भारत जैसे विशाल देश में एक ही समय पर देश के अलग अलग छोरों पर मौसम में काफ़ी अंतर हो सकता है. सर्दियों में जब उत्तर भारत ठिठुर रहा हो तो जैसे-जैसे आप दक्षिण भारत की ओर आगे बढ़ेंगे मौसम गर्म होता रहेगा. देश के किसी एक इलाके में हो सकता है सूखा पड़ा हो, और किसी दूसरे छोर पर बहुत बारिश हो रही हो. ऐसे में ये सवाल बहुत ही सहज लगता है कि जहां बारिश ज़्यादा हो रही है, क्या वहां के पानी को सूखाग्रस्त इलाकों में नहीं पहुंचाया जा सकता. उस पानी को यों ही क्यों बेकार बहने दिया जाए. कुछ ऐसी ही सोच से देश में नदियों को जोड़ने की परियोजना का विचार उपजा. आपको बता दें कि पीएम मोदी ने बुधवार को खजुराहो में केन-बेतवा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया है.
केन-बेतवा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट
अब केन-बेतवा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट के जरिए देश में पहली रिवर लिंकिंग परियोजना शुरू होने जा रही है. अस्सी के दशक में इस परियोजना का प्रस्ताव सामने आया, जिस पर अब अमल होने जा रहा है. इसके तहत केन नदी के अतिरिक्त पानी को बेतवा नदी तक ले जाने के लिए एक नहर बनाई जाएगी. केन नदी के किनारे पहले एक बांध बनाया जाएगा, जिसका नाम है दौधन बांध. इस बांध में केन नदी का पानी स्टोर कर उसे नहर के ज़रिए बेतवा नदी तक पहुंचाया जाएगा. केन नदी देश की सबसे साफ़ सुथरी नदियों में से एक है, जो मध्य प्रदेश के कटनी ज़िले से शुरू होती है और विंध्य की पहाड़ियों के पठारी इलाके से होते हुए आगे जाकर उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले के चिल्ला इलाके में यमुना नदी में मिल जाती है.
ये नदी नक्शे पर कहां से गुज़रती है और बेतवा के साथ कैसे लिंक होगी ये भी देख लेते हैं...
केन नदी के अतिरिक्त पानी को मध्य प्रदेश के पन्ना ज़िले के दोधन इलाके में बनने वाले 77 मीटर ऊंचे दौधन बांध के ज़रिए स्टोर किया जाएगा और फिर एक नहर के ज़रिए उसे बेतवा नदी से जोड़ा जाएगा. ये नहर मध्य प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़ ज़िलों से होते हुए यूपी के झांसी और फिर ललितपुर ज़िले के बेतवा नदी में मिल जाएगी. 221 किलोमीटर लंबी इस लिंक नहर का संगम अपर बेतवा बेसिन में बेतवा नदी से होगा. परियोजना के दूसरे चरण में बेतवा नदी के अपर बेसिन में उसकी सहायक 'ओर' नदी पर लोअर ओर बांध बनेगा और उससे भी पहले पानी के नियंत्रण के लिए कोठा बैराज प्रोजेक्ट बनेगा.
जल शक्ति मंत्रालय का कहना
जल शक्ति मंत्रालय के मुताबिक केन-बेतवा परियोजना से सालाना 10.62 लाख हेक्टेयर इलाके को सिंचाई की सुविधा मिलेगी. 62 लाख लोगों को पीने का साफ़ पानी मिलेगा. इसके अलावा 103 मेगावॉट हाइड्रोपावर और 27 मेगावॉट सोलर पावर इससे पैदा करने की योजना है. इस प्रोजेक्ट पर 44,605 करोड़ रुपये लागत आने की संभावना है.
किन इलाकों को होगा फायदा?
अब बड़ा सवाल ये है कि इस नहर से किस इलाके को ये सारा फ़ायदा होगा? तो ये है उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैला बुंदेलखंड इलाका जो अक्सर सूखे की मार झेलता है. इस पूरे इलाके को केन-बेतवा लिंक परियोजना से पानी और सिंचाई की सुविधाएं देने की योजना है. बुंदेलखंड के इस इलाके में उत्तर प्रदेश के चार ज़िलों बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर को फ़ायदा होगा. जबकि मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड रीजन के दस ज़िलों को भी इसका फ़ायदा मिलेगा. ये ज़िले हैं टीकमगढ़, पन्ना, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन.
