राहुल गांधी के संसद सदस्य के तौर पर अयोग्य घोषित होने के बाद जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. इसमें दोषसिद्धि के बाद जनप्रतिनिधियों की ऑटोमैटिक अयोग्यता को अवैध और मनमाना बताया गया है. याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(3) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. इसे संविधान के विपरीत घोषित करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि ऑटोमैटिक अयोग्यता समानता के अधिकार का उल्लंघन है.
सामाजिक कार्यकर्ता आभा मुरलीधरन की याचिका
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता आभा मुरलीधरन की तरफ से दाखिल की गई है. याचिका में कहा गया कि चुने हुए प्रतिनिधि को सजा होते ही उनकी सदस्यता जाना असंवैधानिक है. दरअसल, इसी धारा के तहत किसी भी जनप्रतिनिधि को 2 साल या उससे ज्यादा की सजा पर उनकी सदस्यता को रद्द किया जाता है. याचिका में कहा गया है कि वायनाड से सांसद राहुल गांधी को अयोग्य घोषित करने के मामले के कारण सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. राहुल गांधी को दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्य घोषित किया गया है. हालांकि, अपील का चरण, अपराधों की प्रकृति, अपराधों की गंभीरता और उसका प्रभाव पर समाज आदि कारकों पर विचार नहीं किया जा रहा है और ऑटोमैटिक अयोग्यता का आदेश दिया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 8(4) को रद्द कर दिया था
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट का फैसला मशहूर लिली थॉमस बनाम भारत संघ के नाम से चर्चित हुआ था. केरल के वकील लिली थॉमस ने जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसमें इस उपबंध को रद्द करने की मांग की थी. इसके पक्ष में तर्क दिया गया कि यह धारा दोषी सांसदों और विधायकों की सदस्यता बचाती है, जब तक कि ऊपरी अदालत से फैसला न आ जाए.
यूपीए सरकार ले आई थी अध्यादेश
इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के काट के तौर पर एक अध्यादेश लेकर आई थी. अध्यादेश में वर्तमान में सांसदों और विधायकों को आपराधिक मामलों में सजा सुनाए जाने पर अयोग्य ठहराए जाने से राहत की व्यवस्था की गई थी.
अध्यादेश में ये था प्रावधान?
2013 में लाए गए अध्यादेश में विधायक या सांसद को सजा के बाद 3 महीने तक इससे राहत दिए जाने का प्रावधान किया गया था. अध्यादेश में कहा गया था कि सजायाफ्ता मौजूदा सांसद/विधायक को 3 महीने तक अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है. इसके साथ ही अगर इन तीन महीनों के भीतर मौजूदा सांसद/विधायक सजा की तारीख से तीन महीने के अंदर अपील दायर करता है, तो उसे तब तक अयोग्य नहीं ठहाराया जा सकता; जब तक अपील पर फैसला नहीं आ जाता.
राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में फाड़ दी थी अध्यादेश की कॉपी
अध्यादेश को मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कैबिनेट से पास किया गया और मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया. इसके बाद राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अध्यादेश की कॉपी फाड़ दी थी. उन्होंने अध्यादेश को पूरी तरह बकवास कहा था. बाद में इस अध्यादेश को कैबिनेट ने वापस ले लिया था. राहुल के इस फैसले की आज तक आलोचना होती है.
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