- बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया का लंबी बीमारी के बाद 80 वर्ष की उम्र में निधन हुआ
- खालिदा जिया ने सैन्य शासन के बाद बांग्लादेश में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
- पति जियाउर रहमान की हत्या के बाद 1984 में उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की कमान संभाली थी
बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया का मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया, वह 80 वर्ष की थीं. जिया ने देश में उथल-पुथल भरे सैन्य शासन के बाद लोकतंत्र की पुनर्स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और दशकों तक देश की राजनीति पर अपना दबदबा बनाए रखा था. जिया के बड़े बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारीक रहमान ने कहा, “ मेरी मां अब हमारे बीच नहीं रहीं.”

खालिदा जिया: जीवन और राजनीति की कहानी
1945 में जलपाईगुड़ी में जन्मी खालिदा जिया किसी राजनीतिक परिवार से नहीं थीं. राजनीति से उनका कोई सीधा रिश्ता नहीं था. शुरुआती शिक्षा उन्होंने दिनाजपुर मिशनरी स्कूल में प्राप्त की और 1960 में दिनाजपुर गर्ल्स स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की. उनके पिता इस्कंदर मजूमदार व्यवसायी थे, जबकि मां तैयबा मजूमदार गृहिणी थीं. घर में वे दूसरी संतान थीं और परिवारजन उन्हें स्नेहपूर्वक ‘पुतुल' कहकर पुकारते थे. 1960 में उनकी शादी सेना के अधिकारी जियाउर रहमान से हुई.
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1971 में जब बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था, उस समय शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया. इसी दौर में जियाउर रहमान ने रेडियो पर घोषणा की कि वे स्वतंत्र बांग्लादेश की ओर से लड़ रहे हैं. युद्ध समाप्त होने पर रहमान सेना में लौटे और उन्हें उच्च पद मिला. धीरे-धीरे वे राजनीति में भी प्रभावशाली चेहरा बन गए. 1975 में शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार की हत्या के बाद देश में लगातार तख्तापलट होते रहे.

सेना में गुटबाजी इतनी बढ़ी कि सत्ता बार-बार बदली. इस अस्थिर माहौल में जियाउर रहमान सबसे ताकतवर सैन्य नेता बनकर उभरे और 1977 में राष्ट्रपति बने. इसके बाद उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की स्थापना की.
पति की हत्या और राजनीति में प्रवेश
30 मई 1981 को चटगांव में विद्रोह के दौरान जियाउर रहमान की हत्या कर दी गई. पति की मौत के बाद BNP बिखरने लगी और नेताओं ने खालिदा जिया को नेतृत्व संभालने के लिए प्रेरित किया. शुरुआत में उन्होंने संकोच किया, लेकिन 1984 में पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली. 1991 में जब बांग्लादेश में लोकतांत्रिक चुनाव हुए, BNP ने जीत हासिल की और खालिदा जिया देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. 1996 में सत्ता गंवानी पड़ी, लेकिन 2001 में वे फिर से प्रधानमंत्री बनीं. उनके परिवार में बड़े बेटे तारिक रहमान, दो बहुएं और तीन पोते-पोतियां हैं. छोटे बेटे आराफात रहमान कोको का 2015 में मलेशिया में निधन हो गया.
कानूनी विवाद और सजा
8 फरवरी 2018 को ढाका की विशेष अदालत ने जिया अनाथालय ट्रस्ट से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में खालिदा को 5 साल की सजा सुनाई. उनके बेटे तारिक और अन्य 5 लोगों को दस साल की कठोर सजा दी गई और 2.1 करोड़ टका का जुर्माना भी लगाया गया. खालिदा ने इस फैसले के खिलाफ अपील की. हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2018 में उनकी सजा बढ़ाकर दस साल कर दी. इसके बाद उन्होंने सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी, लेकिन कानूनी प्रक्रिया लंबी खिंचती रही. अंततः 6 अगस्त 2024 को शेख हसीना के तख्तापलट के एक दिन बाद उन्हें रिहा किया गया. इलाज के लिए वे लंदन गईं और चार महीने बाद 6 मई को वापस लौटीं.

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शेख हसीना से राजनीतिक टकराव
बांग्लादेश की राजनीति लंबे समय तक दो नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही. अवामी लीग की शेख हसीना और BNP की खालिदा जिया. 1980 के दशक में सैन्य शासन के खिलाफ दोनों ने साथ मिलकर आंदोलन किया. 1990 में लोकतंत्र की वापसी के बाद 1991 में खालिदा की जीत ने दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को गहरा कर दिया. इसके बाद हर चुनाव में सत्ता या तो खालिदा के पास रही या हसीना के पास, मीडिया ने इसे ‘बैटल ऑफ बेगम्स' नाम दिया.
पाकिस्तान समर्थक होने के आरोप
अवामी लीग अक्सर खालिदा पर पाकिस्तान समर्थक होने का आरोप लगाती रही. कहा गया कि BNP ने जमात-ए-इस्लामी जैसी पार्टियों से गठबंधन किया, जिन पर 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का साथ देने का आरोप था. 2001 से 2006 के बीच भारत ने भी आरोप लगाए कि बांग्लादेश की जमीन का इस्तेमाल पूर्वोत्तर भारत में उग्रवादी गतिविधियों के लिए हो रहा है. भारतीय एजेंसियों का कहना था कि कुछ विद्रोही संगठन बांग्लादेश में शरण लेकर भारत में हमले कर रहे हैं.
इन आरोपों के चलते यह धारणा बनी कि खालिदा पाकिस्तान के प्रति नरम और भारत के प्रति कठोर रुख रखती हैं. हालांकि BNP और उनके समर्थक इन आरोपों को राजनीतिक रणनीति बताते रहे. उनका कहना था कि अवामी लीग ने जानबूझकर BNP को बदनाम करने के लिए ऐसा माहौल बनाया. खालिदा के समर्थक यह भी याद दिलाते हैं कि 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने उन्हें गिरफ्तार किया था और उनके पति जियाउर रहमान ने रेडियो पर स्वतंत्रता की घोषणा की थी.
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