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This Article is From Jul 04, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : दिल्ली और केंद्र सरकार की खींचतान बढ़ी

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 04, 2016 21:55 pm IST
    • Published On जुलाई 04, 2016 21:55 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 04, 2016 21:55 pm IST
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दो बड़े अफ़सरों समेत पांच लोगों को सीबीआई ने गिरफ़्तार कर लिया है। इनमें मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार और उप सचिव तरुण शर्मा शामिल हैं। सीबीआई ने राजेंद्र कुमार को 50 करोड़ के घोटाले का सरगना बताया है। राजेंद्र कुमार पर आरोप है कि उन्होंने कई फ्रंट कंपनियां बनाकर बिना टेंडर सरकारी कॉन्ट्रैक्ट दिए, जिससे दिल्ली सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ।

इस पूरे मामले की शुरुआत पिछले साल 15 दिसंबर को हुई जब सीबीआई ने दिल्ली सचिवालय में मुख्यमंत्री के कार्यालय पर छापा डाला था और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार से जुड़ी फाइलें ज़ब्त कर ली थीं। छापों के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि सीबीआई ने DDCA से जुड़ी फाइल को ढूंढने के लिए उनके दफ़्तर पर छापा मारा। केजरीवाल ने कहा था कि उस फ़ाइल के आधार पर वित्त मंत्री अरुण जेटली फंस रहे थे। लेकिन बाद में सीबीआई ने राजेंद्र कुमार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। राजेंद्र कुमार पर अपने पद के दुरुपयोग और 2007 से 2014 के बीच एक कंपनी को साढ़े नौ करोड़ के टेंडर दिलवाने के आरोपों में केस दर्ज हुए। सीबीआई के मुताबिक 2006 में राजेंद्र कुमार ने दिल्ली सरकार को IT solutions और software देने के लिए एक कंपनी Endeavours Systems Private Ltd बनाई।

सीबीआई का आरोप है कि राजेंद्र कुमार ने दिल्ली सरकार के सूचना तकनीक से जुड़े कामों के ठेके Endeavour Systems को दिलवाए। इसके लिए कंपनी को कई पब्लिक सेक्टर यूनिटों के पैनल में भी शामिल किया गया, ताकि उसे बिना टेंडर के सरकारी काम मिल सके।

दिल्ली की राजनीति में कब कौन सी घटना ख़बर है और कौन सी घटना ख़बर की आड़ में प्रोपेगैंडा और खेल, समझना मुश्किल होता जा रहा है। दिल्ली में हर दूसरे दिन दोनों पक्षों की तरफ से कोई न कोई मामला उठता है और घमासान मचता है। कभी विधायक गिरफ्तार होता है, कभी मंत्री के ख़िलाफ एफआईआर होती है, कभी राष्ट्रपति विधानसभा के पास किए हुए कानून लौटा देते हैं, कभी 21 विधायकों को लेकर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला आ जाता है, कभी अफसरों के तबादले को लेकर आरोप-प्रत्यारोप चलने लगते हैं। उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच अधिकारों की लड़ाई और अधिकारियों के तबादले की खबरों से अभी तक यह सुनिश्चित नहीं हुआ है कि यह सरकार कैसे चलती है। अचानक दिल्ली को कोई शहर कहने लगता है कोई नगरपालिका कहने लगता है, कोई कुछ कहने लगता है। दोनों पक्षों की तरफ से खूब तर्क दिये जाते हैं, खूब हमले होते हैं।

