यूरोप में हाल ही में एक बेहद ही चौंकाने वाला मामला सामने आया है. दरअसल मामला साल 2005 का है , जहां एक स्टूडेंट का स्पर्म डोनेट कराया गया था. बीते 17 सालों में उसके स्पर्म से 197 से ज्यादा बच्चे पैदा हुए और इन सभी बच्चों में खतरनाक TP53 म्यूटेशन था , जो Li-Fraumeni Syndrome का कारण बनता है और 90% तक कैंसर का जोखिम बढ़ाता है. इस मामले ने फर्टिलिटी क्लीनिकों की स्क्रीनिंग और बायोलॉजिकल टेस्टिंग पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं.
कैसे सामने आया पूरा मामला?
डॉक्टरों ने देखा कि कई बच्चों में बचपन से ही कैंसर के केस बढ़ रहे थे. जांच में पता चला कि यह सभी बच्चे एक ही डोनर के स्पर्म से पैदा हुए थे. इस जांच में 67 बच्चों में से 23 में खतरनाक वैरिएंट मिला. 10 बच्चों में कैंसर की पुष्टि और कुछ की कम उम्र में मौत भी हुई. फ्रांस, बेल्जियम और अन्य देशों में डॉक्टरों ने चेतावनी दी कि यह जेनेटिक खतरा आने वाले वर्षों में और बच्चों को प्रभावित कर सकता है.
17 साल तक चलता रहा स्पर्म डोनेशन
मामले की रिपोर्ट के अनुसार, यह स्पर्म डोनेशन 2005 में शुरू हुआ जब डोनर एक छात्र था और पैसे के बदले स्पर्म दान करता था. अगले 17 वर्षों तक अलग-अलग देशों की महिलाओं ने इसका उपयोग किया. स्पर्म को 14 देशों के 67 फर्टिलिटी क्लीनिकों ने इस्तेमाल किया. यह स्पर्म UK के किसी क्लीनिक को नहीं बेचा गया.
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कई बच्चे गंभीर बीमारी के शिकार
कई बच्चों में यह खतरनाक म्यूटेशन ट्रांसफर हुआ और कुछ बच्चे इस बीमारी से मौत का शिकार हो चुके हैं. विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रकार के म्यूटेशन वाले बहुत कम लोग ही जीवन भर कैंसर से बच पाते हैं. परिवार अब मेडिकल हेल्प, जेनेटिक काउंसलिंग और लंबी हेल्थ काउंसलिंग पर निर्भर हैं.
मेडिकल सिस्टम पर सवाल
यह मामला बताता है कि स्पर्म डोनर की जेनेटिक जांच—खासकर कैंसर प्रोन म्यूटेशन—कितना जरूरी है. यूरोपीय हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि डोनर स्क्रीनिंग प्रोसेस में बड़े बदलाव की ज़रूरत है ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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