विज्ञापन

स्किन पर दिख रहा था पीलापन, टेस्ट कराया तो लड़की के उड़ गए होश, इस बीमारी की वजह से कराना पड़ा लिवर ट्रांसप्लांट

ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस एक ऐसी बीमारी है, जिसमें लिवर ट्रांसप्लांट तक करवाना पड़ सकता है. बता दें इस बीमारी के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, कुछ लोगों में कोई खास समस्या नहीं होती, जबकि कुछ में लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं. आइए जानते हैं इस बारे में.

स्किन पर दिख रहा था पीलापन, टेस्ट कराया तो लड़की के उड़ गए होश, इस बीमारी की वजह से कराना पड़ा लिवर ट्रांसप्लांट
स्किन पर दिखे पीले निशान, डॉक्टरों ने किया जानलेवा बीमारी का खुलासा.

महज 15 साल की उम्र में एक लड़की, जिसका नाम एम्मा मेंडेलसोहन हैं, उसने पहली बार अपनी त्वचा में एक पीलापन महसूस किया, जिसके बाद उसकी जिंदगी बदल गई. मई 2018 की बात है, जब पहली बार उसे महसूस हुआ कि त्वचा में कुछ पीलापन है, हालांकि लड़की ने समझा कि यह निशान खेल- कूद या थकान के कारण है, लेकिन अक्टूबर के अंत तक लड़की की त्वचा फिर से गहरे पीले रंग की हो गई. जिसके बाद यह ठीक नहीं हुई.

डॉक्टर ने किया ब्लड टेस्ट, आई चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने

अपने त्वचा में ऐसे निशान देखने के बाद डॉक्टर के पास गई , जिसके बाद उसका ब्लड टेस्ट हुआ.  शुरुआत में तो सब कुछ नॉर्मल लग रहा था, सिवाय लिवर एंजाइम के लेवल की रिपोर्ट के. हालांकि जब रिपोर्ट आई तो लड़की चौंक गई. बता दें, डॉक्टर ने उसे दवा का एक पैकेट दिया, ताकि लिवर के फंक्शन स्टेबल रह सके. डॉक्टर ने कहा अगर दवा ने काम किया और यह सफल रही, तो उसे स्टेरॉयड इन्फ्यूजन के लिए ऑकलैंड चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल भेज दिया जाएगा और अगर नहीं, तो उसे इमरजेंसी लिवर ट्रांसप्लांट (Emergency liver Transplant) कराना होगा.

ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस (Autoimmune Hepatitis) से पीड़ित थी लड़की

एम्मा मेंडेलसोहन को एक मेडिकल सेंटर भेजा गया, जहां उसका ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का ट्रीटमेंट शुरू किया गया. बता दें, यह एक एक दुर्लभ स्थिति जिसमें इम्यून सिस्टम लिवर पर हमला करता है. इसी के साथ लड़की को हाशिमोटो डिजीज (Hashimoto's disease) भी है, जो एक और ऑटोइम्यून विकार है जो थायरॉयड ग्रंथि को प्रभावित करता है.

लड़की का नाम आधिकारिक तौर पर ट्रांसप्लांट की लिस्ट में शामिल किया गया. मेडिकल सेंटर में एडमिट होने के एक-दो दिन बाद उसे अपना नया लिवर मिल गया था. लड़की ने बताया अगर लिवर न मिलता, तो मैं मर जाती.

ये भी पढे़ं- पेट को नेचुरल तरीके से साफ करती हैं ये 3 चीजें, कभी नहीं होगा पेट दर्द, कब्ज और गैस, जानें इस्तेमाल करने का तरीका

तीन साल लगे शरीर को नया लिवर अपनाने में

लड़की ने बताया कि शरीर को नए लिवर को पूरी तरह से स्वीकार करने में लगभग तीन साल लग गए, लेकिन कुछ समय बाद शरीर को इसकी आदत होने लग गई थी और मैं फिर से स्वस्थ महसूस करने लगी थी.

