
- जम्मू-कश्मीर के दुग्गन गांव के अक्षय शर्मा को जन्म से होंठ और तालू की विकृति के कारण बोलने में परेशानी थी.
- गरीबी के चलते अक्षय के माता-पिता लंबे समय तक उसके इलाज और स्पीच थेरेपी का खर्च नहीं उठा पाए.
- भारतीय सेना के एक डॉक्टर ने खुद तकनीक सीखकर अक्षय को सिखाना शुरू किया और अक्षय बोलने लगा है.
आठ वर्षों तक जम्मू-कश्मीर के दुग्गन गांव का मासूम अक्षय शर्मा खामोशी में कैद रहा. जन्म से होंठ और तालू की विकृति (क्लैफ्ट लिप व पैलेट) के साथ पैदा हुए अक्षय की तीन साल की उम्र में सर्जरी तो हुई, लेकिन बोलने की क्षमता फिर भी विकसित नहीं हो सकी. गरीबी से जूझ रहे माता-पिता इलाज का खर्च नहीं उठा पाए और धीरे-धीरे अपने बेटे की आवाज सुनने की आस लगभग छोड़ बैठे थे. हालांकि आज भारतीय सेना के एक डॉक्टर की मदद से अक्षय बोल सकता है.
इसी बीच क्षेत्र में तैनात भारतीय सेना के एक डॉक्टर की नजर अक्षय पर पड़ी. परिवार की पीड़ा ने उन्हें गहराई से छू लिया. प्रारंभिक जांच के बाद उन्होंने पाया कि नियमित स्पीच थेरेपी से अक्षय बोलना सीख सकता है, लेकिन गांव में इसकी सुविधा न होने के कारण डॉक्टर ने खुद तकनीकें सीखीं और खाली समय में अक्षय को धैर्यपूर्वक सिखाना शुरू किया. पहले ध्वनियां, फिर शब्द और अंततः छोटे वाक्य. महीनों की मेहनत से अक्षय की जुबान खुलने लगी और उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया.

छलक पड़े खुशी के आंसू
वह पल अविस्मरणीय था जब अक्षय ने पहली बार अपने माता-पिता को पुकारा. उनकी आंखों से खुशी के आंसू बह निकले. उनके लिए यह केवल आवाज नहीं, बल्कि एक चमत्कार था. वह सपना जो बरसों पहले टूट गया था, अब हकीकत बनकर सामने था. कभी मौन दुआओं से भरा उनका घर आज बेटे के शब्दों और उसकी मासूम बातों से गूंज रहा है.

भारतीय सेना बनी मिसाल
यह सिर्फ एक सैनिक की करुणा भर नहीं, बल्कि पूरी बस्ती के लिए प्रेरणा बन गई है. इस संवेदनशील पहल ने साबित कर दिया कि भारतीय सेना केवल सरहदों की हिफाजत ही नहीं करती, बल्कि दिलों के घावों को भी भरती है और उम्मीद की किरण वहीं पहुंचाती है, जहां उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है.
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