सुप्रीम कोर्ट CAA के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) ने कहा कि CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 192 याचिकाएं लंबित हैं. ऐसे में सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करने का निर्देश दे रहे हैं. बता दें के इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया, असम कांग्रेस के नेता देवब्रत सैकिया और असम की संस्था AJYCP की तरफ से याचिका दाखिल कर CAA नोटिफिकेशन पर रोक लगाने की मांग की गई है. IUML(इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) समेत सभी याचिकाकर्ताओंने अधिसूचना के कार्यान्वयन पर रोक की मांग की. इस याचिका में कहा गया है कि "CAA असंवैधानिक, मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण" है.
अमित शाह ने सीएए पर रखी थी अपनी बात
बता दें कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले ही सीएए को लेकर विपक्ष द्वारा फैलाए जा रहे नकारात्मक प्रचार पर अपना रुख साफ किया था. उन्होंने कहा था कि एनआरसी और सीएए का कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने साथ ही ये भी कहा था कि ये कानून कभी वापस नहीं होगा. ये शरणार्थियों को न्याय देने का मुद्दा है. ANI से इंटरव्यू में अमित शाह ने CAA को लेकर हर सवाल का जवाब दिया.
"ये हमारे ही लोग हैं"
अमित शाह ने सीएए को लेकर कहा था कि जब विभाजन हुआ तो पाकिस्तान में 23 प्रतिशत हिन्दू थे, आज 3.7 प्रतिशत हैं. कहां गए सारे. इतने तो यहां नहीं आए. उनका धर्म परिवर्तन किया गया, अपमानित किया गया. क्या देश को इसका विचार नहीं करना चाहिए. बांग्लादेश में 1951 में हिन्दुओं की संख्या 22 प्रतिशत थी. 2011 की जनगणना में वो 10 प्रतिशत रह गए. कहां गए? अफगानिस्तान में 1992 में 2 लाख सिख और हिन्दू थे, आज 500 बचे हैं. क्या इन लोगों को अपनी आस्था के साथ जीने का अधिकार नहीं है. जब भारत एक था तो ये साथ ही थे. ये हमारे ही लोग हैं. अगर उनकी थ्योरी को भी अपनाएं तो विभाजन के बाद इतने शरणार्थियों को क्यों आने दिया गया?
केजरीवाल को अमित शाह का जवाब
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल द्वारा सीएए पर सवाल उठाने कि सीएए से बाहर के लोग आ जाएंगे, चोरी, रेप की घटनाएं बढ़ेंगी, नौकरियां छिन जाएंगी? इस पर अमित शाह ने कहा कि दिल्ली के सीएम उनका भ्रष्टाचार का मामला उजागर होने से आपा खो बैठे हैं. उन्हें ये नहीं पता कि वो तो आ चुके हैं और भारत में ही रह रहे हैं. इतनी चिंता है तो वे रोहिंग्या का विरोध क्यों नहीं करते. रोहिंग्या क्या नौकरी का अधिकार नहीं मार रहे. आप उनके लिए तो नहीं बोल रहे. उनके लिए दिल्ली के चुनाव लोहे के चने चबाने जैसे हैं. मैं तो उन्हें ये भी कहूंगा कि वो किसी रिफ्यूजी के घर जाकर एक कप चाय पीकर आएं. उनका दर्द समझें कि कैसे उन्होंने अरबों की संपत्ति छोड़कर दिल्ली के बाजार में सब्जी की दुकानें लगाईं. धर्म के नाम पर कैसे इन परिवारों की महिलाओं का गौरव छीना गया. आज भी ऐसे लोगों के पास नागरिकता नहीं, प्रोपर्टी नहीं है.
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