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This Article is From Jun 05, 2019

यहां 'जनता' नदी में रोज गड्ढा खोदकर पानी जुटा रही, कांग्रेस-बीजेपी दोषारोपण से गला तर कर रहीं

मध्यप्रदेश में विकराल जलसंकट, गांवों में पानी के लिए कई-कई किलोमीटर भटकने को मजबूर लोग, शहरों को पानी देने वाले स्रोत सूखे

यहां 'जनता' नदी में रोज गड्ढा खोदकर पानी जुटा रही, कांग्रेस-बीजेपी दोषारोपण से गला तर कर रहीं
मध्यप्रदेश में जलस्तर काफी नीचे गिरने से तालाब सूखते जा रहे हैं, पानी की समस्या बढ़ती जा रही है.
भोपाल:

मध्यप्रदेश इन दिनों भीषण जल संकट की चपेट में है. शहर और गांवों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है. राज्य के साढ़े तीन सौ से ज्यादा नगरीय निकाय सुबह-शाम पानी नहीं दे पा रहे हैं. कुछ जगहों पर तीन तो कहीं दो दिन छोड़कर पानी दिया जा रहा है. यही हाल गांवों में है, जहां कुछ जगहों पर पानी लाने के लिए  प्रदेश की सीमा पार करनी पड़ती है तो कहीं कुंए में उतरकर पानी लाना पड़ता है. उधर राज्य सरकार पुरानी सरकार पर व्यवस्था चौपट करने की तोहमत लगा रही है और जनता का मन बहलाने के लिए पानी का अधिकार देने का शिगूफा छोड़ रही है.

झाबुआ में हाथों में बर्तन लिए घूंघट में मुंह छिपाए हमें जनता बाई मिलीं, नाम जनता है, लेकिन वोट लेने के बाद जनप्रतिनिधियों ने ऐसे कई गांव वालों को झाबुआ में ‘जनता‘ मानने से इनकार कर दिया. तभी तो वे रोज नदी में गड्ढा खोदती हैं, घंटों इंतज़ार के बाद एक घड़ा पानी भरता है. 20-25 साल से ऐसे ही पानी भर रही हैं, दिक्कत है पर कोई सुनवाई नहीं, पीने का पानी गड्ढा खोदकर निकालती हैं.

राणापुर जनपद में आधा दर्जन से अधिक ग्राम पंचायतों में पानी के लिए मीलों लंबा सफर आम है. परेशान गांव वालों ने चंदा करके जेसीबी की मदद से बड़ा गड्ढा खुदवाया, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है. शहर में जिस पानी से आप हाथ धोना पसंद न करें उससे यहां के गांव वाले प्यास बुझाते हैं. नाहरपुरा, खेड़ा, भांडाखेड़ा, गलती, सुरड़िया, मांडलीनाथू, मांडलीनानजी और काकरादरा से गुजरने वाली भामसी नदी गर्मियों में सूख जाती है. करीब दो दशक पहले इसी नदी पर छह स्टॉप डैम बनाए गए थे, लेकिन वे भ्रष्टाचार के पानी में बह गए. पीएचई में तैनात इंजीनियर जितेंद्र मावी कहते हैं कि पुराने स्टॉप डैम बने हैं जो किसी कारणवश बंद हैं, वे ठीक हो जाएंगे तो वाटर लेबल बढ़ जाएगा.

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मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले के शाहपुर में कुंए, हैंडपंप सूख चुके हैं. अधेड़ मंगलू पानी की तलाश में निकले तो सूखे कुंए में गिरने से उनकी मौत हो गई. गांव के डालचंद नामदेव कहते हैं कि उसने कुएं में झांका होगा, बैलेंस नहीं होने की वजह से गिर गया.  वहीं अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शिवकुमार सिंह ने कहा जल संकट तो है, पर हम लोग मर्ग को गंभीरता से देख रहे हैं, ये घटना हुई कैसे.

