बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को करारी हार मिली है. इस हार के बाद कांग्रेस सभी सहयोगी दलों के निशाने पर है. दरअसल, देश में कहीं भी चुनाव हो कांग्रेस वोट चोरी का आरोप लगाने से पीछे नहीं हटती है. राहुल गांधी हाइड्रोजन बम तोड़ने का दावा करते हैं. अगले महीने वोट चोरी के मुद्दे पर दिल्ली में एक बड़ी रैली भी होने वाली है. इन सबके बीच एक खबर ये भी है कि उत्तर प्रदेश में हो रहे एसआईआर की प्रक्रिया में कांग्रेस ने करीब 90 फीसदी सीटों पर अपने एजेंट्स ही नहीं दिए हैं.
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) की प्रक्रिया यूपी में चल रही है. वोटर्स की लिस्ट को दुरुस्त करने के लिए चुनाव आयोग की तरफ से कराई जा रही इस कवायद को लेकर सवाल उठाने वाली कांग्रेस पार्टी का हाल ये है कि वो ज्यादातर सीटों पर अपने एजेंट्स नहीं दे रही है.
एसआईआर में बीएलओ और बीएलए
दरअसल एसआईआर के लिए चुनाव आयोग बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) को काम पर लगाता है. प्रक्रिया की पारदर्शिता के लिए चुनाव आयोग ने मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से अपने बूथ लेवल एजेंट्स (बीएलए) लगाने को कहा है. उत्तर प्रदेश में हो रहे एसआईआर में बीजेपी, सपा और बसपा ने तो सभी सीटों पर अपने एजेंट तैनात कर दिए हैं, लेकिन कांग्रेस की तरफ से सिर्फ दस फीसदी सीटों पर ही एजेंट मुहैया कराए गए हैं.
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यूपी में 28 अक्टूबर से तीन नवंबर तक ट्रेनिंग और एनुमरेशन फार्म की छपाई की प्रक्रिया हुई. इस दौरान चुनाव आयोग ने सभी मान्यता प्राप्त दलों से घर-घर जाकर वोटर्स की जानकारी लेने की प्रक्रिया में बीएलओ के साथ अपने एजेंट्स यानी बीएलए मुहैया कराने का आग्रह किया था.चार नवंबर से शुरू हुई प्रक्रिया का आधा काम पूरा होने के बावजूद कांग्रेस ने अब तक 90 फीसदी सीटों पर अपने एजेंट्स नहीं दिए हैं. वहीं दूसरी ओर प्रदेश में कांग्रेस की सहयोगी समाजवादी पार्टी ने एसआईआर के लिए कमर कस रखी है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव लगातार लखनऊ में बैठकें कर रहे हैं. वहीं सपा कार्यकर्ता पीडीए प्रहरी बनकर अपने वोट बचाने की कवायद में जुटे हैं.
कांग्रेस के चुनाव आयोग पर लगाए जाने वाले आरोपों और बूथ लेवल एजेंट्स ना देने पर बीजेपी उस पर निशाना साध रही है. फ़िलहाल यूपी में एसआईआर का काम चल रहा है, लेकिन कांग्रेस का रुख देखकर हैरानी हो रही है कि आखिर सब जानते हुए भी अपने एजेंट्स देने में इतनी देरी क्यों कर रही है. यूपी में एसआईआर की प्रक्रिया फरवरी में पूरी होगी. यानी 2027 के विधानसभा चुनाव से एक साल पहले.
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