- केंद्र सरकार राष्ट्रीय पोलियो निगरानी नेटवर्क को अगले दो से तीन सालों में बंद करने की योजना बना रही है
- पोलियो वायरस की निगरानी के लिए 1990 में विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह नेटवर्क स्थापित किया
- स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना, पोलियो नेटवर्क बंद होने से कार्यक्षमता पर कोई असर नहीं पड़ेगा
केंद्र सरकार राष्ट्रीय पोलियो निगरानी नेटवर्क को जल्द ही बंद कर सकती है. इसको लेकर योजना बनाई जा रही और अगर सब कुछ सही रहा तो अगले दो से तीन सालों में निगरानी नेटवर्क बंद हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वर्ष 1990 में मिलकर इस राष्ट्रव्यापी नेटवर्क की स्थापना की थी. इसके जरिए 280 केंद्रों से तीव्र फ्लेसिड पैरालिसिस (AFP) की रिपोर्टिंग के जरिए पोलियो वायरस पर निगरानी की जा रही थी. योजना के मुताबिक 2026 तक ये केंद्र 190 और 2027 तक 140 रह जाएंगे. हर चरण में फंडिंग को भी घटाया जाएगा.
नई दिल्ली स्थित आकाश हेल्थकेयर के डॉ. आशीष चौधरी ने कहा कि पोलियो को लेकर हमारी सतर्कता घटाने का सही समय नहीं है. पोलियो हमारे आसपास के देशों में अभी भी मौजूद है. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान में इस साल 30 से अधिक मामले सामने आए हैं, जबकि अफगानिस्तान में भी नए संक्रमण हैं. यह वायरस सीमाओं के पार आसानी से फैल सकता है. इसके अलावा, अब टीका-संबंधित पोलियो का खतरा भी बना हुआ है जो कम टीकाकरण वाले इलाकों में तेजी से फैल सकता है.
कार्यक्षमता में कमी नहीं होगी: स्वास्थ्य मंत्रालय
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पोलियो के राष्ट्रीय नेटवर्क को बंद करने की योजना है. हालांकि, इस फैसले से कार्यक्षमता कमी नहीं होगी बल्कि इसे अन्य बीमारियों की निगरानी वाले राष्ट्रीय नेटवर्क आईडीएसपी के साथ जोड़ दिया जाएगा ताकि संसाधनों का समन्वय बेहतर हो सके. हालांकि डॉक्टरों व स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि संक्रमण और पुनः प्रसार के समय में यह बदलाव तत्काल करना जोखिम-भरा है.
फरीदाबाद स्थित एशियन हॉस्पिटल के डॉ. सुनील राणा का कहना है कि यह चेतावनी प्रणाली यदि बंद हो जाती है तो आउटब्रेक का पता लगाने में देर होगी और यह देरी जानलेवा साबित हो सकती है.
नेटवर्क को बंद नहीं, और विस्तारित करने की जरूरत
विशेषज्ञों का कहना है कि पोलियो निगरानी नेटवर्क को तुरंत बंद करने की बजाय उसका रूपांतरण बेहतर किया जाना चाहिए. नेटवर्क को कम नहीं बल्कि विस्तारित किया जाना चाहिए. इसके माध्यम से खसरा-रूबेला, डिफ्थीरिया जैसी अन्य टीका-रोकथाम योग्य रोगों की निगरानी को मजबूत करने का मौका है. सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य बजट-घाट का मुकाबला करने के लिए रणनीति तैयार करनी है, ताकि न सिर्फ पोलियो बल्कि भविष्य के संक्रमण-खतरों से भी निपटा जा सके.
गौरतलब है कि भारत 11 साल पहले ही पोलियो से मुक्ति पा चुका है.
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