हिस्टरेक्टमी: क्‍या है, क्‍यों पड़ती है जरूरत, क्‍या हैं दूसरे विकल्‍प, जानें ऑपरेशन के बाद किन बातों का रखें ख्‍याल

हिस्टरेक्टमी (Hysterectomy surgery) एक पध्दती है, जिसके तहत गर्भाशय या बच्चेदानी को निकाला जाता है.  साधारण तौर पर 50 से 60 साल की महिलाओं पर यह ऑपरेशन (Abdominal hysterectomy) किया जाता है.

हिस्टरेक्टमी: क्‍या है, क्‍यों पड़ती है जरूरत, क्‍या हैं दूसरे विकल्‍प, जानें ऑपरेशन के बाद किन बातों का रखें ख्‍याल

हिस्टरेक्टमी (Hysterectomy surgery) एक पध्दती है, जिसके तहत गर्भाशय या बच्चेदानी को निकाला जाता है.  साधारण तौर पर 50 से 60 साल की महिलाओं पर यह ऑपरेशन (Abdominal hysterectomy) किया जाता है. जरुरत पड़ने पर डॉक्टर को अन्य जननक्षम अवयव जैसे अंडाशय या फैलोपेन ट्युब्ज को भी निकालना (Full hysterectomy) पड़ता है. हिस्टरेक्टमी के कारण (Hysterectomy Cause) कई बार महिलाओं को कई मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ता है.  इसलिए साधारण तौर पर हिस्टरेक्टमी करनें से पहलें महिलाओं की योग्य काऊन्सेलिंग करनें की जरूरत होती है.

हिस्टरेक्टमी करनें के प्रमुख कारण | Common Reasons for a Hysterectomy

कुछ खास स्‍थ‍ितियों में स्त्रीरोग विशेषज्ञ हिस्टरेक्टमी करनें का सुझाव देते हैं, जैसे- 

1. एन्डोमेट्रिओसिस : इस स्थिती में गर्भाशय के बाहरी अंग जैसे अंडाशय, फेलोपेन ट्यूब्ज और दूसरे अवयवों पर और गर्भाशय की बाहरी परत (एन्डोमेट्रियम) का निर्माण होता है. इस के कारण कई बार महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान रक्तस्त्राव की पैटर्न में बदलाव आना, दर्द होना, वंध्यत्व, शौच या मूत्रविसर्जन के दौरान दर्द होना जैसी समस्याएं बिमारी कितनी जटील है उस के अनुसार होने लगता है.

2. पेल्विक इन्फ्लेमेटरी डिसीज (पीआईडी):  इस बिमारी में महिलाओं के जननक्षम अवयवों में इन्फेक्शन होता है.  अगर उस का निदान जल्द हो जाता है, तो एन्टीबायोटिक्स से उसे ठीक किया जा सकता है. फिर भी कई बार समय पर उपचार न मिलनें से फैलोपेन ट्यूब और गर्भाशय को निकालना पडता है. पीआईडी के कारण दर्द और अधिक रक्तस्त्राव भी होता है.

3. एडिनोमायोसिस :  एडिनोमायोसिस में गर्भाशय के अंदरुनी लाईनिंग (एन्डोमेट्रियम) बढते हुए पेशीयों का एक स्तर बन जाता है.  ऐसी स्थिती में महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान रक्तस्राव, ब्लोटिंग, रक्तस्राव के दरम्यान खिचाव (रक्तस्राव से अधिक मात्रा में दर्द होना) और पेट में दर्द होता है. हिस्टेरोक्टमी एडिनोमायोसिस का इलाज है.

4. मासिक धर्म के दरम्यान अधिक मात्रा में रक्तस्राव होना :  मासिक धर्म के दौरान अधिक मात्रा में रक्तस्राव के  साथ दर्द होना और खिचाव होनें के कारण जीवन की गुणवत्ता पर असर होता है.  इस से एनिमिया हो सकता है और थकान तथा बाल झड़ना शुरू होता है. पिशाब में खून की मात्रा आने लगती है.  अधिकतर केसेस में डॉक्टर्स इस का कारण ढूंढते है तथा उसके अनुसार उपचार करतें है.  अगर दवाई का कुछ असर नहीं होता तो सर्जरी करनें का सुझाव दिया जाता है.  

