Story Telling | Ek Kahani Roj: सुबह के 6 बजे हैं और वह सोच रही है कि नाश्ते में क्या बनाऊं, आटा भी लगा चुकी है और आलू भी उबलकर तैयार हैं. सभी की डिमांड थी कि आज आलू के पराठे बनाए जाएं. सबकुछ लगभग रेडी है, लेकिन न जाने क्यों उसका पराठे बनाने का मन नहीं है. वह किचन की खिड़की से झांकते अमरूद के पेड़ को देख रही है, उसे अमरूद का पेड़ साफ दिख नहीं रहा है. ये पेड़ उसी ने लगाया था शादी के बाद, अपने बच्चे की तरह पाला है इसे, लेकिन आज दिख क्यों नहीं रहा, इसके पत्ते जरा पके पके से थे भूरे यानी ब्राउन...
पिछले एक हफ्ते से वो अजीब सा महसूस कर रही थी, हालांकि नींद तो उसकी पहले भी पूरी नहीं हो पाती थी, लेकिन बीते कुछ दिनों से उसे सिर इतना भारी लग रहा था जैसे कोई पत्थर रखा हो. उसका कुछ भी खाने का मन नहीं कर रहा और न खाने के चलते उसे पेट में भूख और चक्कर का अहसास हो रहा है. इन सबके बावजूद वह सुबह के नाश्ते से लेकर रात के डिनर तक की जिम्मेदारियां पूरी निभा रही थी.
सर्द मौसम में छोटे बच्चों को सुबह उठाकर स्कूल भेजना हो, उनका मनपसंद लंच तैयार करना हो या फिर पति का हेल्दी ब्रेकफास्ट और लंच रेडी करना हो, वह एक पैर पर सब कर लेती है, उसे इस बात का भी पूरा ध्यान है कि किसी ने खाना खाया और किसने नहीं, सास ने दवा ली या मिस कर दी, ससुर को दवा दूध नहीं चाय के साथ लेनी होती है और पति को डिनर में सिर्फ रोटी सब्जी नहीं पसंद है...
पर उससे कोई ये पूछने वाला नहीं था कि वह बीते 3 दिन से कुछ खा क्यों नहीं रही है. पर वह लगी हुई है ठीक वैसे ही जैसे मां ने विदाई पर कहा था सबकी सुनना, ज्यादा जुबान मत लड़ाना.
लेकिन बीते 3 दिन से वह परेशान थी. उसने कल अपनी सास से कहा भी था - '' मम्मी पता नहीं क्या हुआ है, सिर घूम रहा है, बैठकर उठती हूं तो चक्कर आते हैं और कुछ खाने का मन नहीं कर रहा... ''
सास ने मुंह घुमाकर धीमी आवाज में कहा था - ''कामचोर है, बस बिस्तर में पड़े पड़े सब चाहिए.'
रात को जब पति आया तो सास ने चार और बातों के साथ यह भी बता दी कि - 'महारानी कह रहीं हैं चक्कर आ रहे हैं, कुछ खाने का मन नहीं. मन करेगा भी कैसे इतना बेकार खाना जो बनाती है, इसका क्या किसी का नहीं करता इसके हाथ का बना खाना खाने का...'
पति जब कमरे में पहुंचे तो वो उंगलियों पर कुछ गिन रही थी
- चक्कर हर वक्त,
- नींद,
- ठंडा शरीर,
- सूखे होंठ,
- सांस अटकना,
- लो बीपी,
- पेट में भी मरोड़ सी पड़ रही थी
- और आंखों में पीलापन
ये वो लक्षण थे, जो उसे खुद में नोटिस हो रहे थे. और फिर उसने खुद से कहा, आज जब ये आएंगे तो इन्हें बताऊंगी कि क्या-क्या हो रहा है. जरूरत हुई तो डॉक्टर के पास जाएंगे.

इतने में पति अंदर आए और पूछने लगे कि उसे क्या हुआ है. जब उसने सब बताया तो पति ने कहा, 'कुछ नहीं हुआ है तुम 'ओवरथिंक' कर रही हो'.