हमारे सहयोगी आशीष भार्गव के मुताबिक दिल्ली हाईकोर्ट में इस वक्त दस याचिकाएं हैं। दिल्ली सरकार ने 2002 के सीएनजी फिटनेस घोटाले की जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस एस एन अग्रवाल की अध्यक्षता में एक जांच आयोग बनाया। जस्टिस अग्रवाल ने उप राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा है कि आपने अपने ऑफिस के ओहदे की गरिमा गिराई है यह कहते हुए कि आप केंद्रीय गृहमंत्रालय के आदेशों से बंधे हैं। जस्टिस अग्रवाल के इस पत्र के अनुसार उप राज्यपाल ने उनकी अध्यक्षता में बने आयोग को सहयोग करने से मना कर दिया। गृहमंत्रालय ने दिल्ली सरकार के बनाए आयोग को कानूनी रूप से अवैध करार दिया था। इस तरह की टकराव की घटना दिल्ली, केंद्र और उप राज्यपाल के बीच आम हो गई है। दिल्ली हाई कोर्ट में दिल्ली और उप राज्यपाल के बीच अधिकारों की स्पष्टता को लेकर भी याचिकाएं चल रही हैं। शुक्रवार को दिल्ली सरकार ने ऐसी स्पष्टता के लिए सुप्रीम कोर्ट से दरख्वास्त की कि इस मामले को जल्दी सुना जाए। सोमवार को सुनवाई होनी थी मगर जस्टिस जे एस खेहर ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। अब मामले को दूसरी बेंच के पास भेजा जाएगा। दिल्ली सरकार चाहती है कि हाईकोर्ट की जगह सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो क्योंकि वहां ये मामला कई महीनों से लंबित है जिससे दिल्ली सरकार का कामकाज प्रभावित हो रहा है। संविधान के मुताबिक जब केंद्र और राज्य के बीच विवाद होता है तो उसका निपटारा करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को है न कि होईकोर्ट को।

इस टकराव पर अनंत बहस मीडिया में भी हो चुकी है। आम आदमी पार्टी के विरोधी स्वराज अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव ने भी कहा है कि डेढ़ साल हो गए इस मामले को अदालत में। कुछ भी नहीं निकला है। किसी न किसी को इसे समाप्त करना ही होगा। उम्मीद है सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट फैसला देगा जिससे दिल्ली की जनता को संदेश जाए कि राष्ट्रीय राजधानी पर किसका शासन चलता है। कम से कम दोनों के बीच इस लड़ाई का अंत होना ही चाहिए।

पिछले साल अगस्त में दिल्ली सरकार ने कृषि भूमि का सर्किल रेट बढ़ा दिया। उप राज्यपाल ने दिल्ली सरकार को इस पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया। इस फैसले के खिलाफ दो याचिकाएं अदालत में दायर हो गईं। तब हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें इस बात की जांच करनी होगी कि अपने नाम से जारी नोटिफिकेशन पर उप राज्यपाल को दस्तखत करने की ज़रूरत है या नहीं। फिर गृहमंत्रालय ने आदेश जारी कर दिया कि राजधानी में नौकरशाहों की नियुक्ति का अधिकार उसके पास सुरक्षित है। आए दिन टकराव की खबरें आ रही हैं इन सब की जड़ में उस फैसला का इंतज़ार है कि दिल्ली में उप राज्यपाल के अधिकार क्या हैं और दिल्ली सरकार के क्या। किताबों में तो लिखित हैं मगर जब डेढ़ साल से विवाद हो रहे हैं तो इस पर स्पष्टता ज़रूरी है। यही नहीं दिल्ली विधानसभा के पास किये गए तीन कानूनों के भी राष्ट्रपति के यहां से भेज दिये जाने की ख़बर आई थी। ज़ाहिर है कि इस बहस में जो जीतेगा वो अंतिम दलील होगी या जो संविधान की व्याख्या होगी। संविधान की अंतिम व्याख्या कौन करेगा। प्रवक्ता या प्रेस कांफ्रेंस से होगा या टीवी के एंकर से होगा। दोनों तरफ से हमलों में कोई कमी नहीं रखी जा रही है। आम आदमी पार्टी की तरफ से कभी प्रधानमंत्री की डिग्री का मसला उछाला जाता है तो कभी उनके मंत्रियों की डिग्री को लेकर सवाल उठने लगते हैं।

