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14 साल की मेहनत और अब मिला अमेरिका का ग्रीन कार्ड, भारतीय रिसर्चर ने शेयर किया पूरा एक्सपीरियंस  

शख्स साल 2011 में  F-1 वीजा के तहत इलिनोइस विश्वविद्यालय अर्बाना-कैंपेन (UIUC) से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका गया था.

14 साल की मेहनत और अब मिला अमेरिका का ग्रीन कार्ड, भारतीय रिसर्चर ने शेयर किया पूरा एक्सपीरियंस  
भारतीय रिसर्चर ने शेयर किया अमेरिका में ग्रीन कार्ड पाने का एक्सपीरियंस  

अमेरिकी सरकार ने हाल ही में अपने दो बड़े फैसलों से भारत की चिंता बढ़ा दी है. इसमें पहला ट्रेड पर 50 फीसदी का टैरिफ और दूसरा H-1B वीजा (काम करने का वीजा) की सालाना फीस 6 लाख से बढ़ाकर इसे तकरीबन 90 लाख रुपये कर दिया है. इस बीच अमेरिका में एक भारतीय रिसर्चर ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट साझा किया है. इस पोस्ट में इस भारतीय रिसर्चर ने अमेरिका में अपने 14 साल के सफर के बारे में बताया है. आज यह भारतीय रिसर्चर अमेरिका में ग्रीन कार्ड होल्डर (आधिकारिक तौर पर पर्मानेंट निवासी) बन गया है. यह शख्स ग्रीन कार्ड को हासिल करने के अपने सपने को लेकर साल 2011 में  F-1 वीजा के तहत इलिनोइस विश्वविद्यालय अर्बाना-शैंपेन (UIUC) से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका गया था.

अड़चनों के बाद मिला गया वीजा (Indian Researcher got America Green Card)

यहां भारतीय रिसर्चर राजवसंत राजसेगर को यूआईयूसी (UIUC) में ग्रेजुएट एजुकेशन के लिए सात सालों तक फंड दिया गया और सैंडिया नेशनल प्रयोगशालाओं में पांच साल की पोस्ट डॉक्टरल ट्रेनिंग भी मिली. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद राजसेगर कोलोराडो स्कूल ऑफ माइंस में एक परमानेंट फैकल्टी मेंबर बन भी गए. उन्होंने कहा, एजुकेशन में इतना सपोर्ट मिलने के बाद वीजा के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा, मैंने खुद से कहा कि मैं EB1A ट्राई करूंगा, अगर मना कर दिया गया, तो मैं कहीं ओर मौके की तलाश करूंगा, इस प्रोसेस में कुछ अड़चनें जरूर आईं, मेरे काम पर सवाल उठाने वाला एक अनएक्सपेक्टेड RFE (सवाल-जवाब की प्रक्रिया) लेटर भी आया और फिर आखिर में मुझे वीजा मिल गया'.

लॉकडाउन में मिला बड़ा तोहफा  (Indian  America Green Card)

राजसेगर ने आगे कहा, कि उन्हें फाइनेंशियल प्रॉब्लम्स और जॉब इनसिक्योरिटी के बावजूद अमेरिका में अपना सिक्योर फ्यूचर नजर आ रहा था. उन्होंने कहा, 'मुझे अभी भी याद है कि मैंने फरवरी 2020 में अपने मैनेजर से पूछा था, क्या हम H1B के लिए अप्लाई कर सकते हैं? तभी तीन महीने बाद ही, जब लॉकडाउन लगा तो मेरे पास एक लेटर आया जिसमें लिखा था, आप हमारे और अमेरिका के लिए मायने रखते हैं, मुझे अपने H1B स्टैम्पिंग को पूरा करने के लिए एक छूट भी दी गई थी, उन सब मेंटर्स का शुक्रिया, जिन्होंने माना कि मेरा काम मायने रखता है'.

अपनी इस कामयाबी और उपलब्धि पर बोलते हुए राजसेगर ने कहा आज वो समय नहीं है, बस यही एकमात्र फर्क है और यह बहुत बड़ा है, मैं आशा करता हूं कि अमेरिकी बनने का सपना, चाहे उसका रियल मतलब कुछ भी हो, लेकिन सपना जीवित रहना चाहिए और उन छात्रों और पेशेवरों के लिए भी यह आसानी से हो जाए, जो मेरी तरह, यहां केवल अपने लिए नहीं, बल्कि इस देश के भविष्य में योगदान देने के लिए आते हैं'.

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