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क्यों आसान नहीं है मुख्य चुनाव आयुक्त को महाभियोग से हटाने की प्रक्रिया, विपक्ष की रणनीति कितनी कारगर

विपक्षी दलों का आरोप है कि हालिया मतदाता सूची में भारी गड़बड़ी की गई है और इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो रही है. इसी को लेकर वे सीईसी को हटाने की मांग कर सकते हैं. लेकिन संवैधानिक प्रावधानों को देखते हुए राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि यह कदम आसान नहीं होगा.

क्यों आसान नहीं है मुख्य चुनाव आयुक्त को महाभियोग से हटाने की प्रक्रिया, विपक्ष की रणनीति कितनी कारगर
CEC impeachment
  • विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की बर्खास्तगी की मांग कर रहा है
  • मुख्य चुनाव आयुक्त को SC के न्यायाधीश के समान सुरक्षा प्राप्त है और उन्हें केवल दो आधारों पर हटाया जा सकता है
  • मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करना आवश्यक होता है
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नई दिल्ली:

विपक्ष ने मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी के आरोपों को लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार पर सीधा निशाना साधा है. सूत्रों के मुताबिक, विपक्ष उन्हें हटाने के लिए संसद में महाभियोग जैसा प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है. हालांकि राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह ज्यादा गंभीर प्रयास नहीं बल्कि दबाव बनाने और मुद्दे को गरमाए रखने की रणनीति हो सकती है. कांग्रेस का कहना है कि मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग लाने पर विचार किया जा रहा है.  सोमवार सुबह संसद भवन में बैठक में चर्चा हुई.  मुख्य चुनाव आयुक्त को महाभियोग प्रस्ताव के जरिये पद से हटाए जाने का प्रावधान है, जानिए क्या है सीईसी को हटाने की प्रक्रिया

SC के न्यायाधीश की तरह चुनाव आयुक्त को प्राप्त है सुरक्षा

संविधान के अनुच्छेद 324(5) के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त को वही सुरक्षा प्राप्त है जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को मिलती है. यानी उन्हें केवल दो आधारों पर ही हटाया जा सकता है.

मुख्य चुनाव आयुक्त को कैसे हटाया जा सकता है?

  • दुर्व्यवहार (Misbehaviour) साबित हो.
  • कर्तव्यों के निर्वहन में अक्षम (Incapacity) पाए जाएं.

कैसे होती है प्रक्रिया?

  • सीईसी को हटाने की प्रक्रिया बेहद लंबी और जटिल है
  • सबसे पहले संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में प्रस्ताव लाना होता है.
  • इसके लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों या राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन अनिवार्य है.
  • प्रस्ताव स्वीकार होते ही एक जांच समिति गठित की जाती है, जिसमें आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश या विशेषज्ञ शामिल होते हैं.
  • समिति यदि आरोपों को सही ठहराती है, तो संसद में उस प्रस्ताव पर बहस और मतदान होता है.
  • प्रस्ताव पारित करने के लिए विशेष बहुमत चाहिए यानी सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई का समर्थन चाहिए होता है. 
  • यह प्रक्रिया दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में पूरी करनी होती है.
  • अंततः दोनों सदनों से प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति हटाने का आदेश जारी करते हैं.

विपक्ष की क्या है चाल?

विपक्षी दलों का आरोप है कि हालिया मतदाता सूची में भारी गड़बड़ी की गई है और इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो रही है. इसी को लेकर वे सीईसी को हटाने की मांग कर सकते हैं. लेकिन संवैधानिक प्रावधानों को देखते हुए राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि यह कदम केवल दबाव की राजनीति है.

2009 में विपक्ष ने लाया था प्रस्ताव

गौरतलब है कि बीजेपी ने विपक्ष में रहते हुए इसी तरह का अभियान 2009 में चलाया था. तत्कालीन चुनाव आयुक्त नवीन चावला को हटाने की मांग को लेकर एनडीए के 205 सांसदों ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे. लेकिन उस समय लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था. 

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