तीन तलाक कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. कानून को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. समस्था केरला जमीथुल उलेमा (Samastha Kerala Jamiathul Ulema) ने यह याचिका दाखिल की है. याचिका में तीन तलाक को रद्द करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि कानून से मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 31 जुलाई को तीन तलाक बिल (Triple Talaq bill) को मंजूरी दे दी जिसके साथ ही तीन तलाक कानून अस्तित्व में आ गया है. यह कानून 19 सितंबर 2018 से लागू माना जाएगा. तीन तलाक बिल संसद के दोनों सदनों से पहले ही पास हो चुका है. मोदी सरकार ने इस बिल को 25 जुलाई को लोकसभा में और 30 जुलाई को राज्यसभा में पास करवाया था. बिल के कानून बनने के बाद 19 सितंबर 2018 के बाद जितने भी मामले तीन तलाक से संबंधित आए हैं, उन सभी का निपटारा इसी कानून के तहत किया जाएगा.
राज्यसभा में बिल के समर्थन में 99, जबकि विरोध में 84 वोट पड़े थे. इससे पहले विपक्ष की बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग भी सदन में गिर गई थी. वोटिंग के दौरान बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने के पक्ष में 84, जबकि विरोध में 100 वोट पड़े थे. राज्यसभा से तीन तलाक बिल पास होने के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसे ऐतिहासिक दिन बताया था.
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तीन तलाक कानून में प्रावधान:
- तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत रद्द और गैर कानूनी
- तीन तलाक को संज्ञेय अपराध मानने का प्रावधान, यानी पुलिस बिना वारंट गिरफ़्तार कर सकती है
- तीन साल तक की सजा का प्रावधान
- यह संज्ञेय तभी होगा जब या तो खुद महिला शिकायत करे या फिर उसका कोई सगा-संबंधी
- मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है. जमानत तभी दी जाएगी, जब पीड़ित महिला का पक्ष सुना जाएगा
- पीड़ित महिला के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट समझौते की अनुमति दे सकता है
- पीड़ित महिला पति से गुज़ारा भत्ते का दावा कर सकती है
- इसकी रकम मजिस्ट्रेट तय करेगा
- पीड़ित महिला नाबालिग बच्चों को अपने पास रख सकती है. इसके बारे में मजिस्ट्रेट तय करेगा
VIDEO : तीन तलाक बिल पारित होने से महिलाएं खुश
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