इस योजना के दो पहलू
जैसा कि हर बड़ी विकास परियोजना के दो पहलू होते हैं. इस योजना के भी हैं. एक पहलू वो होता है जिसमें लाखों नये लोगों को सुविधा मिलती है. जैसे यहां पीने के पानी और सिंचाई की सुविधा. दूसरा पहलू ये होता है कि कई इलाकों को इसके लिए कुर्बानी देनी होती है. केन बेतवा लिंकिंग प्रोजेक्ट से कुल 86.50 वर्ग किलोमीटर पानी में डूब जाएगा, जिसमें कई गांव शामिल हैं. सबसे अधिक नुक़सान बंगाल टाइगर के लिए मशहूर पन्ना टाइगर रिज़र्व को होगा. पन्ना टाइगर रिज़र्व का 57.21 वर्ग किलोमीटर पानी में डूब जाएगा , जो पूरे डूब क्षेत्र के 65% से ज़्यादा है. इसके अलावा पन्ना टाइगर रिज़र्व के क़रीब 105.23 वर्ग किलोमीटर इलाके को अप्रत्यक्ष नुक़सान होगा, जैसे एक इलाका डूबने से नदी के ओर छोर पर जानवरों के लिए कनेक्टिविटी ख़त्म हो जाएगी. बाघ समेत कई अन्य दुर्लभ जानवरों का ये घर अलग-अलग हिस्सों में बंट जाएगा. केन-बेतवा नदियों को जोड़ने के प्रोजेक्ट के लिए अक्टूबर 2023 में वन विभाग ने अपनी मंज़ूरी दे दी थी.
परियोजना से हो सकता है पन्ना टाइगर रिजर्व को नुकसान
लेकिन इस परियोजना से पन्ना टाइगर रिज़र्व की बायोडाइवर्सिटी को होने वाले नुक़सान की चिंताएं बनी हुई हैं. पन्ना टाइगर रिज़र्व देश में बंगाल टाइगर की जनसंख्या के लिहाज़ से काफ़ी अहम है और यूनेस्को ने इसे दुनिया के बायोस्फ़ेयर रिज़र्व के नेटवर्क में शामिल किया हुआ है. आप हैरान होंगे ये सुनकर कि अंधाधुंध शिकार के कारण 2009 में पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघ पूरी तरह से ख़त्म हो गए थे. तब देश में इसे लेकर काफ़ी चिंता जताई गई थी, लेकिन फिर कान्हा टाइगर रिज़र्व से यहां कुछ बाघों को लाया गया और एक कामयाब reintroduction program शुरू हुआ. 2009 में जहां बाघ यहां ख़त्म हो चुके थे तो वहीं अब उनकी तादाद 100 को छूने जा रही है.
बांध से डूब सकता है छतरपुर का बड़ा रिहायशी इलाका
बांध से छतरपुर का बड़ा रिहायशी इलाका भी डूब क्षेत्र में आ जाएगा, जिसमें कई गांव हैं. डूब क्षेत्र में आने वाले स्थानीय लोगों को इस बात की खुशी है कि बांध से इलाके का विकास होगा, लेकिन ये चिंता भी कि इससे उन्हें विस्थापित होना होगा. उनके पुश्तैनी घर पानी में डूब जाएंगे. हर बार की तरह यहां भी सवाल वही उठता है कि क्या मुआवज़ा भले ही कितना अधिक हो, किसी के अपनी ज़मीन से उजड़ने के दर्द की भरपाई कर सकता है? हर विकास परियोजना के तमाम सुखद पहलुओं के बीच ऐसे भी कुछ दुखद पहलू होते हैं.
नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान का हिस्सा है केन-बेतवा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट
केन-बेतवा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट उस National Perspective Plan के तहत बना रहा है, जिसके तहत देश में ऐसे कुल तीस रिवर इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट बनाने का प्रस्ताव है. केन-बेतवा पहला रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट है. कुल प्रस्तावित तीस रिवर इंटर लिंकिंग प्रोजेक्ट में से 14 प्रोजेक्ट हिमालयी भाग से जुड़े हुए हैं. इन परियोजनाओं के तहत बनने वाली नहरें हिमालय से आने वाली नदियों को जोड़ती हैं या उनमें मिल जाती हैं. 16 रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट भारत के प्रायद्वीपीय इलाकों से जुड़े हुए हैं. ये लिंक नहरें प्रायद्वीप की तमाम नदियों को आपस में जोड़ने का काम करेंगी. एक इलाके के अतिरिक्त पानी को दूसरे इलाके से जोड़ेंगी. वैसे सभी 30 रिवर लिंक प्रोजेक्ट को पूरा करना एक भारी भरकम काम है, जिसमें सालों लगेंगे, लेकिन अगर सभी 30 रिवर लिंक प्रोजेक्ट बन गए तो अनुमान लगाया गया है कि हर साल 174 अरब घन मीटर पानी को 15 हज़ार किलोमीटर लंबी नहरों और 3000 जलाशयों के ज़रिए एक इलाके से दूसरे इलाके में पहुंचा दिया जाएगा. इससे देश में 3 करोड़ हेक्टेयर इलाके में सिंचाई सुविधा बढ़ने का अनुमान है. इसके अलावा हाइड्रोपावर परियोजनाओं के ज़रिए 34 हज़ार मेगावॉट बिजली पैदा होने की उम्मीद है. अब ये परियोजनाएं कब पूरी होंगी? पूरी हो पाएंगी या नहीं ये भी कहना मुश्किल है, लेकिन पहली केन-बेतवा लिंक परियोजना पर तो काम शुरू हो ही गया है.
