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ऑफिस में झपकी- जापान में मेहनत का सम्मान, भारत में बॉस की डांट का इनाम

जापान में ऑफिस के दौरान झपकी लेना डेडिकेशन माना जाता है, जबकि भारत में इसे आलस समझा जाता है. जानिए पावर नैप के फायदे और क्यों दोनों देशों की वर्क कल्चर में इतना अंतर है.

ऑफिस में झपकी- जापान में मेहनत का सम्मान, भारत में बॉस की डांट का इनाम
नई दिल्ली:

ऑफिस में घंटों काम करते-करते थक जाना आम बात है. जब दिमाग और शरीर दोनों थक जाते हैं तो थोड़ी देर आंखें बंद कर आराम करने का मन करता है. रिसर्च भी कहती है कि पावर नैप से इंसान फिर से एनर्जेटिक हो जाता है और उसका फोकस बढ़ता है. लेकिन भारत में अगर कोई कर्मचारी काम के दौरान झपकी ले ले, तो इसे आलस और गैर-जिम्मेदारी माना जाता है. वहीं दुनिया के कुछ देश ऐसे भी हैं जहां झपकी लेना दफ्तर की संस्कृति का हिस्सा है और इसे सम्मान की नजर से देखा जाता है.

जापान में क्यों माना जाता है झपकी लेना डेडिकेशन

एबीपी की रिपोर्ट के मुताबिक, जापान (Japan Work Culture) को दुनिया के सबसे मेहनती देशों में गिना जाता है. वहां कर्मचारी 12 से 14 घंटे तक लगातार काम करते हैं. इतनी मेहनत के बाद मीटिंग या ऑफिस डेस्क पर थोड़ी देर आंख लग जाना आम बात है. दिलचस्प बात ये है कि वहां इसे आलस नहीं बल्कि समर्पण यानी डेडीकेशन का साइन माना जाता है. जापानी कंपनियां मानती हैं कि कर्मचारी इतना डेडिकेटेड है कि घर जाकर आराम करने की बजाय वहीं थोड़ी देर सोकर फिर से काम करने के लिए तैयार है. ऑफिस की कुर्सी पर झुककर सो जाना, ट्रेन में सफर के दौरान आंख लग जाना या मीटिंग में हल्की झपकी लेना, ये सब जापान की प्रोफेशनल लाइफ का हिस्सा माना जाता है.

भारत की अलग तस्वीर

इसके उलट भारत में हालात बिल्कुल अलग हैं. यहां अगर कोई एंप्लॉई काम के दौरान आंख बंद करता दिख जाए, तो उसे तुरंत लापरवाह या सुस्त मान लिया जाता है. बॉस की डांट अलग से झेलनी पड़ती है. भारतीय दफ्तरों में काम पूरा करना और सतर्क बने रहना ज्यादा अहम माना जाता है. हालांकि, बदलते समय में कुछ आईटी कंपनियों और स्टार्टअप्स ने पावर नैप रूम और रिलैक्सेशन जोन जैसी सुविधाएं देना शुरू कर दी हैं, लेकिन ये अभी बहुत सीमित दायरे तक ही है.

इतना फर्क क्यों?

इस अंतर की वजह दोनों देशों की वर्क कल्चर है. जापान में काम के लंबे घंटे और अनुशासन समाज का हिस्सा हैं. वहां ये समझा जाता है कि थका कर्मचारी अगर थोड़ी देर सो लेगा, तो उसकी प्रोडक्टिविटी और फोकस दोनों बढ़ जाएंगे. वहीं भारत में आमतौर पर 8-9 घंटे के कामकाजी समय में सोना अनुशासनहीनता और नॉन सीरियसनेस का साइन माना जाता है.

क्या भारत को बदलनी चाहिए सोच?

भारत आज तेजी से कॉर्पोरेट और स्टार्टअप कल्चर की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में कर्मचारियों की मेंटल हेल्थ और वर्क एफिशिएंसी पर ध्यान देना बेहद जरूरी हो गया है. कई शोध बताते हैं कि 20 मिनट की पावर नैप लेने से दिमाग ज्यादा फोकस्ड और एक्टिव हो जाता है. शायद यही वजह है कि धीरे-धीरे भारत की कुछ कंपनियां भी जापान से इंस्पिरेशन लेकर पावर नैप पॉलिसी अपनाने लगी हैं.

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