महाराष्ट्र में महानगरपालिका के चुनाव के पहले शिवसेना नीत सरकार ने मराठी कार्ड खेला है. कैबिनेट ने राज्य की नगरपालिकाओं और महानगरपालिकाओं के कामकाज मराठी में अनिवार्य किए जाने के बिल को मंजूरी दी है. सोशल मीडिया सहित सभी तरीके के काम भी सिर्फ मराठी में अनिवार्य किए जाने का प्रस्ताव भी किया गया है. बता दें, इससे पहले दुकानों और दफ्तरों के बोर्ड मराठी भाषा में लगाने को लेकर सरकार फैसला चुकी है. इसे आने वाले महापालिका चुनाव के मद्देनजर मराठी कार्ड की तरह देखा जा रहा है.
राज्य के मंत्री सुभाष देसाई ने कहा कि महाराष्ट्र राजभाषा अधिनियम, 1964 के कारण इस विधेयक को पेश करना आवश्यक था क्योंकि उसमें स्थानीय अधिकारियों के लिए अपने आधिकारिक कार्यों में मराठी का उपयोग करना अनिवार्य नहीं था.उन्होंने अधिनियम में प्रावधान की कमी का ''लाभ'' लेने वाले अधिकारियों के उदाहरणों का भी हवाला दिया. देसाई ने कहा, ''हमने उस गलती को दूर करने का प्रयास किया है.''उन्होंने कहा, ''कोई भी (स्थानीय) प्राधिकरण, चाहे वह राज्य सरकार या केंद्र सरकार या (राज्य द्वारा संचालित) निगमों द्वारा स्थापित हो, उसे जनता के साथ संवाद करते समय तथा कार्यों में भी मराठी का उपयोग करना होगा.''मंत्री ने यह भी कहा कि विदेशी राजदूतों के साथ संवाद करने जैसे कुछ सरकारी कार्यों के लिए स्थानीय अधिकारियों को अंग्रेजी या हिंदी के उपयोग की अनुमति दी गई है.
इससे पहले भाजपा विधायक योगेश सागर ने विधेयक पर पनी बात रखते हुए पूछा कि चुनाव नजदीक आते देख ''मराठी के प्रति प्रेम'' क्यों उमड़ पड़ा है?वह आगामी स्थानीय निकाय चुनावों का जिक्र कर रहे थे, जिसमें बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव भी शामिल है.सागर ने विधेयक का समर्थन किया और कहा कि सभी कामकाज मराठी में होने चाहिए.देसाई ने उन पर पलटवार करते हुए कहा कि इस मुद्दे को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.मंत्री ने कहा, “क्या हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन सिर्फ इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि चुनाव नजदीक हैं? विधेयक लाना हमारा अधिकार है. चुनाव होते रहेंगे.'' (भाषा से भी इनपुट)
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