विज्ञापन

बिहार चुनाव में बागी बिगाड़ेंगे खेल, आरजेडी, बीजेपी से लेकर जेडीयू तक परेशान, क्या होगा खेला?

बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सभी दलों के लिए बागी कैंडिडेट परेशानी का सबब बने हुए हैं. आरजेडी ने सबसे ज्यादा 27 बागी उम्मीदवार को पार्टी से निकाला है. इसके बाद जेडीयू का नंबर आता है. बीजेपी के लिए भी बागी परेशानी का सबब हैं.

बिहार चुनाव में बागी बिगाड़ेंगे खेल, आरजेडी, बीजेपी से लेकर जेडीयू तक परेशान, क्या होगा खेला?
बिहार चुनाव में सभी दलों के लिए सिरदर्द हैं बागी कैंडिडेट
पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार मुकाबला सिर्फ गठबंधनों के बीच नहीं, बल्कि पार्टियों के भीतर भी देखने को मिल रहा है. महागठबंधन और एनडीए दोनों ही पार्टियों के कई नेताओं ने टिकट बंटवारे से असंतुष्ट होकर बगावत का रास्ता चुना है. अब तक करीब 50 से ज्यादा बागी नेताओं को उनकी पार्टियों ने दल विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित कर दिया है. इनमें राजद के 27, जदयू के 16 और भाजपा के 6 नाम शामिल हैं. यह संख्या जितनी बड़ी है, उतना ही बड़ा असर यह बगावत चुनावी नतीजों पर डाल सकती है.

● राजद (RJD) ने 27 नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है.
● जदयू (JD(U)) ने 16 नेताओं को निष्कासित किया है.
● भाजपा (BJP) ने 6 नेताओं को निलंबित किया है.

यानी कुल मिलाकर करीब 50 से ज्यादा बागी नेता अब स्वतंत्र प्रत्याशी या छोटे दलों के टिकट पर मैदान में हैं. राजद में छोटे लाल राय ( विधायक, पारसा), ऋतु जायसवाल (परिहार), राम प्रकाश महतो (पूर्व विधायक, कटिहार) के अलावा और  24 नेताओं को पार्टी से निकल दिया गया है. अब यह अपने इलाकों से स्वतंत्र या किसी छोटे दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे है. इनका वोट बैंक मजबूत है अगर यह कुछ हजार वोट भी खींच ले तो राजद को नुकसान हो सकता है.

नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में भी कई पुराने नेताओं ने बगावत की है. गोपाल मंडल, शैलेश कुमार और श्याम बहादुर सिंह, जैसे नाम पार्टी से निष्कासित किए जा चुके हैं. ये सभी अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली रहे हैं. अगर ये भी स्वतंत्र उम्मीदवार बनकर मैदान में रहेंगे तो जदयू के आधिकारिक उम्मीदवारों के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. इससे महागठबंधन को फायदा मिल सकता है.

भाजपा में भी पवन यादव, श्रवण कुशवाहा  और उत्तम चौधरी जैसे नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण पार्टी से निष्कासित कर दिया है. भाजपा की मजबूती हमेशा उसके अनुशासन और संगठन पर टिकी रही है. अगर भाजपा के ये बागी उम्मीदवार अपने क्षेत्रों में असर दिखाते हैं, तो एनडीए की कुछ सीटों पर महागठबंधन को बढ़त मिल सकती है.

बागियों का असर चुनाव पर?

बिहार के चुनावी इतिहास में बागियों ने हमेशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और 2025 विधानसभा में भी यही उम्मीद है. इन निष्कासित नेताओं के मैदान में उतरने से मुख्य दलों के स्थिति बिगड़ सकते हैं.

वोटों का बंटवारा

सबसे बड़ा असर वोटों के बंटवारे के रूप में सामने आएगा. बागी उम्मीदवार अपने पुराने दल के वफादार वोट बैंक में सेंध लगाएंगे. अगर किसी सीट पर मुकाबला करीबी है (सिर्फ कुछ सौ या हजार वोटों का अंतर है), तो बागी नेता की मौजूदगी सीधे तौर पर पार्टी की हार का कारण बन सकती है.

सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला

बागियों के निर्दलीय लड़ने से कई सीटों पर मुकाबला सीधा न रहकर त्रिकोणीय हो जाएगा. इससे जीत का मार्जिन कम हो जाएगा और नतीजों की भविष्यवाणी करना और भी मुश्किल हो जाएगा.

दल-बदल की राजनीति को बल

यदि इनमें से कुछ बागी जीत जाते हैं, तो वे विधानसभा में 'किंगमेकर' की भूमिका निभा सकते हैं, जैसा कि पहले भी देखा गया है. चुनाव बाद ये विधायक अपने फायदे के लिए किसी भी गठबंधन का दामन थाम सकते हैं, जिससे राजनीतिक अस्थिरता का खतरा बना रहेगा.

बिहार की राजनीति हमेशा अंदाजे से बाहर रही है, और इस बार बागी नेताओं ने इसमें नया रंग भर दिया है। कौन अपनी पार्टी को सिखाएगा सबक, और कौन जनता से “समर्थन” हासिल करेगा  इसका जवाब आने वाले चुनावी नतीजे ही देंगे.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com