सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को कॉलेजियम (Collegium) को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कॉलेजियम कोई खोज समिति (सर्च कमेटी) नहीं है, जहां सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में अपने विवेकाधिकार का प्रयोग कर सकती है. शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम की सिफारिशों का ब्योरा उपलब्ध कराने के लिए कहा है, जो बार-बार दोहराए जाने के बावजूद लंबित है. देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से इस संबंध में एक चार्ट देने के लिए कहा और मामले को अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध किया है. अदालत ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों की कुछ नियुक्तियां होने की संभावना है.
अटार्नी जनरल ने लंबित सिफारिशों का ब्योरा उपलब्ध कराने पर सहमति जताई, लेकिन जजों की नियुक्ति में देरी पर सवाल उठाने वाली रिट याचिकाओं पर प्रारंभिक आपत्तियां उठाई हैं.
नियुक्तियां क्यों नहीं की गई : सुप्रीम कोर्ट
इस मामले में झारखंड सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की सिफारिश लंबित रखी गई है. वहीं वकील प्रशांत भूषण ने वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल का मुद्दा उठाया, जिन्होंने समलैंगिक होने का खुलासा किया था. उन्होंने कहा कि कॉलेजियम की सिफारिशें, जिन्हें दोहराया गया है, उचित समय के बाद नियुक्त की गई मानी जानी चाहिए क्योंकि सरकार कुछ नामों पर महीनों तक बैठी रही.
अटॉर्नी जनरल को संबोधित करते हुए पीठ ने उन्हें एक चार्ट तैयार करने और अधिसूचना जारी करने में कठिनाई दिखाने के लिए कहा है. साथ ही पीठ ने उनसे पूछा कि आप हमें बताएं कि वे नियुक्तियां क्यों नहीं की गई हैं और कौन से मामले दोहराए गए हैं और वे क्यों लंबित हैं.
झारखंड सरकार ने दायर की है अवमानना याचिका
झारखंड सरकार ने राज्य हाईकोर्ट के साथ-साथ देश भर के अन्य उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में असाधारण देरी के मद्देनजर केंद्र सरकार के शीर्ष अधिकारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के पोषित सिद्धांत के लिए हानिकारक है.
राज्य सरकार की याचिका में कहा गया है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम की सिफारिश के बाद हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में अत्यधिक देरी, सेकंड जजेस मामले में इस न्यायालय के नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पारित 6 अक्टूबर, 1993 के फैसले और विशेष रूप से मेसर्स पीएलआर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड में 20 अप्रैल, 2021 के आदेश का सीधा उल्लंघन है.
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए यह तर्क
राज्य सरकार ने तर्क दिया है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम के बाध्यकारी निर्णय को लागू करने में विफलता, सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की जानबूझकर अवज्ञा होगी. मेसर्स पीएलआर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड में, इस न्यायालय ने स्पष्ट रूप से निर्धारित किया है कि किसी सिफारिश पर कार्रवाई की जानी चाहिए और उसके दोहराए जाने के तीन से चार सप्ताह की अवधि के भीतर नियुक्ति की जानी चाहिए. हालांकि, कथित अवमाननाकर्ता कानून के आदेश का पालन करने में विफल रहे हैं.
राज्य सरकार ने बताया कि 11 जुलाई को कॉलेजियम ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एमएस रामचंद्र राव को झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी. हालांकि यह सिफारिश अभी भी केंद्र सरकार के समक्ष विचाराधीन है. 19 जुलाई को जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद को झारखंड हाईकोर्ट का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और वे आज तक इस पद पर कार्यरत हैं.
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