
Vice president voting process : भारत के लोकतंत्र में चुनावी प्रक्रियाओं की अपनी ही दिलचस्प बातें होती हैं. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. आपने अक्सर सुना होगा कि इन चुनावों में गुलाबी और हरे रंग के बैलेट पेपर का इस्तेमाल होता है. लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर वोट डालने के लिए दो अलग-अलग रंगों के बैलेट पेपर क्यों रखे जाते हैं? इसका कारण न सिर्फ रंगों की पहचान है बल्कि इसके पीछे छिपा है वोटों की वैल्यू का पूरा गणित.
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राष्ट्रपति चुनाव में रंगों का फर्क क्यों?
राष्ट्रपति चुनाव में सांसदों और विधायकों दोनों को वोट डालना होता है. लेकिन दोनों के वोट की वैल्यू अलग होती है. सांसदों का वोट बराबर गिना जाता है, जबकि विधायकों का वोट उनके राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करता है. इसी वजह से पहचान आसान बनाने के लिए सांसदों को हरे रंग का बैलेट पेपर और विधायकों को गुलाबी बैलेट पेपर दिया जाता है.
अगर रंगों का ये फर्क न हो, तो वोट गिनने वालों के लिए यह समझना मुश्किल हो जाएगा कि कौन-सा वोट सांसद का है और कौन-सा विधायक का. इसलिए बैलेट पेपर का अलग-अलग रंग होना बेहद जरूरी है.
उपराष्ट्रपति चुनाव में क्यों मिलता है गुलाबी बैलेट पेपर?
उपराष्ट्रपति चुनाव में केवल सांसद ही वोट डालते हैं. इसमें विधायक हिस्सा नहीं लेते. ऐसे में सभी वोटों के लिए एक ही रंग का बैलेट पेपर इस्तेमाल किया जाता है और वो रंग है गुलाबी. सांसद अपने वोट उसी पर डालते हैं.
वोटिंग की प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग पूरी तरह सीक्रेट होती है. सांसद गुलाबी बैलेट पेपर पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को प्राथमिकता नंबर देकर वोट डालते हैं. ये वोट संसद भवन में डाले जाते हैं. अगर कोई सांसद अपने राज्य में वोट डालना चाहता है तो उसे कम से कम 10 दिन पहले चुनाव आयोग को सूचना देनी होती है. सभी वोटों की गिनती दिल्ली में होती है. खास बात यह है कि बैलेट बॉक्स को फ्लाइट से लाया जाता है और उन्हें पैसेंजर की तरह बुक किया जाता है, न कि सामान्य बैगेज में रखा जाता. इससे सुरक्षा बनी रहती है.
खास पेन का इस्तेमाल
उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग के लिए साधारण पेन का इस्तेमाल नहीं होता. इसके लिए एक स्पेशल पेन दिया जाता है, जिसमें बैंगनी रंग की स्याही होती है. ये पेन कर्नाटक की कंपनी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड बनाती है. वोटर इसी पेन से अपने पसंदीदा उम्मीदवार के सामने नंबर लिखते हैं. इस स्याही को मिटाना लगभग नामुमकिन होता है, जिससे वोट की गोपनीयता बनी रहती है और गिनती के दौरान भी वोटर की पहचान सामने नहीं आती.
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