
हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day 2022) मनाया जाता है. कहते हैं जब कोई बीमार हो या किसी पीड़ा से ग्रस्त हो तो पहले भगवान का नाम मुंह से निकलता है, फिर डॉक्टर में ही उसे भगवान दिखता है. अगर आपकी मुश्किल के समय एक अच्छा डॉक्टर मिल जाए और प्यार और मानवता की भावना से आपकी देखभाल करे, तो उससे ज्यादा कुछ भी अच्छा नहीं. डॉक्टरों को धरती पर भगवान का रूप कहते तो आपने सुना होगा, लेकिन एक ऐसे डॉक्टर भी हैं; जो अपने मरीजों को भगवान मानते हैं. डॉक्टर नील माधव रथ कटक के SCB मेडिकल कॉलेज से रिटायर हुए हैं. उम्र 67 साल है. रोज 60-70 मानसिक रोगियों को फ्री में देखते हैं.
एनडीटीवी से बातचीत में डॉक्टर नील माधव रथ ने बताया कि 14 साल पहले मानसिक रोगियों पर एनडीटीवी ने एक रिपोर्ट की थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में इस रिपोर्ट की चर्चा हुई थी. इस रिपोर्ट के वजह से आश्रय संस्था को राष्ट्रपति अवॉर्ड मिला था. आश्रय संस्था में मानसिक रोगियों का मुफ्त में इलाज होता है. इस संस्था से डॉक्टर रथ भी जुड़े हैं. इस संस्था के चार ब्रांच हैं.
डॉक्टर नील माधव रथ हफ्ते में दो दिन घर पर मरीज नहीं देखते हैं. शनिवार-रविवार को वह अलग-अलग एनजीओ जाकर मरीजों का इलाज करते हैं. हालांकि, अगर कोई मरीज बिना जानकारी के उनके पास इलाज के आ जाता है, तो डॉक्टर नील उसे भगवान का रूप मानते हुए लौटाते नहीं हैं. उनका इलाज जरूर करते हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मरीज उन के लिए कितने मायने रखते हैं.
डॉक्टर आखिर मुफ्त में मरीजों का इलाज क्यों करते हैं? इस सवाल के जवाब में डॉक्टर नील माधव रथ बताते हैं, 'मैं डॉक्टर सिर्फ पैसा कमाने के लिए नहीं बना हूं. मरीजों के लिए मैं कुछ करना चाहता हूं. उनकी मदद करना चाहता हूं.' डॉक्टर रथ ने एक वाकया सुनाया. उन्होंने कहा कि जब वो पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें पीलिया (जॉन्डिस) हुआ. पीलिए इतना बढ़ गया कि उन्हें आईसीयू में एडमिट होना पड़ा. कुछ दिन के बाद वह कोमा में चले गए. करीब एक हफ्ते के बाद कोमा से वापस आये, तो नर्स से पूछा कि आईसीयू के दूसरे मरीज कहां गए? नर्स ने जवाब दिया कि सभी मरीजों की मौत हो चुकी है, सिर्फ वही बचे हैं. तब से डॉक्टर रथ ने सोचा कि अगर भगवान ने ज़िंदा रखा है, तो किसी मकसद के लिए रखा है. तब से उन्होंने तय किया कि डॉक्टर बनने के बाद वह मरीजों की सेवा करेंगे.
डॉक्टर रथ ने जब कटक का SCB मेडिकल कॉलेज ज्वॉइन किया, तब एक महिला मानसिक रोगी पर उनकी नज़र पढ़ी. यह रोगी SCB मेडिकल कॉलेज के बाहर पड़ी थी. उसके कपड़े फटे हुए थे. उसका कथित तौर पर रेप हुआ था. महिला का यूट्रस बाहर आ गया था. वह बात करने की स्थिति में नहीं थी. वह पूरी तरह मानसिक तनाव में थी. डॉक्टर रथ उस महिला का SCB मेडिकल कॉलेज में इलाज करना चाहते थे, लेकिन बेड खाली नहीं थी. ऐसे में उन्होंने महिला को अपने एक दोस्त के गैरेज में रखा और वहीं पर उसका इलाज किया.
डॉक्टर पूर्ण चंद्र महापात्र से उस महिला की यूट्रस की सर्जरी कराई गई. डॉक्टर रथ ने अपने एक दोस्त से ऐसी महिलाओं के लिए एक एनजीओ शुरू करने की भी गुजारिश की. डॉक्टर रथ के दोस्त ने कटक के चौद्वार में आश्रय संस्था नाम से एक एनजीओ खोला. यह महिला उस एनजीओ की पहली मरीज थी. इलाज और देखभाल के बाद वह महिला पूरी तरह से ठीक हो गई है. अब वह दूसरे मरीजों की सेवा कर रही है.
एनडीटीवी इस दौरान डॉक्टर नील माधव रथ के साथ आश्रय संस्था भी गया. यहां कई मानसिक रोगी इलाज और देखभाल के बाद पूरी तरह से स्वस्थ हो गई हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर अपने घर नहीं लौटना चाहतीं. ठीक हो चुकी कई महिलाओं के घरवाले उन्हें लेने नहीं आ रहे. ऐसे में कोई यहां 15 साल से है, तो कोई 20 साल से. वो यहीं रहकर दूसरों की सेवा करती हैं. हालांकि, आश्रय से निकलने के दौरान डॉक्टर नील छोटे हादसे का शिकार हो गए. झोपड़ी की छत से उनका सिर टकरा गया, जिससे उन्हें चोट लग गई. 9 टांके लगे, लेकिन चोट के बाद भी अगले दिन डॉक्टर नील अपने घर पर मरीजों का इलाज करने लगे.
डॉक्टर रथ से सभी मरीज काफी लगाव रखते हैं. कोई उनके लिए सब्जी ले आता है, तो कोई फूल के पौधे. डॉक्टर रथ भी उन्हें खाली हाथ नहीं लौटाते हैं. किसी मरीज की आर्थिक मदद कर देते हैं, तो किसी के बस का टिकट करवा देते हैं. डॉक्टर कहते हैं, 'मानसिक तनाव किसी भी वजह से हो सकता है. हो सकता है कि आप भी किसी के मानसिक तनाव का कारण हो. इसीलिए एक इंसान की तरह व्यवहार करना बहुत जरूरी है. अगर आप के अंदर इंसानियत मर जाएगी, तो फिर आप इंसान नहीं रह जायेंगे.'
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