटा मंजीत (25)और उसकी पत्नी रानी देवी(20)शामिल है. मामले में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है. घटना के बाद से गांव के सभी लोग फरार हैं और गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है.

अंधविश्वास की बलि चढ़ीं तीन महिलाएं

पूर्णिया जिले के पूर्व प्रखंड स्थित टेटगामा गांव में उरांव जनजाति के करीब 50 परिवार निवास करते हैं, जिनकी जनसंख्या लगभग 300 है. इस गांव में अन्य जातियों के लोग भी रहते हैं. लेकिन उरांव समुदाय के लोग अधिकतर एक-दूसरे के पास रहते हैं. करीब दस दिन पहले रामदेव उरांव के एक बेटे की बीमारी के कारण मौत हो गई थी. उसके बाद दूसरा बेटा भी बीमार पड़ गया. इसी क्रम में रामदेव को संदेह हुआ कि उसके बेटे की मौत और दूसरे बेटे की बीमारी के पीछे किसी 'डायन' का हाथ है. संदेह की सुई बाबूलाल की मां सातो देवी और उसकी पत्नी सीता देवी पर गई. रामदेव ने इन्हें जादू-टोना करने वाली महिलाएं यानी 'डायन' घोषित कर दिया. गांववालों ने भी अंधविश्वास के चलते उनकी बात मान ली.

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जैसी चर्चा है कि जिस पंचायत में बाबूलाल के परिवार की हत्या का फैसला लिया गया. उसमें इस बात को प्रमाण के तौर पर रखा गया कि ओझाओं की भी राय है कि बाबूलाल की मां और पत्नी डायन है.

अंधविश्वास और झाड़-फूंक की परंपरा में फंसा आदिवासी समाज

आज भी आदिवासी समाज में झाड़-फूंक और ओझा-भगतों की बातों पर अंधविश्वास व्याप्त है. बीमारी होने पर डॉक्टर के पास जाने की बजाय लोग ओझाओं के पास जाते हैं, जो अक्सर बीमारी की जड़ 'डायन' को बताते हैं. ओझा की कही हुई बात को अंतिम सत्य मान लिया जाता है. बताया जाता है कि जिस पंचायत में बाबूलाल के परिवार की हत्या का निर्णय लिया गया, वहां ओझाओं की राय को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया गया. ओझाओं ने सातो देवी और उसकी बहू सीता देवी को 'डायन' बताया, जिसके आधार पर यह अमानवीय फैसला लिया गया.

सातो देवी को क्यों बना दिया गया 'डायन'

आदिवासी समाज में 'डायन प्रथा' एक पुराना और खतरनाक अंधविश्वास है. किसी महिला को डायन घोषित करने के पीछे कई सामाजिक पूर्वाग्रह होते हैं. जैसे उम्रदराज होना, चेहरा विकृत हो जाना, बार-बार बुदबुदाना, क्रोधित स्वभाव, या अत्यधिक पूजा-पाठ में लिप्त रहना. सातो देवी इन सभी पूर्वाग्रहों पर खरा उतरती थीं. इसलिए उन्हें डायन मान लिया गया. समाज में यह मान्यता भी प्रचलित है कि डायन का 'ज्ञान' एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होता है. यही कारण रहा कि सातो देवी के साथ-साथ उनकी बहू सीता देवी और फिर उसकी बहू रानी देवी.. तीनों को डायन मानकर जिंदा जला दिया गया.

सामाजिक कुंठाओं के अंधेरे में डूबी भीड़

इस त्रासदी का सबसे भयावह पहलू यह है कि पीड़ित और अपराधी सभी एक ही समुदाय के थे. आपस में रिश्तेदार भी. लेकिन अशिक्षा, अंधविश्वास और सामाजिक कुंठाओं के अंधेरे में डूबी भीड़ ने रिश्तों, मानवता और कानून सब कुछ रौंद दिया. टेटगामा गांव की यह घटना इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गई है, जो यह बताती है कि जब अंधविश्वास हावी हो जाता है, तो इंसानियत दम तोड़ देती है. डायन प्रथा जैसे अमानवीय अंधविश्वास पर कानून के साथ-साथ समाज को भी सख्ती से चोट करनी होगी.

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