आम आदमी पार्टी दलील देती है कि पंजाब और गोवा में उसकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण यह सब हो रहा है। यह तर्क राजनीतिक है। जब से केंद्र और दिल्ली के बीच टकराव शुरू हुआ है तब पंजाब और गोवा चुनाव की बात भी नहीं थी। तथ्य यह है कि दोनों के बीच टकराव है। किस कारण है और किस भय से है यह संदर्भ की बात है। अरविंद केजरीवाल पंजाब के दौरे पर हैं। आम आदमी पार्टी का दावा है कि वहां उसे सफलता मिलने वाली है। उसकी सभाओं में भीड़ आ रही है और कोई सर्वे हैं जिसके कारण वे चुनाव जीत से गए हैं। गोवा में भी सर्वे ने जिता दिया है। बीजेपी कहती है कि चुनाव हुए तो नहीं तो सर्वे की क्या प्रासंगिकता। बीजेपी का कहना है कि आईएएस अफसर राजेंद्र कुमार के खिलाफ कई सारे मामले हैं। केजरीवाल बतायें कि वो एक भ्रष्ट अधिकारी को बचाने का प्रयास क्यों कर रहे हैं।

दिल्ली में कथित रूप से इतने घोटाले निकल आए हैं कि वक्त का तकाज़ा कहता है कि दिल्ली के लिए सही लोकपाल की नियुक्ति हो जानी चाहिए जिसके बारे में सब भूल गए हैं। लोकपाल होता तो भ्रष्टाचार के इन मामलों की स्वतंत्र रूप से जाचं कर रहा होता। जब एंटी करप्शन ब्यूरो से ही काम चलाना था तो देश का इतना वक्त क्यों ख़राब किया गया और संसद के पास कानून की क्या मान्यता रह जाती है।

सोमवार को एंटी करप्शन ब्यूरो ने दिल्ली के जल संसाधन मंत्री कपिल मिश्रा से पूछताछ की। एसीबी का कहना है कि मिश्रा ने जांच में सहयोग नहीं किया। कपिल मिश्रा का कहना है कि एसीबी उन्हें फंसाने की कोशिश कर रही है। कपिल मिश्रा भी पूरे लाव लश्कर के साथ एसीबी पहुंचे जैसे जंतर मंतर गए हों। इस कथित टैंकर घोटाले की जांच बीते साल कपिल मिश्रा ने ही कराई थी। 400 करोड़ के कथित नुकसान के लिए शीला दीक्षित सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया था। लेकिन जांच के बाद कार्रवाई में देरी हुई। टैंकर कंपनी को भी नहीं रोका गया। एसीबी जानना चाहती है कि जांच की रिपोर्ट आने के बाद क्यों दबाई गई। कपिल मिश्रा का आरोप है कि उनसे शीला दीक्षित की भूमिका को लेकर एक भी सवाल नहीं किया गया। मिश्रा ने ट्वीट किया कि उनसे एसीबी के छह अफसर पूछताछ कर रहे हैं। उनका मकसद मुझे और अरविंद केजरीवाल को फंसाना है।

सारे विवाद सड़क पर निपटाये जा रहे हैं। कौन सही है इसका कोई मतलब नहीं है। बात जब अदालत में पहुंचेगी और जब फैसला आएगा तभी पता चलेगा। डेढ़ साल से यही फैसला आ रहा है कि उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार के अधिकार क्या हैं। घमासान भयंकर है दोनों के बीच। बीजेपी बनाम आम आदमी पार्टी के बीच मुख्य लड़ाई चलती है। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सोमवार को कहा कि दोपहर में आदेश मिला कि दिल्ली सरकार के 9 अफसरों का तबादला कर दिया गया है। दो दिन में ग्यारह अफसरों का तबादला किया गया है। 18 मई को दिल्ली सरकार ने भी 11 नौकरशाहों के तबादले किये थे। जिसमें छह आईएएस अफसर हैं और पांच अधिकारी दिल्ली अंडमान निकोबार आइलैंड सिविल सर्विसेज के अधिकारी हैं।

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