5. फाईब्रॉईड्स :  भारतीय महिलाओं में हिस्टरेक्टमी का यह प्रमुख कारण है.  यह बच्चेदानी में निर्माण होनेंवाले ट्युमर्स होते है. अधिकतर केसेस में डॉक्टर्स मरिज को लक्षण तथा बिमारी कितनी गंभीर है उसकी जांच कर हिस्टरेक्टमी का सुझाव देते है.  लक्षण तथा फाईब्रॉईड्स कितने बड़े है उस के अनुसार सर्जरी का सुझाव दिया जाता है.

6. युटेराईन प्रोलापेस :  ऐसी स्थिती में गर्भाशय योनी में सरक जाता है.  साधारण प्रवस के दौरान कठीनाईयों के आने से पेल्विक फ्लोर की मांसपेशीयों को नुकसान पहुंचता है.  साधारण तौर पर इस का कारण गर्भाशय को सहयोग देनेंवाली मांसपेशीयां और लिगामेंट्स में खराबी आने से यह होता है तथा यह घटना रजोनिवृत्ती के दौरान होती है.  महिलाओं को पेल्विक प्रेशर, पीठ में दर्द या असाधारण तौर पर पेशाब होना जैसे लक्षण दिखाई देते है.  इस  स्थिती से निजात पाने के लिए सर्जन्स हिस्टरेक्टमी का सुझाव देते है.

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7. कैंसर :   महिलओं के पुनरूत्पादक अवयवों के कई प्रकार के कैंसर के उपचारों में भी हिस्टरेक्टमी की जरुरत पड़ती है.  इन में युरिन कैन्सर, ओवेरियन कैन्सर, सर्वाईकल कैन्सर या फैलोपेन ट्युब कैन्सर का समावेश है. 

हिस्टरेक्टमी के बाद आनेंवाली समस्याएं | Hysterectomy Recovery: What Can You Expect?

मूत्रविसर्जन पर नियंत्रण न रहने के अलावा, जननांगों में शिथिलता और धीमी गती से चलने वाला कब्ज के साथ हिस्टरेक्टमी के बाद  मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं.   हिस्टरेक्टमी के कारण कई बार - 
- डिप्रेशन,  
- अनिद्रा, 
- मनोवृत्ती में लगातार बदलाव, 
- मानसिक विकार, 
- कामोत्तेजना में कमी जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं. कई मामलों में न्युरॉटिक डिसऑर्डर्स भी देखे गए हैं.

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क्‍या होते हैं दूसरे खतरे | Hysterectomy Side Effects to Consider 

1. बच्चेदानी निकालने से हॉर्मोन्स पर बड़ा असर नहीं पड़ता.  फिर भी ऐसी महिलाओं में कॉन्ट्रैक्टिंग ओवेरियन फेल्युअर का दुगना खतरा होता है. 
2. ओवेरियन फेल्युअर के कारण धीरे धीरे हॉर्मोन्स का स्तर गिरने लगता है.  अगर एस्ट्रोजेन का स्तर काफी मात्रा में गिरने लगता है तो डॉक्टर युट्रस के साथ ओवरीज भी निकाल देते है.  
3. रजोनिवृत्ती तुरंत होने के कारण मरीज में कॉग्निटिव इम्पेरमेंट, पार्किन्सन्स डिसीज और डेमेन्शिया होने का डर रहता है. 
4. दीर्घकालावधी में हिस्टरेक्टमी  के बाद चिंता और डिप्रेशन का ड़र रहता है.  

“ हेस्टेरोक्टमी के बाद महिलाओं में मानसिक बदलाव आने के कई कारण हो सकते है.  बच्चे दान को खोने से महिलाओं में स्त्रीत्व को खोने की भावना से डिप्रेशन आ सकता है.  मानसिक सेहत में बदलाव कभी कभी हॉर्मोन्स के स्तर में बदलाव के कारण भी हो सकता है.” मणिपाल हॉस्पिटल्स, ओल्ड एअरपोर्ट रोड पर कार्यरत कन्सल्टेंट ऑब्स्टेट्रिक्स और गाईनेकोलॉजी डॉ. मीना मुत्थैय्या ने कहा.

हिस्टेरोक्टमी के दूसरे नॉन सर्जिकल विकल्‍प

बीमारी के व्यवस्थापन करते हुए जब दुसरा पर्याय ना हो तो ही हेस्टेरेक्टमी का सुझाव देना चाहिए.  पर हेस्टेरेक्टोमी से बचने के कई नॉन सर्जिकल उपाय उपलब्ध है.  जैसे -

1. दवाइयां :  अधिकतर बिमारीयों में पहली उपचार पध्दती दवाईयां ही होती है.  पीआईडी, क्रोनिक पेल्विक पेन, मोनोरेजिया के लिए मौखिक गर्भनिरोधक तथा फाईब्रॉईड्स के लिए ओवरी में सिक्रेटिंग हॉर्मोन्स के लिए डॉक्टर दवाईयों का सुझाव देते है.  

2. माईमेक्टोनॉमी : यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिस में डॉक्टर बच्चेदानी को सुरक्षित रखते हुए फाईब्रॉईड्स निकाल देते है.  

3. एमोबिलाईजेशन :  यह प्रक्रिया भी फाईब्रॉईड्स के व्यवस्थापन में की जाती है.  इस प्रक्रिया में डॉक्टर फाईब्रॉईड्स को होनेंवाली खून की आपूर्ती बंद कर देते है.  

4. एब्लेशन :  मेनोरेजिया के लक्षणो को कम करने हेतु इस तंत्र का प्रयोग किया जाता है.  इस में क्रायोब्लेशन, बलून एब्लेशन और रेडिओफ्रीक्वेन्सी एब्लेशन का समावेश है.

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साइड इफेक्‍ट : 

- मूत्राशय, बोवेल तथा मूत्रवाहीनी में चोट जैसी समस्याएं
- इस में अधिक रक्तस्राव हो सकता है

हिस्टेरोक्टमी लास्‍ट ऑप्‍शन कब होता है? 

- जब लक्षणों पर उपचार करनें में दवाईयों का असर नाकाम होता है तब और फिर भी बिमारी बढ़ने लगती है तब. जैसे एयूबी जैसी स्थिती, फाईब्रॉईड यूट्रस, पीआईडी, एन्डोमेट्रियोसिस. 
- रजोनिवृत्ती के बाद रक्तस्राव होनें के साथ ही कैन्सर का शक होना
- जब मूत्राशय और रेक्टल डिसेंट के साथ गर्भाशय -योनी के पास हो
- जेनिटल ट्रैक्ट का कैन्सर जैसे. सर्विक्स, यूट्रस, ओवरीज और फेलोपेन ट्यूब्ज
- गर्भावस्था के दौरान बच्चे के जन्म के बाद दवाईयां देने के बावजूद अनियंत्रित रक्तस्राव होने लगता है.
- गर्भाशय की दिवार के साथ निचले हिस्से में और/या प्लेसेंटा टिश्युज मूत्राशय को दबा रहीं हो तब.

सर्जरी के बाद कैसे करें लाइस्‍टाइल में बदलाव

- साधारण तौर पर जब मरीज का समुपदेशन किया हो और उसे हिस्टरेक्टमी के बारें में उसे योग्य जानकारी दी जाए तो कुछ नहीं होता.
- कसरत न करने या अधिक आराम करने के कारण वजन बढ़ सकता है.
- अगर ओवरीज को निकाल दिया जाता है तो योनी में सूखापन आ सकता है. 

(यह लेख मणिपाल हॉस्पिटल्स, ओल्ड एअरपोर्ट रोड पर कार्यरत कन्सल्टेंट ऑब्स्टेट्रिक्स और गाईनेकोलॉजी डॉ. मीना मुत्थैय्या से बातचीत पर आधार‍ित है.)

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