पीछे से मां ने भी चिल्लाकर बता दिया कि उसकी असली बीमारी की वजह 'काम से बचने का बहाना' है...
पति ने मां को चुप तो कराया, लेकिन ऐसा लगा कि वह भी मां से सहमत था. पति ने हाथ आगे बढ़ाया और एक कैल्शियम की गोली उसे दे दी... और कहा -''शाम तक थोड़ा आराम कर लो, आज डिनर लेट बना लेना... ''
उसने चुपचाप दवा ली और वो लेट गई. शाम को 7 बजे जब उसे डिनर बनाने के लिए आवाजें लगाई गईं, तो वह उठी ही नहीं, उसे जबरन उठाने की कोशिश की गई, जब हाथ से हिलाया गया तो समझ आया कि वह बेहोश थी. आनन-फानन में डॉक्टर के पास ले जाया गया. बर्फ जैसा ठंडा शरीर देखकर सभी के होश उड़ गए थे.
जब डॉक्टर के पास वह पहुंची तब तक उसे होश आ चुका था, उसके चेहरे पर दर्द साफ दिख रहा था, वह ठीक से बैठ भी नहीं पा रही थी और रो रही थी. लेकिन उसके साथ आए पति ने बड़े आराम से कहा, "इसे बस कैल्शियम की कुछ गोलियां दे दो, सब ठीक है."

वहीं उसकी सास का कहना था कि वह 'नाटक' कर रही है क्योंकि उसे घर का काम नहीं करना. वह महिला चुपचाप अपना पेट पकड़कर बैठी रही, उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी. डॉक्टर को हुआ शक और फिर खुला राज - परिवार लगातार डॉक्टर पर दबाव बना रहा था कि कोई सस्ती सी दवा लिखकर उन्हें घर भेज दें. लेकिन डॉक्टर ने महिला का चेकअप शुरू किया.
Also Read: दवा नहीं, आपके शरीर में ही छिपा है खुद को ठीक करने का जादू, जानें आयुर्वेद के 5 रहस्य
चेकअप में जो सामने आया वह डराने वाला था:
- ब्लड प्रेशर (BP): केवल 80/50 (बहुत कम).
- नब्ज (Pulse): बहुत तेज भाग रही थी.
- शरीर: बर्फ की तरह ठंडा पड़ चुका था.
- सांसें: बहुत उथली और कमजोर थीं.
परिवार के तानों के बावजूद डॉक्टर ने तुरंत हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) टेस्ट करवाया. कुछ ही मिनटों में लैब टेक्नीशियन दौड़ता हुआ आया और जो रिपोर्ट दी उसने सबको सुन्न कर दिया. महिला का हीमोग्लोबिन सिर्फ 4.2 g/dL था. वह नाटक नहीं कर रही थी, बल्कि उसका शरीर साथ छोड़ रहा था.
मौत के मुंह से वापसी -
हालत बिगड़ती देख महिला को तुरंत ICU शिफ्ट किया गया. उसे खून चढ़ाया गया और एंटीबायोटिक्स शुरू की गईं. अल्ट्रासाउंड में पता चला कि उसे 'सीवियर एनीमिया' (खून की भारी कमी) के साथ 'सेप्टिक शॉक' था. यह एक ऐसी स्थिति है जहां इंसान की जान कभी भी जा सकती है.
जब इलाज शुरू हुआ, तो जो पति अब तक उसे 'ओवरथिंकिंग' बता रहा था, वह पत्थर की तरह जम गया. महिला की आंखों में डॉक्टर के लिए एक अजीब सा सुकून था- कि कम से कम किसी ने तो उसके दर्द पर यकीन किया.
पति ने दौड़कर डॉक्टर से पूछा 'सेप्टिक शॉक क्या होता है?'
