
- भाजपा ने उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार घोषित किया है
- राधाकृष्णन का राजनीतिक और वैचारिक पृष्ठभूमि भाजपा और संघ के एजेंडे से गहराई से जुड़ी हुई है
- उन्होंने महाराष्ट्र और झारखंड में राज्यपाल के रूप में संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करते हुए संतुलन बनाए रखा है
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 की घोषणा होते ही राष्ट्रीय राजनीति में हलचल तेज हो गई है. एनडीए (NDA) ने इस बार एक ऐसे चेहरे को मैदान में उतारा है, जिसकी न केवल निर्विवादित छवि है बल्कि राजनीतिक और वैचारिक पृष्ठभूमि भी भाजपा और संघ के कोर एजेंडे से जुड़ी रही है. हम बात कर रहे हैं सीपी राधाकृष्णन की, जो फिलहाल महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं और इससे पहले झारखंड के राज्यपाल भी रह चुके हैं. भाजपा ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर न केवल विपक्ष को असहज किया है, बल्कि तमिलनाडु समेत दक्षिण भारत में बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कोशिश भी की है.
राधाकृष्णन की उम्मीदवारी इसलिए खास है क्योंकि वह उस दौर के नेता हैं, जिन्होंने संघ-भाजपा की वैचारिक लड़ाइयों को जमीनी स्तर पर लड़ा है. अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेताओं के साथ काम कर चुके राधाकृष्णन ने हमेशा खुद को संगठन के प्रति समर्पित रखा. ओबीसी समुदाय से आने वाले इस नेता की छवि न केवल लो प्रोफाइल रही है बल्कि वे सदन और सरकार, दोनों में अपनी गहरी समझ के लिए भी जाने जाते हैं. भाजपा की रणनीति साफ है. राष्ट्रपति पद आदिवासी समाज से, प्रधानमंत्री पिछड़े वर्ग से और अब उपराष्ट्रपति पद भी ओबीसी नेता को देकर पार्टी 2029 और उससे आगे के चुनावों का सामाजिक समीकरण साध रही है.
निर्विवादित छवि और लो प्रोफाइल नेता
सीपी राधाकृष्णन की सबसे बड़ी ताकत उनकी निर्विवादित छवि है. भारतीय राजनीति में शायद ही ऐसे नेता मिलते हों जिनके ऊपर किसी बड़े विवाद का दाग न हो. राज्यपाल रहते हुए उन्होंने न तो किसी दलगत विवाद को जन्म दिया और न ही किसी संवैधानिक सीमा को लांघा. उनके लो प्रोफाइल अंदाज़ ने उन्हें और भी स्वीकार्य बनाया है. यही कारण है कि विपक्षी खेमे में भी उन्हें लेकर तीखी आलोचना सुनाई नहीं दे रही.

महाराष्ट्र और झारखंड में राज्यपाल के तौर पर बेहतरीन कार्य
राधाकृष्णन महाराष्ट्र और झारखंड जैसे जटिल राजनीतिक राज्यों के राज्यपाल रहे हैं. महाराष्ट्र में सरकार बदलते समय उन्होंने संविधान की गरिमा बनाए रखी और झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता के बीच संतुलन कायम किया. उनके निर्णयों को कई बार 'मॉडल गवर्नर' की तरह सराहा गया. इस प्रशासनिक अनुभव ने उन्हें उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद के लिए और भी उपयुक्त बना दिया.
धनखड़ से अलग रहा है प्रोफ़ाइल
जगदीप धनखड़ जहां किसान आंदोलन और कानूनी पृष्ठभूमि के कारण सुर्खियों में रहे, वहीं राधाकृष्णन की छवि हमेशा एक संगठननिष्ठ कार्यकर्ता की रही है. उन्होंने अपनी पूरी राजनीति और ऊर्जा भाजपा और संघ के एजेंडे को मजबूत करने में लगाई. यही कारण है कि वे "लो मीडिया विजिबिलिटी लेकिन हाई ऑर्गेनाइजेशनल रिज़ल्ट" वाले नेता माने जाते हैं.
संघ-भाजपा के वैचारिक एजेंडे से गहरा जुड़ाव
राधाकृष्णन लंबे समय से भाजपा और आरएसएस के वैचारिक एजेंडे पर काम करते आए हैं. चाहे बात समान नागरिक संहिता (UCC) की हो या शिक्षा-संस्कृति आधारित सुधार की, उन्होंने हर जगह संगठन के विचारों को मजबूती दी. वाजपेयी-आडवाणी के दौर से लेकर आज मोदी-शाह के युग तक, उनकी निष्ठा और निरंतरता अटूट रही है.

संसदीय और प्रशासनिक अनुभव
कोयंबटूर से दो बार सांसद रह चुके राधाकृष्णन को संसद के कामकाज की गहरी जानकारी है. संसदीय प्रक्रियाओं, विधायी कामकाज और कमेटियों में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही है. साथ ही, राज्यपाल के तौर पर उनका प्रशासनिक अनुभव उन्हें उन नेताओं की श्रेणी में खड़ा करता है जो संवैधानिक मर्यादाओं को समझते और निभाते हैं.
ओबीसी समुदाय से आने का राजनीतिक लाभ
ओबीसी समाज भारतीय राजनीति का निर्णायक वोट बैंक है. भाजपा ने राष्ट्रपति को आदिवासी समुदाय से, प्रधानमंत्री को पिछड़े वर्ग से और अब उपराष्ट्रपति उम्मीदवार को भी ओबीसी समुदाय से चुना है. इससे भाजपा अपने सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व के एजेंडे को और मजबूत कर रही है. राधाकृष्णन की पृष्ठभूमि इस रणनीति में पूरी तरह फिट बैठती है.

तमिलनाडु को बड़ा राजनीतिक संदेश
तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं और भाजपा वहाँ लगातार अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में पार्टी ने एक तमिल नेता को राष्ट्रीय स्तर पर इतनी ऊँचाई देकर कार्यकर्ताओं को संदेश दिया है कि दक्षिण भारत में भाजपा की भूमिका और मजबूत होगी. साथ ही जनता के बीच यह संदेश जाएगा कि भाजपा केवल हिंदी पट्टी की पार्टी नहीं बल्कि पूरे भारत की प्रतिनिधि पार्टी है.
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