बीस सदी पुराना है भारत में नदियों को जोड़ने का प्रोजेक्ट
भारत में नदियों को जोड़ने का विचार नया नहीं है. ये विचार बीसवीं सदी के पूर्वार्ध से चला आ रहा है. 1919 में एक ब्रिटिश जनरल और सिंचाई इंजीनियर सर Arthur Cotton ने सिंचाई और नदियों के रास्ते आने जाने की सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए नदियों को जोड़ने का सुझाव दिया. मक़सद था कि देश के एक इलाके में बाढ़ से निपटने के लिए उसके अतिरिक्त पानी को उन इलाकों तक पहुंचाना जहां सूखा पड़ा हो. सर आर्थर कॉटन मद्रास प्रेसीडेंसी के चीफ़ इंजीनियर थे. 1960 में इस पर आगे काम हुआ, जब तत्कालीन ऊर्जा और सिंचाई मंत्री केएल राव ने नेशनल वॉटर ग्रिड के तहत गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने का सुझाव दिया. 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नेशनल वॉटर डेवलपमेंट एजेंसी का गठन किया, जिसके तहत नदियों को जोड़ने के लिए National Perspective Plan तैयार किया गया.
खूबसूरत लगती है नदियों को जोड़ने की परियोजना
नदियों को जोड़ने की परियोजना काफ़ी ख़ूबसूरत लगती है. इसके कई फ़ायदे जो हैं, लेकिन साथ ही कई नुक़सान भी हैं. हम सब जानते हैं कि करोड़ों साल में धरती की कुदरती ढालों पर पानी ने अपने नैसर्गिक रास्ते बनाए, जिन्हें हम झरने, जल प्रपात या नदी कहते हैं. पानी उन जगहों से बहा, जहां उसे सबसे कम प्रतिरोध मिला और इस तरह प्रकृति ने एक संतुलन भी तैयार किया, लेकिन नदियों को जोड़ने की परियोजना कहीं उस संतुलन से छेड़छाड़ तो नहीं.
नदियों को जोड़ने के फ़ायदे
- सबसे बड़ा फ़ायदा ये बताया जाता है कि इससे पानी का न्यायसंगत बंटवारा होगा. लंबे समय तक सूखे से जूझने वाले इलाकों में उन इलाकों से पानी पहुंचाया जाएगा, जहां पानी की अधिकता हो. बरसात में समुद्र में बह जाने वाले पानी को नहरों के ज़रिए सूखाग्रस्त इलाकों तक पहुंचाया जा सकेगा.
- सूखाग्रस्त इलाकों में पीने के पानी की किल्लत दूर होगी.
- ऐसे इलाकों में सिंचाई की सुविधा बढ़ेगी. नए इलाके सिंचाई के दायरे में आएंगे.
- सिंचाई सुविधा मिलने से सूखाग्रस्त इलाकों में समृद्धि बढ़ेगी.
- बिजली के लिए नई पनबिजली परियोजनाएं बनेंगी.
- मत्स्य पालन और जल से जुड़ी कृषि को बढ़ावा मिलेगा.
- रोज़गार के नए मौके पैदा होंगे.
- सामाजिक-आर्थिक विकास होगा.
नदियों को जोड़ने पर चिंता
- सबसे पहली चिंता तो पर्यावरण को लेकर है. कई रिसर्च बताती हैं कि नदियों को जोड़ने से उनकी पारिस्थितिकी यानी Ecology पर असर पड़ेगा. Ecological imbalance बढ़ेगा.
- नदियों में रहने वाली मछलियों और अन्य जलीय जीव जंतुओं की प्रजातियों को नुक़सान हो सकता है. एक नदी में रहने वाली मछली की प्रजाति अगर दूर दूसरी नदी में जाती है तो वहां की मछलियों की प्रजाति पर संकट पैदा कर सकती है.
- मछलियों और अन्य जलीय जंतुओं का प्रजनन प्रभावित हो सकता है. कुछ दुर्लभ प्रजातियां ख़तरे में पड़ सकती हैं.
- नई नहरों से एक बड़ा वन क्षेत्र और उसपर आश्रित जंगली जानवर प्रभावित हो सकते हैं. नदियां जंगलों के कुदरती कोरिडोर काट सकती हैं.
- यही नहीं मॉनसून का पैटर्न भी प्रभावित हो सकता है. IIT Bombay और Indian Institute of Tropical Meteorology, Pune के एक शोध के मुताबिक एक इलाके का पानी दूसरे इलाके में पहुंचने से हवा के पैटर्न और उसकी नमी में बदलाव आ सकता है, जिसका असर बारिश से पानी की उपलब्धता और मौसम के पैटर्न पर दिख सकता है. मिट्टी की नमी पर असर पड़ सकता है.
कुल मिलाकर नदियों को जोड़ने के जितने फ़ायदे हैं, उतने ही नुक़सान भी बताए जाते हैं. ऐसे में ज़रूरी है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन को बनाए रखते हुए ऐसी परियोजनाओं पर काम आगे बढ़ाया जाए. ताकि अधिक से अधिक लोगों को फ़ायदा हो सके.
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