दोबारा लौट आए थे पीले निशान

लड़की ने बताया कि कुछ समय बाद त्वचा में पीलापन फिर से लौट आया था. जिसके बाद टेस्ट करवाया गया. बता दें, पहले, डॉक्टरों ने सोचा कि इसे ईआरसीपी से ठीक किया जा सकता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया जिसका इस्तेमाल पित्त नलिकाओं को साफ करने और स्टेंट डालने के लिए किया जाता है, लेकिन बाद में डॉक्टरों ने पाया कि उसके लिवर एंजाइम का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ गया था और बिगड़ता जा रहा था. इसके बाद कई जांचें हुईं, जिसमें बायोप्सी, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई और भी बहुत कुछ शामिल था.

सामने आई दुर्लभ बीमारी

लड़की ने बताया कि चेकअप के दौरान, उन्होंने एक ऐसी दुर्लभ बीमारी की जांच की जिसके बारे में ज्यादातर ट्रांसप्लांट मरीजों ने कभी सुना ही नहीं था. जिसका नाम है डोनर-मीडिएट रिजेक्शन (Donor-Mediated Rejection) यह स्थिति तब होती है जब डोनर लिवर और प्राप्तकर्ता (Recipient) के इम्यून सिस्टम में एंटीबॉडी एक-दूसरे पर हमला करने लगते हैं.

जिसके बाद इम्यूनोथेरेपी शुरू की गई. यह एक कैंसर जैसा इलाज होता है, जिसमें साप्ताहिक रूप से दवाइयां दी जाती हैं.  बता दें, डॉक्टरों ने लड़की को लगातार एपस्टीन-बार वायरस की निगरानी में रखना पड़ता था, क्योंकि उसके लिए यह लिंफोमा में बदल सकता था. हालांकि इस ट्रीटमेंट के दौरान कई इंजेक्शन भी दिए गए थे. लड़की ने कहा, यह सिलसिला आठ हफ्तों तक चलता रहा और सबसे मुश्किल हिस्सा था कि आखिर तक पता ही नहीं चला कि इलाज काम कर रहा है या नहीं. लेकिन अंदर ही अंदर, उन्हें पता था कि अगर इलाज काम नहीं करता, तो उन्हें एक और लिवर ट्रांसप्लांट करवाना पड़ेगा.

मरने के विचार को स्वीकार कर चुकी थी लड़की

लड़की ने बताया, कि "मुझे लगता है कि जब मैं पहली बार अस्पताल में भर्ती हुई थी, तब मैं मरने के विचार को स्वीकार कर चुकी थी. इसलिए जब दूसरी बार ऐसा हुआ, तो मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं थी. मैं जिस तरह से अपना जीवन जी रही थी, उससे खुश थी और मैंने कभी किसी भी काम को लेकर परेशान या पछतावा महसूस नहीं किया था. मैं हर परिणाम के लिए तैयार थी.

कैसी बीमारी है Autoimmune hepatitis, क्या है कोई इलाज?

लड़की बताती हैं कि ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस (Autoimmune hepatitis) ऐसी बीमारी नहीं है जिसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता, लेकिन आप कंट्रोल कर सकते हैं. हालांकि मुझे आज भी लगता है कि यह हमेशा रहेगी और इसका कोई इलाज नहीं है और न ही इस पर ज्यादा रिसर्च हुई है.

Autoimmune hepatitis  के लक्षण क्या है?

ऑटोइम्यून हैपेटाइटिस के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, कुछ लोगों में कोई खास समस्या नहीं होती, जबकि कुछ में लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं. सामान्य लक्षणों में थकान, पीलिया (त्वचा और आँखों का पीला पड़ना), पेट दर्द और जोड़ों में दर्द शामिल हैं. कुछ लोगों में फ्लू जैसे लक्षण, खुजली, या मल और मूत्र के रंग में बदलाव भी हो सकते हैं. कुछ मामलों में लिवर का साइज बड़ा हो जाता है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com