रतलाम जिले के धोलावाड डैम से रतलाम शहर में पानी सप्लाई होता है. फिलहाल यह सूखने की कगार पर है. रतलाम वासियों को तीन दिन में एक बार आधे घंटे पानी मिलता है. कई इलाकों में पानी की सप्लाई टैंकर के आसरे है. मंदसौर के शहरी इलाके में हर तीसरे दिन पानी आ रहा है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में नलकूप, कुएं, हैंडपंप सूख चुके हैं. जिला मुख्यालय से सटे दौलतपुरा गांव में तो लोग स्लेट पेंसिल खदानों का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. कचरे और प्रदूषित पानी से भरी इन खदानों के कच्चे गहरे रास्ते पर कोई भी एक भूल जानलेवा साबित हो सकती है. लेकिन पानी जुटाने के लिए ये जोखिम लोगों को जायज लगता है.

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मुख्यमंत्री के जिले छिंदवाड़ा के विकास मॉडल की खूब चर्चा होती है. वहां पगारा में जलस्तर इतना घट गया है कि अब वहां हैंडपंप से भी गंदा पानी निकल रहा है. पहाड़ी इलाकों के गांव में बोर सूखने की वजह से नलजल योजना कागजी बन गई है. लोग कई किलोमीटर दूर पैदल चलकर पानी भर रहे हैं.

भोपाल से सटे सीहोर में भी पानी के लिए लंबी कतारें लग रही हैं, लेकिन नगर पालिका अध्यक्ष इस दौरान सिंगापुर यात्रा पर हैं. इलाके में पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा मुझे इस बात का दुख है कि जब पानी का संकट है, तो यहां की नगर पालिका अध्यक्ष छुट्टी मनाने चली गईं. पूरी जिम्मेदारी उनकी है.

गांवों के साथ शहरों-कस्बों में भी हालत खराब

  • 378 नगरीय निकायों में से कुछ ही रोज पानी दे पा रहे
  • 120 नगरीय निकाय बुरी तरह प्यासे, दिन में एक बार पानी दिया जा रहा
  • 100 निकायों में एक दिन के अंतराल से पानी मिल रहा
  • 25 निकायों में दो दिन छोड़कर पानी दिया जा रहा
  • 83 जलाशय सूख चुके हैं
  • 22 जिलों में भू-जलस्तर 63.25 फीसदी गिर गया
  • 36 जिलों के 4000 गांव सूखे की कगार पर

राजधानी भोपाल में बड़े तालाब का पानी डेड स्टोरेज लेबल 1652 फीट के नीचे 1650.70 फीट पहुंच चुका है. जलस्तर रोजाना 0.05 फीट घट रहा है. यहां भी कई इलाकों में पानी की जबर्दस्त किल्लत है.

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प्यासे राज्य में कांग्रेस-बीजेपी दोषारोपण से गला तर करने के प्रयास में लगी हैं. राज्य के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि 'भोपाल की बात लें तो यहां महापौर, पार्षद बीजेपी के हैं, समय रहते चेतना था. तीन सोर्स हैं भोपाल में बड़ा तालाब, कोलार और नर्मदा जल. सभी नगरीय निकायों पर बीजेपी का कब्जा है, सिर्फ राजनीति की है... लोगों को पानी मिले इसका इंतज़ाम नहीं.'

वहीं बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी ने कहा कि 'नगरीय निकायों में भले ही महापौर हमारे हों लेकिन सरकार में जिस तरह कुप्रबंधन चल रहा है, तनख्वाह समय पर नहीं मिल रही, ट्रांसफर के नाम पर धमकाया जा रहा है, उससे ये मामले निर्मित होते हैं. हमारी सरकार ने जो काम किए थे उस पर ब्रेक लग गया. केन-बेतवा अनमोल प्रोजेक्ट था. उस पर कोई काम नहीं कर रही है सरकार.'

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यह सब तब जब दिग्विजय सिंह की सरकार ने पानी रोको अभियान, उमा भारती ने पंचज अभियान, उनके बाद आए बाबूलाल गौर ने गोकुल ग्राम अभियान तो शिवराज सरकार ने 13 साल तक जलाभिषेक अभियान का ढिंढोरा पीटा. इससे पानी तो नहीं आया लेकिन प्रचार में पैसा पानी की तरह ज़रूर बहा.

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प्रदेश के लोगों को पानी उपलब्ध करवाने के मामले में मध्यप्रदेश देश में 17वें नंबर पर है. राज्य सरकार अब 'पानी का अधिकार' कानून लागू करने की बात कह रही है, जिसके तहत पूरे साल एक परिवार को जरूरत के मुताबिक पानी की उपलब्धता रहेगी.

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