डॉक्टर ने बताया - 'सेप्टिक शॉक एक जानलेवा मेडिकल इमरजेंसी है. यह सेप्सिस का एक गंभीर रूप है, जो शरीर में संक्रमण के कारण होने वाली सूजन के बढ़ने से होती है. इसे सेप्सिस की सबसे गंभीर अवस्था माना जाता है, जहां संक्रमण रक्तप्रवाह में फैलकर शरीर के महत्वपूर्ण अंगों तक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति को प्रभावित करता है. इससे महत्वपूर्ण अंगों जैसे फेफड़े, किडनी और लिवर तक खून नहीं पहुंच पाता, जिससे वे काम करना बंद कर सकते हैं और मृत्यु भी हो सकती है.'
डॉक्टर आगे बोले सेप्टिक शॉक लक्षण कुछ ऐसे होते हैं -
- बहुत कम रक्तचाप (Low Blood Pressure): रक्तचाप इतना कम हो जाता है कि अंगों तक खून नहीं पहुंच पाता.
- तेज धड़कन (Rapid Heart Rate): दिल तेजी से धड़कने लगता है.
- सांस लेने में कठिनाई (Difficulty Breathing): मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है.
- भ्रम या मानसिक स्थिति में बदलाव (Confusion/Altered Mental State): मरीज भ्रमित या बेहोशी की स्थिति में जा सकता है.
- त्वचा ठंडी और चिपचिपी होना (Cold, Clammy Skin): त्वचा ठंडी और चिपचिपी हो जाती है.
- पेशाब कम आना (Decreased Urine Output): किडनी की खराबी के कारण पेशाब की मात्रा कम हो जाती है.
डॉक्टर ने बताया कि यह अक्सर किसी संक्रमण जैसे निमोनिया, मूत्र संक्रमण (UTI), त्वचा संक्रमण, या पेट के संक्रमण से यह शुरू हो सकता है.
डॉक्टर ने कहा 'सेप्टिक शॉक एक मेडिकल इमरजेंसी है, जिसमें तुरंत अस्पताल, खासकर ICU, में इलाज की जरूरत होती है. समय पर इलाज न होने पर यह जानलेवा साबित हो सकता है.'
डॉक्टर ICU की तरफ जानें लगे लेकिन पल भर रुक कर बोले - ''आप समझे, इलाज न होने पर यह जानलेवा साबित हो सकता है. यह मेडिकल इमरजेंसी नाटक या कामचोरी नहीं'
पति नजरें नीचे करे चुप खड़े थे.
डॉक्टर हैरान था, वह जाते जाते खुदसे कह रहा था 'मेडिकल की पढ़ाई में हमें सब सिखाया गया, लेकिन यह नहीं बताया गया कि कई बार मरीज का अपना परिवार ही इलाज के बीच सबसे बड़ी दीवार बन जाता है.'
वह बोले जा रहा था "कभी-कभी एक डॉक्टर का सबसे बड़ा काम बस मरीज की बात पर यकीन करना होता है, तब भी जब दुनिया उसे झूठा मान रही हो."
ये कहानी हमारे देश में हजारों महिलाओं का सच हो सकती है और शायद हो भी... जानें कितने ही डॉक्टर इस तरह के केस रोजाना देखते हैं. जरूरत है घर की महिलाओं की सेहत के लिए सजग होने की - न सिर्फ परिवार के लोगों को बल्कि खुद महिलाओं को भी अपने लिए आगे आने की...
वह ठीक होकर घर लौटी, उसने आंगन में लगे अमरूद को नजर भर देखा. वह सूख रहा था. वह ठहर गई और गहरी सांस लेने लगी. उसे ख्याल हुआ कि पिछले 3 हफ्ते से वह उसे पानी नहीं दे पाई थी इसलिए पौधा सूख रहा था.
उसकी उदासी देख पति दौड़ कर एक डब्बे में पानी लेकर पौधे में दे आए और मुस्कुराते हुए बोले - 'अब सब हरा भरा रहेगा, मेरी गलतियों को माफ कर दो... '
उसने नजर भर पति की तरफ देखा और उसे महसूस हुआ कि उसके भीतर कुछ अंकुरित हुआ है. उस अंकुर की महक उसके चेहरे पर मुस्कान बनकर फैल गई और वह घर की तरफ बढ़ चली...
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं