Eating on Irregular Times Effects: समय पर खाना कई लोगों के लिए सबसे मुश्किल काम बन गया है. कभी काम की भागदौड़, कभी देर रात तक मोबाइल या लैपटॉप, तो कभी सुबह की जल्दबाजी इन सबके बीच खाना कब और कैसे खाया गया, इस पर ध्यान ही नहीं रहता. कोई सुबह का नाश्ता छोड़ देता है, तो कोई दोपहर का खाना शाम में खाता है. कई लोग रात को बहुत देर से डिनर करते हैं. लेकिन, डॉक्टरों का कहना है कि अगर लंबे समय तक खाने का कोई तय समय नहीं रहा, तो इसका सीधा असर हमारे हार्मोन्स और पूरी सेहत पर पड़ता है.
एफएमआरआई (FMRI) गुड़गांव में हेड क्लिनिकल न्यूट्रिशन डॉ. दीप्ति खटूजा बताती हैं कि शरीर एक बायोलॉजिकल क्लॉक पर चलता है. जैसे सोने-जागने का एक समय होता है, वैसे ही खाने का भी एक रूटीन शरीर को चाहिए. जब हम रोज अलग-अलग समय पर खाते हैं, तो शरीर को यह समझ ही नहीं आता कि कब पाचन के लिए तैयार होना है और कब आराम करना है. यही गड़बड़ी धीरे-धीरे हार्मोन असंतुलन की वजह बन जाती है.
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शरीर के हार्मोन्स और खाने का समय | Body Hormones And Meal Timing
हमारे शरीर में कई हार्मोन्स ऐसे हैं जो भूख, पाचन, नींद और एनर्जी को कंट्रोल करते हैं, जैसे:
- इंसुलिन: ब्लड शुगर को कंट्रोल करता है.
- कोर्टिसोल: स्ट्रेस और एनर्जी से जुड़ा हार्मोन.
- मेलाटोनिन: नींद का हार्मोन.
- घ्रेलिन और लेप्टिन: भूख और पेट भरे होने का संकेत देते हैं.
जब खाने का समय रोज बदलता रहता है, तो ये हार्मोन्स भ्रमित हो जाते हैं. नतीजा यह होता है कि कभी बहुत ज्यादा भूख लगती है, कभी बिल्कुल नहीं, कभी थकान रहती है तो कभी नींद नहीं आती.
खाना खाने का कोई फिक्स टाइम न हो, तो हो सकती हैं ये 5 बीमारियां:
डॉक्टर के अनुसार, लंबे समय तक अनियमित खाने की आदतें कई गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती हैं.
1. पाचन संबंधी समस्याएं
जब खाना रोज अलग-अलग समय पर खाया जाता है, तो पाचन तंत्र सही तरह से काम नहीं कर पाता. इससे गैस, एसिडिटी, अपच, कब्ज और पेट दर्द जैसी समस्याएं होने लगती हैं. कई लोगों को खाली पेट ज्यादा देर रहने के बाद अचानक ज्यादा खाना खाने से भारीपन और उलझन महसूस होती है.
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2. वजन बढ़ना या अचानक वजन गिरना
समय पर न खाने से मेटाबॉलिज्म बिगड़ जाता है. कभी बहुत देर तक भूखे रहने से शरीर स्टोरेज मोड में चला जाता है और ज्यादा फैट जमा करने लगता है. वहीं, कुछ लोगों में भूख खत्म हो जाती है और वजन तेजी से घटने लगता है. दोनों ही स्थितियां सेहत के लिए ठीक नहीं हैं.

3. डायबिटीज का खतरा
डॉ. दीप्ति खटूजा बताती हैं कि अनियमित समय पर खाने से इंसुलिन हार्मोन पर बुरा असर पड़ता है. जब कभी बहुत देर से और कभी बहुत जल्दी खाना खाया जाता है, तो ब्लड शुगर लेवल बार-बार ऊपर-नीचे होता है. लंबे समय तक ऐसा रहने पर टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.
4. हार्मोनल असंतुलन और थकान
खाने का कोई रूटीन न होने से शरीर में स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल बढ़ सकता है. इससे हर समय थकान, चिड़चिड़ापन, बेचैनी और ध्यान न लगने की समस्या होती है. महिलाओं में इससे पीरियड्स अनियमित होना, पीसीओडी जैसी समस्याएं भी देखी जाती हैं.
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5. नींद और मानसिक सेहत पर असर
देर रात खाना या रोज अलग-अलग समय पर डिनर करने से नींद का हार्मोन मेलाटोनिन प्रभावित होता है. इससे नींद ठीक से नहीं आती, बार-बार नींद टूटती है और सुबह भारीपन रहता है. धीरे-धीरे यह एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याओं की वजह भी बन सकता है.
क्या सच में खाने का कोई फिक्स टाइम नहीं होता?
डॉक्टर साफ कहते हैं कि हर इंसान के लिए एक ही समय सही हो, ऐसा जरूरी नहीं है. लेकिन, हर व्यक्ति के लिए उसका अपना एक तय रूटीन होना बहुत जरूरी है.
मतलब यह कि:
- रोज नाश्ता लगभग एक ही समय पर करें.
- लंच और डिनर के बीच बहुत ज्यादा अंतर न हो.
- रोज बहुत देर से या बहुत जल्दी खाने की आदत न बदलें.
शरीर को नियमितता (Regularity) पसंद है, न कि परफेक्ट टाइम.
सही समय पर खाने से क्या फायदे होते हैं?
- पाचन बेहतर रहता है.
- हार्मोन्स संतुलित रहते हैं.
- वजन कंट्रोल में रहता है.
- एनर्जी लेवल अच्छा रहता है.
- नींद और मूड बेहतर रहता है.
समय पर खाना शुरू करने के आसान टिप्स
- सुबह उठने के 1-2 घंटे के अंदर नाश्ता कर लें.
- हर 3-4 घंटे में कुछ न कुछ हेल्दी खाएं.
- रात का खाना सोने से कम से कम 2-3 घंटे पहले लें.
- बहुत देर तक भूखे न रहें.
- मोबाइल या काम में उलझकर खाना स्किप न करें.
एक समय पर खाना न खाना सिर्फ पेट की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे शरीर के हार्मोन्स को बिगाड़ सकता है. डॉक्टरों के अनुसार, अगर खाने का कोई फिक्स रूटीन नहीं है, तो पाचन से लेकर वजन, डायबिटीज, नींद और मानसिक सेहत तक सब प्रभावित हो सकता है. इसलिए जरूरी नहीं कि आप बिल्कुल घड़ी देखकर खाएं. लेकिन, रोज एक जैसा रूटीन जरूर बनाएं. यही छोटी-सी आदत लंबे समय तक बड़ी बीमारियों से बचाने में मदद कर सकती है.
(यह लेख एफएमआरआई (FMRI) गुड़गांव में हेड क्लिनिकल न्यूट्रिशन डॉ. दीप्ति खटूजा से बातचीत पर आधारित है)
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