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राष्ट्रपति चुनाव से कितना अलग होता है उपराष्ट्रपति चुनाव? ये है पूरा प्रोसेस

भारत में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया अलग-अलग होती है. जानिए इलेक्टोरल कॉलेज, वोटिंग सिस्टम, वोट की वैल्यू और दोनों पदों की जिम्मेदारियों में क्या फर्क है.

राष्ट्रपति चुनाव से कितना अलग होता है उपराष्ट्रपति चुनाव? ये है पूरा प्रोसेस
उपराष्ट्रपति चुनाव के रिजल्ट को भी सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है.

President and vice president election process: भारत में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति देश के दो बड़े कॉन्स्टिट्यूशनल पोस्ट हैं. इनके चुनाव का तरीका खास है, लेकिन दोनों में कुछ जरूरी फर्क भी हैं. अगर आप सोच रहे हैं कि ये दोनों चुनाव कैसे अलग हैं और इनका प्रोसेस क्या है, तो चलिए इसे बिल्कुल आसान भाषा में समझते हैं. 

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राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है?

राष्ट्रपति का चुनाव एक खास ग्रुप से होता है, जिसे इलेक्टोरल कॉलेज कहते हैं. इसमें संसद के दोनों हाउस (लोकसभा और राज्यसभा) के चुने हुए मेंबर और राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के चुने हुए मेंबर शामिल होते हैं. जो मेंबर नॉमिनेटेड हैं, जैसे राज्यसभा या लोकसभा के मनोनीत मेंबर या विधान परिषद के मेंबर, वे वोट नहीं डाल सकते.

वोटिंग का तरीका:

राष्ट्रपति का चुनाव एक खास सिस्टम से होता है, जिसमें वोटर अपने मतपत्र पर कैंडिडेट्स को फर्स्ट, सेकंड, थर्ड जैसे नंबर देकर अपनी पसंद बताते हैं. ये वोटिंग सीक्रेट होती है. संसद के मेंबर हरे रंग के मतपत्र यूज करते हैं, जबकि विधानसभा के मेंबर गुलाबी मतपत्र यूज करते हैं.

वोट की वैल्यू

हर मेंबर का वोट एकसमान नहीं होता. सांसदों के वोट की वैल्यू एक जैसी होती है, लेकिन विधायकों के वोट की वैल्यू उनके राज्य की पॉपुलेशन पर डिपेंड करती है. मिसाल के तौर पर, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के विधायक का वोट छोटे राज्य के विधायक से ज्यादा वैल्यू रखता है.

जीत का नियम

कैंडिडेट को जीतने के लिए टोटल सही वोट्स का 50% से ज्यादा चाहिए. अगर पहली बार गिनती में किसी को इतने वोट नहीं मिलते, तो सबसे कम वोट वाले कैंडिडेट को हटा दिया जाता है और उनके वोट की अगली पसंद वाले कैंडिडेट को ट्रांसफर कर दिया जाता है. ये प्रोसेस तब तक चलता है, जब तक कोई कैंडिडेट जरूरी वोट हासिल नहीं कर लेता.

अगर कोई कैंडिडेट या 20 से ज्यादा वोटर को लगता है कि चुनाव में कुछ गलत हुआ, तो वे सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दाखिल कर सकते हैं. ये पिटीशन रिजल्ट आने के 30 दिन के अंदर फाइल करनी होती है.

उपराष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है?

उपराष्ट्रपति चुनाव इलेक्टोरल कॉलेज राष्ट्रपति के मुकाबले छोटा है. इसमें सिर्फ संसद के दोनों हाउस (लोकसभा और राज्यसभा) के चुने हुए और नॉमिनेटेड मेंबर वोट डालते हैं. राज्यों की विधानसभाएं इसमें हिस्सा नहीं लेतीं.

वोटिंग का तरीका

उपराष्ट्रपति का चुनाव भी उसी सिस्टम से होता है, जिसमें वोटर सीक्रेट वोटिंग में अपने फेवरेट कैंडिडेट को फर्स्ट, सेकंड, थर्ड जैसे नंबर देते हैं. इसमें भी खास पेन का यूज होता है.

वोट की वैल्यू

इसमें सभी सांसदों का वोट बराबर होता है, क्योंकि विधायक शामिल नहीं हैं. यानी कोई वेटेज सिस्टम नहीं है, जैसा राष्ट्रपति चुनाव में होता है.

जीतकानियम

जीत के लिए कैंडिडेट को टोटल सही वोट्स का 50% से ज्यादा चाहिए. अगर जरूरी वोट न मिलें, तो कम वोट वाले कैंडिडेट को हटाकर उनके वोट ट्रांसफर किए जाते हैं, जैसा राष्ट्रपति चुनाव में.

उपराष्ट्रपति चुनाव के रिजल्ट को भी सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है, लेकिन प्रोसेस वही है जो राष्ट्रपति चुनाव के लिए है.

दोनों की प्रोसेस जानने के बाद कहा सकता है कि राष्ट्रपति के लिए इलेक्टोरल कॉलेज बड़ा होता है, जिसमें संसद के दोनों हाउस (लोकसभा और राज्यसभा) के चुने हुए मेंबर और राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के चुने हुए मेंबर शामिल होते हैं. वहीं, उपराष्ट्रपति के चुनाव में सिर्फ संसद के मेंबर वोट डालते हैं, जिसमें नॉमिनेटेड मेंबर भी शामिल हैं.

 इसके अलावा राष्ट्रपति चुनाव में विधायकों के वोट की वैल्यू उनके राज्य की पॉपुलेशन के आधार पर अलग-अलग होती है, जबकि उपराष्ट्रपति चुनाव में सभी सांसदों का वोट बराबर होता है. 

इन्हें हटाने का तरीका भी अलग है. राष्ट्रपति को सिर्फ कॉन्स्टिट्यूशन तोड़ने के आधार पर इम्पीचमेंट से हटाया जा सकता है, जबकि उपराष्ट्रपति को संसद के दोनों हाउस में स्पेशल मेजॉरिटी से हटाया जा सकता है. जिम्मेदारी की बात करें, तो राष्ट्रपति देश का फर्स्ट सिटिजन और आर्म्ड फोर्सेज का सुप्रीम कमांडर होता है, जबकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का चेयरपर्सन होता है और राष्ट्रपति की गैरमौजूदगी में उनके कुछ काम संभाल सकता है.

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