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बस अब दर्द बाकी, देखिए सैलाब में बहे अपने धराली को कैसे याद कर रहे लोग

पहाड़ों से आए खतरनाक सैलाब में बह गया एक गांव, लेकिन यादों की मिट्टी में अब भी जिंदा है उत्तरकाशी का धराली, यहां बस अब दर्द बाकी है — जानिए कैसे लोग उस बहे हुए गांव के वजूद को अपनी आंखों में समेटे हुए याद कर रहे हैं.

बस अब दर्द बाकी, देखिए सैलाब में बहे अपने धराली को कैसे याद कर रहे लोग
  • उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने से भारी बाढ़ आई, जिससे घर, खेत और रास्ते पूरी तरह तबाह हो गए
  • सोशल मीडिया पर लोग धराली की पुरानी तस्वीरें साझा कर अपनी यादें लोगों संग साझा कर रहे हैं.
  • पिछले एक दशक में उत्तराखंड के केदारनाथ, रैणी जैसे क्षेत्रों में जल-प्रलय की कई घटनाएं हुई हैं.
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देहरादून:

देवभूमि के खूबसूरत पहाड़ों की गोद में बसा धराली अब सिर्फ यादों में रह गया है. यहां बादल फटने से ऐसा सैलाब कि सबकुछ तबाह हो गया. बड़े-बड़े पत्थर के साथ आए खतरनाक सैलाब ने अपने साथ सब कुछ बहा दिया — घर, खेत, रास्ते और वो पहचान जिसे लोग एक जमाने से पीढ़ियों से संजोते आए थे. अब जब सैलाब सब कुछ लील चुका है तो लोगों का दर्द भी उभर रहा है. यहां की धरती से करीब से जुड़े लोग अपने बहे हुए वजूद को ढूंढ रहे हैं — किसी टूटी दीवार में, किसी तस्वीर में, या बस आंखों की नमी में. सोशल मीडिया पर देखिए कैसे धराली को याद कर रहे हैं वो लोग, जिनके लिए ये सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि उनकी रूह का हिस्सा था, बस अब दर्द बाकी है..."

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मुकेश नौटियाल नाम के यूजर ने इस जगह की पुरानी तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि नीचे दी गई दोनों तस्वीरें गंगोत्री से ठीक पहले आबाद यात्रा-पड़ाव धराली की हैं जो मुखवा गांव से खींची गई हैं. पहली फोटो मैंने साल 2022 के मई खींची थी, दूसरी आज खीरगंगा में आई प्रलय के बाद. अभी मालूम नहीं कि असल में कितने लोग हताहत हुए लेकिन धराली मलवे में पटा साफ़ नज़र आ रहा है. केदारनाथ, रैणी सहित जल-प्रलय की दर्जनों छोटी-बड़ी घटनाओं को हम विगत एक दशक में झेल चुके हैं. आज भी कई सघन बस्तियों के सिर पर आपदा मंडरा रही है. छोटी पहाड़ी सरिताओं को बस्तियों से पाटा जा चुका है. बताते हैं कि नदी और हाथी अपना रास्ता सौ साल तक नहीं भूलते. स्कूली दिनों में अपने गृहनगर रुद्रप्रयाग के जिस गदेरे को उसके तीव्र जलप्रवाह के कारण हम पार नहीं कर पाते थे उसके दोनों छोर पर अब बस अड्डा, टैक्सी स्टैंड, भव्य बाज़ार और विराट कॉलोनियां बन गई हैं. ऐसे में कब कहां धराली घट जाए -कौन जानता है! अति हो चुकी. अब हिमालय के साथ यह बेहूदा मज़ाक बंद होना ही चाहिए.

डिजिटल क्रिएटर बीना भंडारी ने लिखा कि धराली क्षेत्र (उत्तरकाशी) में बादल फटने से हुए भारी जान-माल के नुकसान का समाचार अत्यंत हृदयविदारक एवं पीड़ादायक है. ईश्वर से सभी के सकुशल होने की प्रार्थना करती हूं.

एक अन्य यूजर सुमन्त ने लिखा कि उत्तरकाशी का धराली.. सब कुछ अपनी गोद में समेट कर ले गई मां गंगा. मेरा जन्म उत्तरकाशी के जोशियाड़ा में हुआ. बचपन उत्तराखण्ड के सुदूर अंचलों में बीता. बचपन से ही देखा, चट्टानो पर बने जल प्रवाह के निशान चेतावनी देते हैं, '...बस यहीं तक, इसके आगे नहीं!" सदियों से हिन्दू समाज, प्रकृति पूजक समाज प्रकृति मां की चेतावनी को समझता आया, मर्यादा में रहा. लेकिन जिन्होंने प्रकृति की चेतावनी नहीं सुनी. जल प्रवाह की गोद में घुस गए. बिल्डिंग, बाजार खड़े कर दिए. पर्यटन के बढ़ते असर ने आंख पर लालच की पट्टी बांध दी है.

रुलर टेल्स ने फेसबुक पर लिखा कि ये दो तस्वीर मैने 2023 में दिसम्बर महीने में ली थी. ये दोनों तस्वीर धराली गांव की है जहां अभी फ्लैश फ्लड के बाद पूरा धराली बाजार तबाह हुआ है. उत्तरकाशी की गंगोत्री घाटी में उपला टकनौर क्षेत्र में सात गांव है जिनमें सुक्की,झाला,पुरसाली,बगोरी,हर्सिल,मुखबा और धराली है. धराली और मुखबा दोनों गांव आमने सामने है. इस पूरे इलाके में सुक्की,हर्सिल,और धराली सबसे ज्यादा संवेदनशील है. धराली और हर्सिल दोनों की नदियों के किनारे है और ये नदियों हमेशा बाढ के बाद नुकसान करती रही है. हर्सिल में भी जलन्धरी नदी द्वारा लाए गये मलबे पर आज की नई बसासत है, जबकि खीर गाड के श्रीकंठ पर्वत के उत्तरी ढाल से आती है.

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