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क्या है Zero FIR, नए कानूनों के तहत दर्ज करवाने का नियम और इसके फायदे भी जानें

नए कानून लागू होने के बाद अब कोई भी पीड़ित क्राइम होने की स्थिति में किसी भी थाने में जीरो एफआईआर (Zero FIR) दर्ज करा सकेगा. 15 दिनों के भीतर इसे  मूल जूरिडिक्शन, यानी जहां क्राइम हुआ है, उस एरिया में भेजना होगा.

क्या है Zero FIR, नए कानूनों के तहत दर्ज करवाने का नियम और इसके फायदे भी जानें
जीरो एफआईआर क्या होती है. (प्रतीकात्मक फोटो)
नई दिल्ली:

FIR के बारे में हम सभी ने सुना है और जानते भी है. किसी भी क्राइम की स्थिति में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाई जाती है. लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने या तो जीरो एफआईआर (Zero FIR)  के बारे में नहीं सुना है, या सुना भी है तो वह जानते ही नहीं कि आखिर जीरो एफआईआर होती क्या है. बता दें कि अपराध होने की स्थिति में किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई जाने वाली शिकायत जीरो एफआईआर कही जाती है. कई बार क्राइम की स्थिति में एक आम इंसान पुलिस स्टेशन के चक्कर काटते, काटते परेशान हो जाता है, क्यों कि उसे कानून की सही जानकारी नहीं होती है. नए कानून के मुताबिक, किसी भी पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज करवाई जा सकती है. चाहे वह पुलिस स्टेशन का ज्यूरिडिक्शन हो या ना हो.

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देशभर में 1 जुलाई, यानी कि आज से तीन नए कानून लागू हो गए हैं, इसके साथ ही IPC, CRPC और IEA की धाराएं गुजरे जमाने की बात हो गई हैं. इनकी जगह अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने ले ली है. नये कानूनों से एक आधुनिक न्याय प्रणाली स्थापित हो गई है, जिसमें zero FIR पुलिस में ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराना, SMS के जरिये समन भेजने जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और सभी जघन्य अपराधों के वारदात स्थल की अनिवार्य वीडियोग्राफी जैसे प्रावधान शामिल हैं. पहले घटनास्थल वाले क्षेत्र में भी जीरो एफआईआर दर्ज करवाई जाती थी, लेकिन अब कहीं भी FIR दर्ज करवाई जा सकेगी.

जीरो FIR क्या है, कौन दर्ज करवा सकता है

जीरो FIR नॉर्मल एफआईआर की तरह ही होती है. बस इसमें सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके बीच अधिकार क्षेत्र की कोई भी अड़चन पैदा नहीं होती है. नॉर्मली पुलिस तभी एफआईआर दर्ज करती है, जब वह केस उसके अधिकार क्षेत्र वाली जगह पर हुआ है. लेकिन जीरो FIR में पीड़ित या फिर उसका जानकार कोई भी किसी भी थाने में FIR दर्ज करा सकता है. पुलिस इसी आधार पर जांच शुरू कर देती है और बाद में संबंधित क्षेत्र के थाने में इसे ट्रांसफर कर दिया जाता है. 

नए कानून लागू होने के बाद अब कोई भी पीड़ित क्राइम होने की स्थिति में किसी भी थाने में जीरो एफआईआर दर्ज करा सकेगा. 15 दिनों के भीतर इसे  मूल जूरिडिक्शन, यानी जहां क्राइम हुआ है, उस एरिया में भेजना होगा. वहीं विक्टिम को FIR की कॉपी भी मिलेगी. अब देश के हर पुलिस स्टेशन में क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम एप्लिकेशन (CCTNS) के तहत सभी केस दर्ज किए जाएंगे. 

ऑनलाइन FIR दर्ज करवाने की सुविधा

दिल्ली पुलिस ने अपनी वेबसाइट पर ऑनलाइन FIR दर्ज करवाने की सुविधा दी है. नए कानूनों के तहत अब कहीं भी बैठकर इलेक्ट्रॉनिक तरीके से एफआईआर दर्ज करवाई जा सकेगी. खुद थाने में जाना जरूरी नहीं होगा. ई-एफआईआर को जांच अधिकारी को शुरुआती वेरिफिकेशन के लिए भेजा जाएगा. IO तय करेगा कि  मामला प्रथम दृष्यता बनता है या नहीं, ये IO तय करेगा. 3 दिन में ई-मेल पर जानकारी भेज FIR दर्ज करनी होगी.
 

जीरो FIR के क्या फायदे हैं?

  • बिना किसी देरी के पुलिस को घटना की जानकारी मिल जाती है.
  • अहम सबूतों को नष्ट किए जाने से समय रहते बचाया जा सकता है. 
  • मामला अधिकार क्षेत्र का न भी हो तो भी पुलिस को तुरंत एक्शन लेना पड़ता है. 
  • इंसाफ के लिए पीड़ित को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता है. जहां है, वहीं पर जीरो FIR दर्ज करवा सकता है.

जीरो FIR क्यों कही जाती है?

इसे जीरो एफआईआर इसलिए कहा जाता है, क्यों कि इसमें कोई क्राइम नहीं लिखा होता है. कई बार जीरो एफआईआर लिखवाने में काफी दिक्कत होती है, क्यों कि पुलिस बहुत ही आनाकानी करती है. दरअसल मारपीट जैसे केसों में एक दूसरे को फंसाने के मकसद से भी FIR में कई आरोप लगा दिए जाते हैं. इसीलिए अगर केस उस अधिकार क्षेत्र का नहीं है, तो पुलिस इसे दर्ज करने से बचना चाहती है.

कब दर्ज कराई जाती है जीरो FIR?

अपराधों तो संज्ञेय और गैर संज्ञेय की श्रेणियों में बांटा गया है. हत्या, रेप, जानलेवा हमले जैसे संगीन अपराध संज्ञेय की कैटेगरी में आते हैं. ऐसे अपराधों की रिपोर्ट तत्काल करना जरूरी होता है, जिससे जल्द एक्शन लिया जा सके. ऐसे मामलों में जीरो FIR दर्ज करवाने की जरूरत होती है. ज्यादातर रेप के मामलों में भी जीरो एफआईआर दर्ज करवाई जाती है, ताकि जल्द कार्रवाई शुरू हो सके.

वहीं ठगी, धोखाधड़ी, जालसाजी, मारपीट, लड़ाई-झगड़े जैसे अपराध, जो कि बेहत संगीन अपराध की कैटेगरी में नहीं आते. इस तरह के केस में तुरंत FIR दर्ज नहीं होती है. इनको सबसे पहले मजिस्ट्रेट के पास रेफर किया जाता है और समन जारी होने के बाद भी आगे की कार्रवाई शुरू होती है. 

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