
Why Is Important To Normalize Breastfeeding: "मैं अपने बच्चे को दूध पिला रही हूं, मुझे घूरना बंद करो." यह एक सीधी लेकिन जरूरी बात है जो हर उस महिला की आवाज है, जो अपने बच्चे की जरूरत पूरी करते हुए भी समाज की तिरछी निगाहों से जूझती है. राधिका आप्टे, जो अपने दमदार अभिनय के लिए जानी जाती हैं. अब एक और मुद्दे को खुलकर सामने ला रही हैं, भारत में स्तनपान को सामान्य बनाना. राधिका बताती हैं कि जब वह लंदन में थीं, तो ट्रेन हो या कैफे, कहीं भी सहजता से बच्चे को दूध पिला सकती थीं. लेकिन, भारत लौटते ही उन्हें नजरें झेलनी पड़ीं. गर्मी, असहज माहौल और हर जगह घूरती आंखें. एक दोस्त ने उन्हें कवर दिया जिससे वो ढककर स्तनपान करा सकें, लेकिन सवाल उठता है - क्यों? क्या मां बनने का मतलब यह है कि महिला को अपनी जरूरतें छिपानी पड़ें?
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शूटिंग के दौरान कहा
जब वह शूटिंग कर रही थीं, उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया "मैं अब दूध पिलाऊंगी, देखना है तो देखो." यह एक साहसिक कदम था, जो हर महिला को यह हौसला देता है कि मां होना कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत है.
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हर महिला की समस्या
राधिका का अनुभव उन लाखों महिलाओं से मेल खाता है, जिन्हें मां बनने के बाद काम और जिंदगी के बीच संतुलन बनाना मुश्किल लगता है. उन्होंने बताया कि कैसे उनके पति हर कदम पर उनके साथ रहे. खाना बनाना, सफाई, बच्चे की देखभाल सब उन्होंने किया. यह वही ‘साझेदारी' है जिसकी बात अक्सर होती है लेकिन अमल में कम नजर आती है.
पति का मिला साथ
उन्होंने ये भी शेयर किया कि मां बनने के बाद उन्हें कई बार ऐसा लगा कि उन्होंने अपनी पुरानी जिंदगी खो दी है. लेकिन पति के साथ मिलकर उन्होंने तय किया, पहले हम, फिर बच्चा. अगर मां खुद खुश नहीं है, तो वह अपने बच्चे के लिए भी खुशी नहीं ला सकती. भारत में मां बनने को अब भी त्याग और बलिदान से जोड़ा जाता है. लेकिन, राधिका कहती हैं कि ये जरूरी नहीं कि मां हर वक्त बस दूसरों के लिए जिए. कभी-कभी एक घंटे की नींद या दोस्तों से मुलाकात भी उसकी जरूरत हो सकती है.
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यहां पढ़ें उनकी पोस्ट:
ट्रोल हुईं राधिका
जब उन्होंने BAFTA अवॉर्ड्स के दौरान दूध निकालते हुए तस्वीर शेयर की, तो ट्रोल हो गईं. पर उनका जवाब साफ था - "क्या तुम्हें लगता है कि मां कुछ भी बिना सोचे करेगी?" मां बनने का मतलब यह नहीं कि महिला सोचने या जीने की आजादी खो दे. स्तनपान को छिपाने की चीज नहीं माना जाना चाहिए. यह जीवन देने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है. जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, मांओं को असहजता, अपराधबोध और तनाव झेलना पड़ेगा.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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