- मुंबई के एस्प्लेनेड कोर्ट में वरिष्ठ वकील मालती पवार की कोर्ट रूम में हार्ट अटैक से मौत हो गई.
 - मालती पवार के पति ने कहा कि उन्हें वक्त रहते मदद मिल जाती तो शायद मेरी पत्नी आज जिंदा होती.
 - पवार को अचानक सीने में दर्द और बेचैनी महसूस हुई, जिसके बाद वह बेहोश होकर गिर गई थीं.
 
महाराष्ट्र से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है. मुंबई के ए़सप्लेनेड कोर्ट में शुक्रवार को 59 साल की सीनियर वकील मालती पवार की कोर्ट रूम के अंदर ही हार्ट अटैक से मौत हो गई. अब इस पूरे घटनाक्रम को लेकर पवार के पति ने कहा है कि उन्हें समय पर कोई मेडिकल मदद नहीं मिल पाई. यदि वक्त रहते मदद मिलती तो शायद आज मेरी पत्नी जिंदा होगी. वहीं इस मामले के सामने आने के बाद वकील सुनील पांडे ने एस्प्लेनेड कोर्ट के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को पत्र लिखा है और सभी अदालतों में फर्स्ट एड, मेडिकल टीम और CPR ट्रेनिंग की व्यवस्था करने की मांग की है.
वकील मालती पवार की मौत के बाद उनके पति का दावा है, “मेरी पत्नी को वहां किसी ने सीपीआर तक नहीं दिया. कोई उन्हें पास के जीटी अस्पताल ले जाने की कोशिश नहीं कर रहा था, जो कोर्ट से कुछ ही कदम की दूरी पर है. बल्कि कुछ लोग मोबाइल निकालकर वीडियो बना रहे थे. अगर वक्त रहते मदद मिल जाती तो शायद मेरी पत्नी जिंदा होती.”
पवार को सीने में दर्द और बेचैनी महसूस हुई
मालती पवार मुंबई की फैमिली कोर्ट, बॉम्बे हाई कोर्ट और अन्य स्थानीय अदालतों में प्रैक्टिस करती थीं. बताया जा रहा है कि वो शुक्रवार दोपहर कोर्ट के बार रूम में बैठी थीं, जब उन्हें अचानक सीने में दर्द और बेचैनी महसूस हुई. उन्होंने अपने पति रमेश पवार को फोन कर बताया कि वो अच्छा महसूस नहीं कर रहीं और थोड़ा आराम करेंगी, लेकिन कुछ ही देर में वो बेहोश होकर गिर पड़ीं.
घटना के बाद मालती पवार को कामा अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
कोर्ट परिसर की सुविधाओं पर उठ रहे सवाल
अब इस दर्दनाक घटना के बाद कोर्ट परिसर की सुविधाओं पर बड़ा सवाल उठ रहा है. वकील सुनील पांडे ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एस्प्लेनेड कोर्ट के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने सभी अदालतों में फर्स्ट एड, मेडिकल टीम और CPR ट्रेनिंग की व्यवस्था करने की मांग की है.
पांडे ने अपने पत्र में लिखा, "हर दिन सैकड़ों वकील कोर्ट में मौजूद रहते हैं, जिनमें कई वरिष्ठ और बुजुर्ग वकील भी होते हैं. लेकिन किसी भी अदालत में न तो मेडिकल सुविधा है, न डॉक्टर, न फर्स्ट एड. अब वक्त आ गया है कि हर कोर्ट में बेसिक इमरजेंसी सिस्टम बनाया जाए.”
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि कोर्ट परिसरों में एम्बुलेंस, CPR ट्रेनिंग और ऑटोमैटिक डिफिब्रिलेटर (AED) जैसी सुविधाएं तुरंत शुरू की जाएं, ताकि भविष्य में किसी की जान यूं न जाए.
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