बिहार की राजनीति में एक बार फिर भाजपा ने संगठनात्मक मजबूती और अनुभव की मिसाल पेश की है. डॉ. प्रेम कुमार को सर्वसम्मति से बिहार विधानसभा का नया अध्यक्ष चुना गया है. एनडीए घटक दलों भाजपा, जेडीयू, लोजपा (रामविलास), हम और रालोजपा के बीच सोमवार को हुई बैठक में प्रेम कुमार के नाम पर सहमति बनी. विपक्ष यानी महागठबंधन ने इस बार अध्यक्ष पद के लिए कोई उम्मीदवार नहीं उतारा, जिससे यह पहले ही तय हो गया कि प्रेम कुमार निर्विरोध चुने जाएंगे.
राज्यपाल के आदेश के बाद आज हुई औपचारिक प्रक्रिया में प्रेम कुमार ने विधानसभा अध्यक्ष पद की शपथ ली. नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें बधाई दी. डॉ. प्रेम कुमार बिहार भाजपा के उन चंद नेताओं में से हैं जिनका राजनीतिक सफर पूरी तरह संगठन की मिट्टी से शुरू होकर सत्ता की ऊँचाइयों तक पहुंचा है. उनका जन्म गया ज़िले में हुआ था. वे पेशे से एक कृषि विज्ञानी हैं और छात्र राजनीति से ही भाजपा से जुड़े रहे. 1980 के दशक में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीति की शुरुआत की, फिर धीरे-धीरे भाजपा के संगठन में सक्रिय हुए.
वे लगातार आठ बार विधायक चुने गए हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. पहली बार वे 1990 में गया टाउन सीट से विधायक बने थे, और तब से लेकर आज तक उन्होंने वह सीट कभी नहीं गंवाई. यह निरंतर जनसमर्थन उनके लोकप्रिय और सुलझे हुए नेता होने का सबूत है. प्रेम कुमार भाजपा के उन नेताओं में से हैं जो सत्ता में रहते हुए भी विवादों से दूर रहे हैं. वे कई बार राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं, कृषि, सहकारिता, नगर विकास, और पर्यटन जैसे विभाग उनके पास रहे.
नीतीश कुमार के साथ उनका रिश्ता शुरू से ही सहयोग और संतुलन का रहा है. जब 2005 में नीतीश पहली बार मुख्यमंत्री बने, तो प्रेम कुमार उनकी सरकार के सबसे भरोसेमंद मंत्रियों में शामिल हुए. 2017 में जेडीयू के दोबारा एनडीए में लौटने के बाद भी वे भाजपा के वरिष्ठ चेहरे के रूप में उभरे.विधानसभा अध्यक्ष का पद केवल औपचारिक नहीं होता, बल्कि यह राजनीतिक संतुलन और अनुशासन का केंद्र होता है. इस पद पर बैठे व्यक्ति की भूमिका विधानसभा में
सरकार और विपक्ष, दोनों के बीच संवाद बनाए रखने की होती है.भाजपा ने प्रेम कुमार को यह पद देकर कुछ ख़ास संदेश दिए हैं . पार्टी ने यह स्पष्ट किया है कि सत्ता में अब अनुभव और सादगी को वरीयता दी जाएगी. जेडीयू को मुख्यमंत्री पद मिलने के बाद भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष का पद अपने खाते में रखकर सत्ता संतुलन का समीकरण साधा है.
भाजपा ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि वह सरकार में अपनी हिस्सेदारी के साथ-साथ संवैधानिक संस्थानों में भी अपनी उपस्थिति मजबूत रखना चाहती है. डॉ. प्रेम कुमार के सामने चुनौती होगी कि वे एक ऐसे सदन का संचालन करें जहाँ विपक्ष आक्रामक है और सरकार गठबंधन की सीमाओं में बंधी हुई है और निश्चित रूप से, ये ज़िम्मेवारी डॉ. प्रेम कुमार ही होगी.
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