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खालिदा जिया का निधन, बांग्लादेश की राजनीति को दो ध्रुवों में बांटने वाली 'आयरन लेडी', शेख हसीना से ताउम्र चली अदावत

खालिदा जिया और शेख हसीना की दुश्मनी सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि इतिहास और सत्ता की विरासत से भी जुड़ी थी. खालिदा जिया जहां पूर्व राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान की पत्नी थीं, वहीं शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं.

खालिदा जिया का निधन, बांग्लादेश की राजनीति को दो ध्रुवों में बांटने वाली 'आयरन लेडी', शेख हसीना से ताउम्र चली अदावत
  • बांग्लादेश की पूर्व PM और BNP की प्रमुख नेता खालिदा जिया का निधन हो गया.
  • खालिदा जिया और शेख हसीना की दशकों पुरानी राजनीतिक दुश्मनी ने बांग्लादेश की राजनीति की दिशा को प्रभावित किया.
  • खालिदा को उनकी सख्ती और दृढ़ता के कारण ‘आयरन लेडी’ कहा जाता था, जिन्होंने पुरुषप्रधान राजनीति को चुनौती दी.
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बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की प्रमुख नेता खालिदा जिया का निधन हो गया है. उनके साथ बांग्लादेश की राजनीति के उस दौर का अंत हो गया, जिसे सत्ता संघर्ष, तीखे टकराव और दो ध्रुवों में बंटी राजनीति के लिए जाना जाता है. खालिदा जिया और अवामी लीग की नेता शेख हसीना के बीच चली दशकों पुरानी अदावत ने बांग्लादेश की राजनीति की दिशा तय की.

खालिदा जिया और शेख हसीना की दुश्मनी सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि इतिहास और सत्ता की विरासत से भी जुड़ी थी. खालिदा जिया जहां पूर्व राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान की पत्नी थीं, वहीं शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं. 1975 में शेख मुजीब की हत्या और 1981 में जिया-उर-रहमान की हत्या, इन दोनों घटनाओं ने बांग्लादेश की राजनीति को दो विरोधी खेमों में बांट दिया, जिसकी अगुवाई आगे चलकर इन दोनों महिलाओं ने की.

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दो महिलाओं की अदावत ने तय की देश की दिशा

1990 के दशक से दोनों नेताओं के बीच सत्ता की लड़ाई खुलकर सामने आई. जब खालिदा जिया सत्ता में थीं, तब शेख हसीना विपक्ष में सड़क पर आंदोलन करती रहीं और जब शेख हसीना सत्ता में आईं, तो खालिदा जिया को विपक्ष, जेल और अदालतों का सामना करना पड़ा. दोनों पर एक-दूसरे के खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध, लोकतंत्र कमजोर करने और संस्थाओं के दुरुपयोग के आरोप लगते रहे.

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यह अदावत इतनी गहरी थी कि संसद से लेकर सड़कों तक, हर मंच टकराव का अखाड़ा बन गया. चुनाव बहिष्कार, हड़तालें, हिंसक प्रदर्शन और सरकार गिराने की कोशिशें. इन सबने बांग्लादेश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बार-बार संकट में डाला. आलोचकों का मानना है कि इस व्यक्तिगत और राजनीतिक दुश्मनी ने देश में संवाद की राजनीति को लगभग खत्म कर दिया.

सत्ता बदली लेकिन दुश्मनी खत्म नहीं हुई

खालिदा जिया के खिलाफ चले भ्रष्टाचार के मामलों और उनकी जेल सजा को BNP ने शेख हसीना सरकार की बदले की राजनीति बताया. जबकि अवामी लीग ने इसे कानून का राज करार दिया. यही टकराव बांग्लादेश की राजनीति का स्थायी सच बन गया. जहां सत्ता बदलती रही, लेकिन दुश्मनी खत्म नहीं हुई.

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‘आयरन लेडी' के नाम से थीं मशहूर

खालिदा जिया को ‘आयरन लेडी' इसलिए कहा जाता था क्योंकि उन्होंने बांग्लादेश की राजनीति में असाधारण सख़्ती, जिद और सत्ता से टकराने की क्षमता दिखाई. वे ऐसे दौर में उभरीं, जब राजनीति पर पुरुषों और सेना का दबदबा था, लेकिन खालिदा जिया ने न सिर्फ उस व्यवस्था को चुनौती दी. बल्कि लंबे समय तक उसके बीच टिके रहने की हिम्मत भी दिखाई.

विपक्ष के प्रति अपनाया कड़ा रुख

उनकी पहचान एक कठोर फैसले लेने वाली नेता की रही. प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने विपक्ष के दबाव, सड़क आंदोलनों और सत्ता विरोधी प्रदर्शनों के सामने अक्सर नरम रुख नहीं अपनाया. समर्थकों के मुताबिक, उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा, प्रशासन और सत्ता की स्थिरता को सर्वोपरि रखा, भले ही इसके लिए आलोचना क्यों न झेलनी पड़ी.

खालिदा जिया की ‘आयरन लेडी' छवि शेख हसीना से चली उनकी अडिग राजनीतिक जंग से भी बनी. वे हार मानने वालों में नहीं थीं. सत्ता से बाहर होने, जेल जाने और गंभीर बीमारी के बावजूद उन्होंने लंबे समय तक पार्टी की कमान नहीं छोड़ी. उनके समर्थकों के लिए यह दृढ़ता और संघर्षशीलता उन्हें ‘आयरन लेडी' बनाती है.

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इसके साथ ही, आलोचक भी मानते हैं कि खालिदा जिया की राजनीति में समझौते की गुंजाइश कम थी. संसद बहिष्कार, हड़तालों और टकराव की राजनीति ने उन्हें कठोर और अडिग नेता के रूप में स्थापित किया. यही सख़्त रवैया, चाहे वह पसंद किया जाए या नहीं उन्हें बांग्लादेश की ‘आयरन लेडी' बनाता है.

जब खालिदा जिया और शेख हसीना ने मिलाया हाथ

बांग्लादेश की राजनीति में दशकों तक जारी तीखी प्रतिद्वंद्विता के बावजूद, एक ऐतिहासिक दौर ऐसा भी आया जब खालिदा जिया और शेख हसीना ने साझा मकसद के लिए साथ कदम बढ़ाए. यह दुर्लभ राजनीतिक सहयोग सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद इरशाद के शासन के खिलाफ था. उस दौर में दोनों नेताओं ने देश में संसदीय लोकतंत्र बहाल करने के लिए एक साथ मोर्चा खोला था.

1980 के दशक में जब जनरल इरशाद की तानाशाही बढ़ती जा रही थी. तब हसीना और खालिदा, अपनी वैचारिक व राजनीतिक खाई के बावजूद, सड़कों पर साथ उतरीं, संयुक्त आंदोलन चलाया और विपक्ष को एकजुट किया. यह वह दौर था जिसने बांग्लादेश में लोकतांत्रिक पुनर्स्थापना की नींव रखी और साबित किया कि राष्ट्रीय हित के लिए कट्टर राजनीतिक शत्रु भी हाथ मिला सकते हैं.

राजनीतिक टकराव के युग का अंत

खालिदा जिया के निधन के साथ यह अदावत अब इतिहास का हिस्सा बन गई है, लेकिन इसके असर आज भी बांग्लादेश की राजनीति में साफ दिखाई देते हैं. उनका जाना सिर्फ एक नेता का जाना नहीं, बल्कि उस राजनीतिक टकराव के युग का अंत है, जिसने दशकों तक देश को दो हिस्सों में बांटकर रखा.

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