सुप्रीम कोर्ट में फ्रीबीज, रेवड़ी कल्चर और मुफ्तखोरी मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सभी पक्षों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि फ्रीबीज से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच का गठन किया जाएगा. इतना ही नहीं, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ चुनाव के दौरान मुफ्त उपहारों को लेकर सुब्रमण्यम बालाजी मामले में शीर्ष अदालत के पहले के फैसले पर पुनर्विचार करेगी.
इससे पहले चुनाव पूर्व मुफ्त उपहार के मामले की सुनवाई के दौरान एडवोकेट विकास सिंह ने पूर्व CJI जस्टिस आरएम लोढ़ा के नेतृत्व में कमेटी बनाने के मांग की जबकि Solicitor General तुषार मेहता ने कहा कि किसी सीएजी को इसकी कमान देनी चाहिए.
इस मुद्दे पर मुख्य न्यायधीश ने कहा कि चुनावों से पहले मुफ्त उपहार देने का वादा करने की प्रक्रिया एक पहलू है और चुने जाने के बाद नीतियां बनाना एक दूसरा पहलू है. याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि चुनाव के बाद वाला समय एक बहुत ही खतरनाक क्षेत्र है. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि तो क्या बाद की योजनाओं पर हमें गौर नहीं करना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आप इसे चुनाव तक सीमित कर रहे हैं तो यह एक अलग मुद्दा है लेकिन बाद में मुफ्त उपहार के बारे में भी याचिकाएं हैं.
CJI ने कहा कि सवाल ये है कि फ्रीबीज चुनाव के पहले के वादे का मसला एक है जबकि कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा के खिलाफ भी याचिकाएं दाखिल हुई तो फिर क्या होगा? इसपर याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि चुनाव के बाद वादा या योजना अलग मसला है और उसमें जाना अदालत के लिए मुश्किल होगा. इसपर CJI ने कहा कि यहां पर दो सवाल हैं कि चुनाव से पहले के वादे और उनके खिलाफ चुनाव आयोग कोई एक्शन ले सकता है?
CPIL के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि मेरी राय में मुख्य समस्या ये है कि चुनाव से तत्काल पहले वादा करना एक तरह से मतदाता को रिश्वत देना है. प्रशांत भूषण ने कहा,”3 प्रकार के मुफ्त उपहार अवैध हैं..जैसे एक जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है..दूसरा जो सार्वजनिक नीति का उल्लंघन करता है. प्रशांत भूषण ने कहा कि मुफ्त उपहार कॉरपोरेट्स आदि को भी दिए जाते हैं चोहे वो बैंक धोखाधड़ी के दोषी हों और तीसरा चुनाव से पहले मुफ्त उपहार की वजह से सभी दलों को एक समान अवसर नहीं मिल पाता है.
प्रशांत भूषण ने कहा कि मुख्य समस्या तब होती है जब वास्तविक मुफ्त उपहार दिए जाते हैं जो भेदभावपूर्ण, सार्वजनिक नीति का उल्लंघन करते हैं या चुनाव से ठीक पहले जहां वास्तव में कुछ दिया जाता है. Solicitor General तुषार मेहता ने कहा कि ऐसी पार्टियां हैं जो सत्ता में नहीं हैं लेकिन विभिन्न चीजों की घोषणा कर रही हैं और यह मतदाताओं के निर्णय को प्रभावित कर रही है. उन्होंने पूछा कि चुनाव से पहले आप क्या चुनाव जीतने के लिए चांद लाने का वादा कर सकते हैं? SG मेहता ने सुझाव दिया कि इस मामले पर CAG , RBI गवर्नर आदि जैसे विशेषज्ञों की एक समिति बना दी जाए और उसे रिपोर्ट देने को कहा जाए.
इसपर CJI ने सवाल उठाया कि सरकार क्यों नहीं कोई कमेटी बनाती. इस सवाल के जवाब में SG ने कहा कि केंद्र सरकार हर तरह से मदद करेगी. कमेटी 3 महीने में रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकती है और फिर इस पर अदालत में विचार किया जा सकता है.
मुफ्त उपहार मुद्दे पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि चुनाव से पहले ऐसे वादों से वित्तीय संकट खड़ा होता है क्योंकि यह आर्थिक हालात को ध्यान में रखकर नहीं किए जाते हैं. इस पर CJI ने पूछा कि केंद्र सरकार आल पार्टी मीटिंग क्यों नहीं बुलाती ?
दिल्ली सरकार की ओर से पेश होते हुए अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि हर कोई हर समय जनता को बेवकूफ नहीं बना सकता. केंद्र की तरफ से यह कहना अच्छा नहीं है कि वह याचिकाकर्ता का पूरा समर्थन कर रहे हैं,
वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि जब तक सुब्रमण्यम बालाजी फैसले पर विचार न किया जाए तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते चाहे जो भी समिति बना ली जाए. आगे नहीं बढ़ सकते. दूसरा सवाल आरपी एक्ट की धारा 123 की व्याख्या है. मुफ्त उपहारों के आर्थिक पहलू पर विचार करने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है.
मुख्य न्यायधीश ने कहा कि मुद्दा यह है कि यदि आप एक समिति चाहते हैं, तो सबसे बड़ी समस्या यह है कि आयोग का प्रमुख कौन होगा. अंततः यह केवल राजनीतिक दल हैं जो वादे करेंगें. यह केवल राजनीतिक दल है जो वादे करता है और चुनावों का संदर्भ देता है, व्यक्ति नहीं. CJI ने कहा कि हो सकता है कि इस प्रणाली में व्यक्तियों का ज्यादा प्रभाव न हो, लेकिन हमारे लोकतंत्र में राजनीतिक दल हैं जो वादे करते हैं. CJI ने पूछा कि केंद्र इस पर विचार करने के लिए सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाता है?
इसपर SG तुषार मेहता कहते हैं कि कई पार्टियां ऐसी हैं कि जो कहती हैं कि फ्रीबी उनका मौलिक अधिकार है. लेकिन इन दलीलों को दरकिनार करते हुए CJI ने कहा कि सरकार पर जिम्मेदारी होती है कि अर्थ व्यवस्था और सरकार कैसे चलानी है... केंद्र सरकार इस बारे में नियम और गाइड लाइन बना सकती है.
SG तुषार मेहता ने दलील दी कि जब फ्रीबीज घोषणा को बुनियादी अधिकार यानी बोलने के अधिकार से जोड़ा जा रहा है तो सरकार के लिए ये कानून, नियम या गाइड बनाना उचित नहीं होगा. इसपर CJI ने कहा,”अगर राजनीति दल सत्ता में आते हैं तो उन्हें राज्य के मामलों का प्रबंधन करना होगा. जब तक कि निरंतर, एकमत दृष्टि न हो कि हमें अर्थव्यवस्था को नष्ट करने वाली मुफ्तखोरी को रोकना होगा. हम इस मुद्दे को नियंत्रित नहीं कर सकते. अगर कल हम एक आदेश पारित करते हैं, तो कोई भी परवाह नहीं करेगा.”
CJI ने कहा कि सवाल बहस का है ... सभी राजनीति दल क्यों नहीं मिल सकते औऱ भारत सरकार उनके विचार पूछ सकती है कि वे क्या चाहते हैं.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं