
मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद एक बार फिर तबादलों का दौर शुरू हो गया है. शनिवार को भी 60 से ज्यादा आईएएस-आईपीएएस अधिकारियों के तबादले हुए हैं. विपक्ष एक बार फिर सरकार पर तबादला उद्योग चलाने का आरोप लगाने लगा है, वहीं सरकार का कहना है कि बीजेपी के राज में इससे ज्यादा तबादले होते थे.
राज्य में 165 दिन से कमलनाथ सरकार सत्ता में है. इस दौरान 450 से ज्यादा आईएएस-आईपीएस अधिकारियों के तबादले हो चुके हैं. 18 दिसंबर 2018 से एक जून 2019 तक 84 आईएएएस अधिकारियों के तबादले के आदेश निकल चुके हैं. सभी 10 संभागों के कमिश्नर और 52 जिलों के कलेक्टर बदले जा चुके हैं. 48 एसपी बदल दिए गए हैं. राज्य स्तर के अधिकारियों को भी जोड़ दें तो यह आंकड़ा 15,000 से ज्यादा है.
सरकार का कहना है कि यह सारा काम प्रशासनिक कसावट के लिए हो रहा है, अभी और तबादले होंगे. जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि 'बीजेपी की 15 साल की सरकार में 5000 ट्रांसफर हुए. उस जमाने में कलेक्टर-एसपी की पोस्टिंग पैसे लेकर होती थी. अभी और तबादले होंगे, प्रशासन में कसावट करना है. 165 दिन में 70 दिन तो मिले हैं बाकी दिन तो आचार संहिता में निकल गए.'
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लोकसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश और दिल्ली में 52 ठिकानों पर छापे मारे गए थे, जिसमें कुछ लोगों को कमलनाथ का करीबी बताया गया. यह भी आरोप लगे कि हवाला के जरिए 281 करोड़ रुपये की रकम भेजी गई. लोकसभा चुनावों में इसे तबादला उद्योग का पैसा बताकर बीजेपी ने कांग्रेस पर तीखा हमला भी बोला था.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता विश्वास सारंग ने कहा 'सरकार को हनीमून पीरियड से बाहर आना होगा. तबादला उद्योग से जो पैसे की उगाही कर रहे हैं उसे बंद कर जनता और किसानों के हित में काम करना होगा. आयकर के छापे पड़ रहे हैं. जब सीबीआई में दस्तावेज जा रहे हैं, तो साबित हो रहा है कि ट्रांसफर के माध्यम से कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए पैसा दिया गया. यह शर्म की बात है. अलग-अलग कार्यालयों से कितने पैसे दिए गए इसकी लिस्ट आ रही है.'
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बहरहाल इनकम टैक्स छापों के मामले में चुनाव आयोग ने सीबीआई जांच की सिफारिश की है. गुजारिश का औपचारिक खत 17 मई को भेजा जा चुका है.
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साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर राज्य सरकारों ने पुलिस स्थापना, यानी तबादला बोर्ड का गठन किया था. आरोप है कि सरकार की मंशा पर बोर्ड बैठता है और फैसला लेता है. प्रदेश के पुलिस स्थापना बोर्ड में डीजीपी और चार एडीजी रैंक के अधिकारी रहते हैं. तबादला बोर्ड को दो साल से पहले किसी भी एसपी को हटाने की सिफारिश करने से पहले उसका कारण बताना अनिर्वाय होता है. ऐसे में 165 दिनों में थोक में हुए तबादले निश्चित तौर पर सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
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